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स्पीकर के फैसले के बाद अब आगे क्या? नजर फिर सुप्रीम कोर्ट पर

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पंकज सिंह

विधानसभा सदस्यों को अयोग्य ठहराने की अध्यक्ष की शक्तियों का सवाल और कोर्ट किस हद तक इसमें हस्तक्षेप कर सकता है, यह एक कानूनी मुद्दा रहा है। कई विधानसभा स्पीकर यह दावा करते हैं कि विधायकों की अयोग्यता से जुड़े मामलों पर कब और कैसे फैसला लेना है यह उनके विवेक पर है। स्पीकर के फैसले की चर्चा एक बार फिर हो रही थी और सभी की नजर महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर थी कि वह क्या फैसला करते हैं। विधायकों की अयोग्यता का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और कोर्ट ने स्पीकर को निर्देश दिया कि वह इस पर फैसला लें। इस मामले में महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर ने बुधवार फैसला सुनाते हुए शिंदे गुट के 16 विधायकों को योग्य करार घोषित किया है। अब इस फैसले के बाद मामला एक बार फिर कोर्ट में जा सकता है। कर्नाटक, मणिपुर का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में गया था और महाराष्ट्र का यह मामला भी पहले से सुप्रीम कोर्ट में था। जहां सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह डेडलाइन तय कर दी गई कि स्पीकर तय समय में फैसला करें।

महाराष्ट्र में आया स्पीकर का फैसला अब आगे क्या
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके गुट के 16 विधायकों के हक में स्पीकर का फैसला आया है। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाया। इस पर फैसला करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से डेडलाइन तय की गई थी। अब यह तय हो गया है कि शिंदे सरकार महाराष्ट्र में कायम रहेगी। ठाकरे समूह के पहले 16 और बाद में 24 विधायकों को नोटिस जारी किया गया था। इसलिए यह फैसला सभी 40 विधायकों पर लागू होगा। स्पीकर के फैसले पर 30 दिन के अंदर उद्धव गुट हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है।

मणिपुर का मामला जब पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
साल 2017 में विधानसभा चुनावों के ठीक बाद कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए विधायक का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था। कांग्रेस ने मणिपुर स्पीकर से विधायक से अयोग्य घोषित करने की मांग की थी। अध्यक्ष कार्रवाई करने में विफल रहे और याचिका को लंबित रखा। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में इस मामले में सुनवाई करते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया था। तीन जजों की पीठ ने कहा कि सदस्यों की याचिकाओं पर तीन महीने के भीतर फैसला करना होगा। यदि कार्यवाही में देरी होती है तो अदालतों को हस्तक्षेप की शक्तियां हैं। इस मामले में कोर्ट ने मणिपुर विधानसभा स्पीकर को चार सप्ताह के भीतर अयोग्यता पर फैसला लेने के लिए कहा था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने संसद से कहा कि स्पीकर किसी न किसी पार्टी का होता है। ऐसे में क्या वह विधायकों को अयोग्य ठहराने की याचिका पर फैसला ले सकता है। इस पर संसद विचार करे।

कर्नाटक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अयोग्यता अनिश्चितकाल के लिए नहीं

साल 2019 में कर्नाटक में कुमारस्वामी की सरकार गिर गई और उसके बाद बीजेपी की सरकार बनी। कुमारस्वामी की सरकार पर उस वक्त खतरा आ गया था जब गठबंधन ने 16 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। कुमारस्वामी की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी थी। इसमें कांग्रेस के 11 और जेडीएस के तीन विधायक थे। बाकी 2 निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन ले लिया। कर्नाटक विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष के आर रमेश कुमार ने विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने तक 14 असंतुष्ट विधायकों को तत्काल प्रभाव से अयोग्य करार दिया था। कुमारस्वामी की सरकार गिरने के बाद स्पीकर केआर रमेश ने तीन और विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था। अयोग्य करार दिए गए विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 17 विधायक अयोग्य लेकिन विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अयोग्यता अनिश्चितकाल के लिए नहीं हो सकती है।

 

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