अखिलेश अखिल
बिहार कांड के बाद झारखंड। बिहार में नीतीश बाबू ने कांड किया था । विपक्ष को पहले जोड़ा, कुछ कदम आगे भी चले नीतीश बाबू और फिर विपक्षी गठबंधन जिसे इंडिया गठबंधन के नाम से जानते हैं ,उसे छोड़कर फिर से बीजेपी के साथ हो लिए। सप्ताह भर के भीतर ही नीतीश बाबू ने बड़ा कांड कर दिया। इस घटना के बाद वे प्रेस के सामने भी आये।आते भी कैसे नहीं ? पटना की उस मीडिया को पहले खूब ताना मारते थे और कहते थे कि हम लोगों की बात को ये लोग नहीं छापते ,नहीं दिखाते। लेकिन अबकी बार जब प्रेस से मिले तो आंखें झुकी हुई थीं, बोली में स्पष्टता नहीं थी।
जो कुछ भी वह कह रहे थे वह सब ऊपर से कह रहे थे। नीचे से वे मान रहे थे कि जो वे बोल रहे हैं उस पर कोई विश्वास भला क्यों करेगा ? लेकिन भरे मन से नीतीश बाबू ने स्वीकार किया अब वे कभी भी एनडीए को नहीं छोड़ेंगे। महागठबंधन के साथ भी गए थे तो उनकी भाषा कुछ यही थी। बल्कि इससे भी ज्यादा तल्ख़। लेकिन वे कहाँ माने ? शायद उनकी फितरत ही कुछ ऐसी ही है।
तो बिहार में नीतीश बाबू के कांड की चर्चा इसलिए ज़रूरी है कि एक ही दिन में वे कुछ घंटा पूर्व इस्तीफा देकर लौटे और फिर उसी दिन नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ भी ले लिए। कितनी तेजी से सब चलता रहा। इतनी तेजी से कोई सरकार जनता के लिए काम करती है ? क्या कोई राज्यपाल विपक्षी दलों के लिए इतना अलर्ट रहता है ?लेकिन चूंकि सरकार बीजेपी के साथ बननी थी और देश के सभी राज्यपाल बीजेपी के ही हैं तो बीजेपी की सरकार बनाने में भला देरी कैसी ? नीतीश बाबू 9 वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।
समाजवादी पृष्ठभूमि से आने वाले नीतीश बाबू पर बिहारी समाज के साथ ही देश के बाकी लोगों को भी अभिमान था। लोगों को लगता था कि सार्वजनिक जीवन में इतने लम्बे समय तक रहने के बाद भी नीतीश का दामन साफ़ ही रहा है। लोग यह मानते थे कि यह आदमी मौजूदा प्रधानमंत्री को टक्कर दे सकता है। पीएम मोदी के सामने चुनौती पेश कर सकता है। उसकी बातों में वजन है और मोदी को वह हरा भी सकता है। लेकिन नीतीश कांड कर गए। यह काण्ड उन्होंने खुद किया या उनसे करवाया गया या फिर किसी बड़े दबाव की वजह से नीतीश को यह सब करना पड़ा यह जांच का विषय है। लेकिन जांच करेगा कौन ?
सच तो यही है कि आज नीतीश बाबू खुद के बारे में चाहे जो भी कह लें अब उनका इकबाल पहले वाला नहीं रहा। उनकी चमक खो चुकी है। उनकी वाणी दब चुकी ही। उनके वार अब भोथरा गए हैं। उनका तेज ख़त्म हो गया है। वे जीवित होकर भी अन्धकार में डूब से गए हैं। राजनीति का जो दांव उन्होंने अबकी बार खेला है वह अब उनको ही ले डूबा है। कहने को आप जो भी कहते रहिये आप जनता की नजरों से गिर चुके हैं। जो आपको वोट डालता है वह भी आप पर मुस्कुराता ज़रूर है।
लेकिन चर्चा तो यहां हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी की हो रही थी और झामुमो नेता चम्पई सोरेन को शपथ लेने की बात पर की जा रही थी। बानगी के तौर पर नीतीश एक ही दिन में इस्तीफा भी देते हैं और फिर कुछ घंटे बाद शपथ भी लेते हैं। एक ही दिन में इस्तीफा और शपथ हो जाता है। लेकिन खेल देखिये कि झारखंड़ 50 घंटे से ज्यादा हो गए लेकिन नई झामुमो गठबंधन की सरकार नहीं बन पाई। गिरफ्तारी से पहले ही हेमंत सोरेन ने इस्तीफा देते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता चम्पई सोरेन को विधायक दल के नेता के रूप में ऐलान किया था। सभी विधायक इस पर सहमत भी हैं।
गठबंधन के सभी विधायक चाहते हैं कि जल्द से जल्द चम्पई सीएम के रूप में शपथ भी ले लें। लेकिन शपथ लेने का फैसला जिन राज्यपाल महोदय को लेना है वे तो अभी समय ही नहीं दे रहे हैं। चम्पई सोरेन शपथ लेने के लिए दो बार राज्यपाल से मिल भी चुके हैं और उनको यही कहा जाता है कि अभी थोड़ा वेट कीजिये। सब यही कह रहे हैं कि नीतीश बाबू की तरह चम्पई सोरेन भाग्यशाली थोड़े ही हैं। सच तो यही है कि बीजेपी झारखंड में ईडी के जरिये ऑपरेशन कमल को साध रही है। अगर झामुमो या कांग्रेस टूट गई तो बीजेपी की सरकार बन सकती है। बीजेपी ने तो हेमंत को ही तोड़ने की कोशिश की थी। लेकिन संभव नहीं हुआ। अब पार्टी को तोड़ने का खेल चल रहा है। और इसी खेल की वजह से चम्पई को वेट कराया जा रहा है।
अगर बिहार कांड को बानगी के तौर पर सामने रखें तो झारखंड में चम्पई सोरेन को तो शपथ कब ही ले लेनी चाहिए थी। क्या इस पर नीतीश बाबू कुछ प्रकाश डाल पाएंगे ? क्या उनका समाजवाद जाग सकता है ? क्या नीतीश कह सकते हैं कि झारखंड में जो कुछ हो रहा है वह सब ठीक नहीं है ? कहा तो यह भी जा रहा है कि हेमंत की गिरफ्तारी और झारखंड में अभी जो भी हो रहा है उसमे नीतीश कुमार की भी सहमति है। सच क्या है यह कौन जाने !
लेकिन झारखंड में अभी जो हो रहा है वह भी अद्भुत ही है। राज्य में कोई मुख्यमंत्री नहीं है। और न ही झारखंड में राष्ट्रपति शासन ही है। जाहिर है अभी हेमंत सोरेन ही कार्यवाहक सीएम हैं। लेकिन खेल देखिये वे ईडी की गिरफ्त में हैं और इस वक्त जेल में हैं। देश के इतिहास में शायद यह पहला केस होगा जिसमें कोई कार्यवाहक सीएम जेल में बंद हुआ हो। ऐसे यह लोकतंत्र, संविधान पर हमला नहीं तो और क्या है? कोई इसका जवाब दे सकता है क्या? हो सकता है कि चुनावी राजनीति में बीजेपी को यह सब कुछ जायज ही लग रहा हो लेकिन सत्तापक्ष और विपक्ष के वोटर को भी लग रहा है कि जो हो रहा है उसमें संविधान और लोकतंत्र को ही फांस दिया गया है। मजाक बना दिया गया है।
झारखंड का क्या होगा ? उसकी राजनीति किस करवट बैठेगी और हेमंत का भविष्य क्या होगा और बीजेपी को क्या कुछ मिलेगा यह सब तो समय की बात है। आने वाले समय में ही यह सब तय होगा। लेकिन जिस तरह से राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बिहार पहुंचने से पहले ही नीतीश हो गया और फिर झारखंड पहुंचने से पहले हेमंत कांड को बीजेपी ने दिखाया ऐसे में अब इस बात की सम्भावना और भी बढ़ गई है कि जब बिहार में दूसरे चरण में राहुल की यात्रा पहुंचेगी तो कहीं तेजस्वी कांड न हो जाए। इसके बाद राहुल कांड भी यूपी में हो सकता है और जब यूपी से बाहर राहुल की यात्रा निकल भी जाती है तो केजरीवाल कांड की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
बीजेपी का यह अमृतकाल चल रहा है। वह विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल में भेजकर मजे से इस अगले चुनाव में जीत हासिल कर सकती है और जनता के बीच एक नैरेटिव गढ़ सकती है कि जो गलत करता है उसके साथ यही सब होता है। तो बीजेपी का यह सवाल नरायन राणे, छगन भुजवल, अजित पवार, हेमंत विश्व सरमा और ना जाने और भी कितने नेताओं के साथ क्यों नहीं ?
हो सकता है बीजेपी अभी इस खेल में बाजी मारती दिख रही हो लेकिन इस पूरे खेल में देश की जांच एजेंसियां अब शक के घेरे में आ गई हैं। कल्पना कीजिये जब कभी सरकार बदल जाएगी तो इन एजेंसियों का क्या होगा? अभी के जो अधिकारी हैं उनका जवाब क्या होगा ? क्या वे बता सकेंगे कि अमृत काल में जो विषवमन किया है वह उनका नहीं किसी और का था। वह तो केवल आदेश का पालन करता था। जांच एजेंसियों का जवाब चाहे जो भी हो लेकिन उनका इकबाल तो ख़त्म हो ही जायेगा।