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करारी पराजय के बाद पहले की तुलना में बहुत कमजोर हो गए हैं नरेंद्र मोदी?

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सनत जैन

लोकसभा चुनाव 2024 का रुझान 4 जून को सामने आ गया है। एनडीए गठबंधन लगभग 295 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं इंडिया गठबंधन 231 सीटों पर बढ़त बनाये हुए है। अन्य 17 जो किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं हैं वह अपनी बढ़त बनाए हुए हैं। विपक्षी गठबंधन इंडिया ने इस लोकसभा चुनाव में सत्ता पक्ष के सभी दावों को खोखला साबित किया है। इसके साथ ही संविधान, संवैधानिक संस्थाओं और लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए जिस तरह से उन्होंने लड़ाई लड़ी है, इसके लिए विपक्ष बधाई का पात्र है। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को धीरे से इतना जोर का झटका लगेगा, यह किसी ने नहीं सोचा था। हिंदी भाषी राज्यों में 2019 की तुलना में भारतीय जनता पार्टी को सभी राज्यों में नुकसान हुआ है। चुनाव के जो प्रारंभिक रुझान देखने को मिले उसके अनुसार एनडीए गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता हुआ दिख रहा है। भारतीय जनता पार्टी को 241 सीटों पर बढ़त है। दोपहर 3 बजे तक का यह रुझान था। इस रुझान को देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर यह चुनाव लड़ा गया था। भाजपा सबसे बड़ी बहुमत वाली पार्टी है और वही सरकार बनाने का दावा करेगी। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति द्रोपदि मुर्मू प्रधानमंत्री की शपथ के लिए नरेंद्र मोदी को आमंत्रण देंगी। सदन में बहुमत साबित करने के लिए कुछ दिन का समय उन्हें मिलेगा। इंडिया गठबंधन को यदि स्पष्ट बहुमत भी मिल जाता है, इसके बाद भी प्रधानमंत्री पद की शपथ नरेंद्र मोदी ही लेंगे। इस बात की पूरी संभावना है।
5 साल पहले 30 मई 2019 को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 16 जून को समाप्त हो रहा है। ऐसी स्थिति में वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते हुए भाजपा में अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखने के लिए, नरेंद्र मोदी और अमित शाह हर संभव प्रयास करेंगे। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर अन्य राजनीतिक दलों को एनडीए गठबंधन में शामिल होने के लिए वह बेहतर प्रयास कर पाएंगे। भाजपा में जिस तरह से अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को लाया गया था। 400 पार का जो नारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था। उस स्थिति में भाजपा का कोई भी नेता उन्हें चुनौती देने की स्थिति में नहीं था। पिछले 10 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने भारतीय जनता पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं को घर बैठा दिया है। भाजपा में अन्य विचारधारा के लोगों को लाकर संगठन और सत्ता के मुख्य पदों पर बैठाया गया है। राज्यों के कद्दावर नेताओं को लगातार कमजोर किया गया है। इस कारण पार्टी के अंदर प्रधानमंत्री मोदी और शाह को लेकर नाराजी है। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया, मध्य प्रदेश के पू्र्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह यहां तक की उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, महाराष्ट्र एवं गुजरात के बड़े नेता जिस तरह से पार्टी के अंदर साइड लाइन किए गए, उससे भाजपा नेताओं के बीच में नाराजी है। एक बार फिर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में पार्टी में अभी जो विरोध है, उसे आसानी से दबाया जा सकता है। रुझान में एनडीए गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता हुआ दिख रहा है। ऐसी स्थिति में एनडीए गठबंधन के नेताओं को मंत्रिमंडल में स्थान देकर, उन्हें एकजुट करके रखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसमें कोई कष्ट नहीं होगा।
इंडिया गठबंधन के पास चुनाव परिणाम घोषित होने तक, यदि इंडिया गठबंधन की सीट एनडीए गठबंधन से ज्यादा हो जाती है, ऐसी स्थिति में इंडिया गठबंधन की सरकार बन सकती है। एनडीए गठबंधन के कुछ घटक दल, एनडीए छोड़कर इंडिया गठबंधन में भी शामिल हो सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने पिछले 10 सालों में अपने सहयोगी दलों के साथ कोई अच्छा व्यवहार नहीं किया। जैसा अटल जी के कार्यकाल में हुआ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले 10 सालों में घटक दलों को कमजोर करते हुए, उन्हें काफी कमजोर किया गया था। महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल, बिहार में नीतीश के जनता दल और आंध्रा में टीडीपी के साथ तथा अन्य राज्यों के क्षेत्रीय दलों के साथ समय-समय पर भाजपा का टकराव देखने को मिला है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार में सार्वजनिक रूप से यह कह दिया था। क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व समाप्त होने जा रहा है। ऐसी स्थिति में क्षेत्रीय दलों का विश्वास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के प्रति वैसा नहीं रहा, जैसा अटल जी के टाइम पर था। जिस तरह से महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी को पिछले वर्ष तोड़ा गया, इसी तरह से बिहार में पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच में बंटवारा कराया गया। भाजपा के अंदर भी जो ताकतवर नेता थे उन्हें पिछले 10 वर्षों में या तो घर बैठा दिया गया या उनका हाल वसुंधरा राजे सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान सरीखा कर दिया गया।
यदि इंडिया गठबंधन 270 सीटों के आसपास भी पहुंच गया। ऐसी स्थिति में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए फिर सरकार में बने रहना मुश्किल हो जायेगा। 2024 के वर्तमान चुनाव परिणाम को देखने से इतना संतोष जरूर किया जा सकता है कि संवैधानिक संस्थाओं के ऊपर जो दबाव अभी तक केंद्र सरकार का बना हुआ था। संविधान के संकट को लेकर जो बात की जा रही थी। संसद में बिना चर्चा के जो कानून बहुमत के आधार पर पास कराए जा रहे थे। उस पर अब अंकुश लग जायगा। 1989 से 2014 तक केंद्र में गठबंधन की सरकार रही है। 2014 से 2024 तक के 10 साल के कार्यकाल में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार थी। एक बार फिर गठबंधन की सरकार केंद्र में बनने जा रही है। ऐसी स्थिति में यह निश्चित है, जो भी सरकार बनेगी उस पर संविधान और संसद का अंकुश बना रहेगा। मतदाताओं ने एक बार फिर अपनी ताकत को साबित कर दिया है। वर्तमान राजनीतिक समीकरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की तिकड़ी सत्ता में बनी रहे। इसके लिए हर संभव प्रयास करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के पास अब इतनी ताकत नहीं होगी, कि वह संसद अथवा पार्टी संगठन में अपनी मनमानी कर पाएं। एक बार फिर से लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संवैधानिक संस्थाओं के मजबूत होने का समय आ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 400 पार का जो नारा दिया था। वही सारे देश भर में चुनाव प्रचार कर रहे थे। उन्हीं के नाम पर सारे भाजपा के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे थे। करारी पराजय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह संगठन ओर सरकार में पहले की तुलना में बहुत कमजोर हो गए हैं।

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