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वर्ष पन्द्रह के बाद….,?

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शशिकांत गुप्ते

सीतारामजी आज बहुत अजब मानसिकता में हैं।
मिलते ही मुझ से पूछने लगे?
क्या आप को बालपन की कविता याद है?
कौन सी कविता?
सीतारामजी ने कहा वही
माँ खादी की चादर दे दे
मै गांधी बन जाऊं
मैने कहा हॉ याद है।
अचानक सीतारामजी, विषयांतर करते हुए यकायक गम्भीर होकर पूछने लगे, बीस साल बाद क्या होगा?
मैने कहा बीस नहीं पन्द्रह साल बाद का पूछो?
सीतारामजी एकदम मुस्कुरा दिए।
कहने लगे व्यंग्यकार आपनी आदत से कभी बाज नहीं आएगा।
मैने कहा यह व्यंग्य नहीं है। जिज्ञासा है। सामान्यज्ञान का प्रश्न है? पन्द्रह वर्ष की गिनती कब से शुरू होगी?
वो कहतें है न अब आपका समय शुरू होता है?
सीतारामजी कहने लगे मान के चलो, आज से पन्द्रहसाल मतलब 2037 तक क्या होगा?
आज जो बालक जन्म लेगा वह पन्द्रहवर्ष का हो जाएगा।
उसे भारत से अफगानिस्तान की सीमा के आगे तक कोई पासपोर्ट नहीं लगेगा?
अखंड भारत की सीमा में जब चाहे तब वह स्वच्छदंदा से सैरसपाटा कर सकेगा?
मैने कहा एक व्यवहारिक प्रश्न मानस पटल ओर उभर कर आया है?
क्या विरोधियों को पाक चले जाने या पाक भेजने वाले संवाद समाप्त हो जाएंगे?
बाल साहित्य में बालक क्या पढ़ेगा?
माँ मुझे पवित्र कहलाने वाले रग एक झंडा देदे
मै धार्मिक बन जाऊं
घर की छत पर बड़ा भोंगा लगा दे,मै हनुमान चालीसा पढ़ पाऊंगा?
रामजी की जय जयकार गाऊँगा।
सर्वत्र पवित्र वातावरण हो जाएगा? कल्पना करने से ही मन प्रफुल्लित हो जाता है।
यह सुनकर सीतारामजी भी बहुत प्रसन्न हुए।
उसी समय टीवी पर एक खबर प्रसारित हुई। देश के किसी नगर में दंगा हो गया। खबर सुनकर हम दोनों दंग होकर रह गए।
सीतारामजी के मुँह से अचानक ही यह उद्गार निकल पड़े।
धर्म की जय हो,अधर्म का नाश हो
समाचारों के बीच ब्रेक के समय में एक विज्ञापन दिखाई दिया।
बालक कीचड़ में खेलतें हैं।
उनके कपड़े गंदे हो जातें हैं। बालकों की मम्मियां निःसंकोच होकर कहती है,कोई बात नहीं फलाँ साबुन सब साफ कर देगा?
इस विज्ञापन को देखकर एक बात स्पष्ट हो गई,कि कोई भी साबुन गंदे कपड़ो को साफ नहीं करता है। जानबूझकर गंदे किए गए कपड़ों को साफ करता है।
पहले गंदा करों फिर साफ करों
सीतारामजी ने चर्चा को विराम देतें हुए कहा बहुत हो गया बस करो।
जातें जातें सीतारामजी ने सन 1962 में प्रदर्शित फ़िल्म का स्मरण किया और फ़िल्म के गाने की कुछ पंक्तियों को गुनगुनाया।
सन 1962 में एक फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी। बीस साल बाद इस फ़िल्म में गीतकार शकील बदायूनीजी ने गीत लिखें हैं।
एक गीत की एक बन्द प्रस्तुत है। फ़िल्म में यह गीत,अभिनेत्री की खूबसूरती,नज़ाकत, मासूमियत, का वर्णन करते हुए अभिनेता ने गायक हेमंत कुमार की आवाज में गाया है।
आज धार्मिकता आस्था को प्रकट करने के लिए जो माहौल चल रहा है। इस महौल के संदर्भ गीत का यह बंद प्रासंगिक लगता है।
क़ातिल तुम्हें पुकारूँ, के जान-ए-वफ़ा कहूँ
हैरत में पड़ गया हूँ, के मैं तुमको क्या कहूँ
ज़माना है तुम्हारा, चाहे जिसकी ज़िंदगी ले लो
अगर मेरा कहा मानो तो ऐसे खेल न खेलो
तुम्हारी इस शरारत से, न जाने किसकी मौत आए

मैने सीतारामजी से पूछा यह सब कहने के पीछे आपका तात्पर्य क्या है?
सीतारामजी ने कहा बहुत सी बातें पाठकों के विवेक पर भी छोड़ देना चाहिए। लेखन में सस्पेंस भी होना चाहिए।
यह कहते हुए सीतारामजी ने प्रस्थान किया।
मैने भी सोचा प्रबुद्ध पाठक सम्भवतः समझ ही जाएंगे?

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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