सुसंस्कृति परिहार
वाकई इसमें दो राय नहीं हमारे प्रधानमंत्री की ताकत पर गौर करिए वे बड़े बड़े देशों के राष्ट्र अध्यक्षों को जिस तरह अपने गुजरात में नचाते हैं वह मायने रखता है चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को जहां गुजराती झूले पर झुलाते है वहीं अभी उन्होंने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को बुलडोजर पर बिठाकर सबका ध्यान आकर्षित कर लिया है।एक तरफ सुप्रीमकोर्ट जहां बुलडोजर की कार्रवाई से नाराज हैं वहीं हमारे माननीय बोरिस जॉनसन ने सीएम भूपेंद्र पटेल के साथ हलोल जीआईडीसी, पंचमहल में जेसीबी फैक्ट्री का दौरा किया। इसका मतलब साफ है कि वे बुलडोजर की कार्रवाई से बहुत प्रसन्न हैं इसलिए तो बोरिस जानसन को बुलडोजर पर बैठा कर उसकी प्रसिद्धि कर रहे हैं ठीक उसी तरह जैसे कश्मीर फाइल्स फिल्म देखने का आग्रह कर वे जनमानस को साम्प्रदायिकता की ओर मोड़ने का आव्हान करते हैं।
हालांकि यह बात एकदम सत्य है कि माननीय को चुनावी खुमारी लगभग-लगभग साल भरी चढ़ी रहती है।जब कोरोना काल में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्म्प के स्वागत में हाऊ डी मोदी का जवाब नमस्ते ट्म्प के रूप में दिया गया था तब भी यह दोनों तरफ का चुनावी शगल था।
गुजरात राज्य विधानसभा का चुनाव इस साल के अंत में यानी छह महीने बाद फिर होना है, लेकिन भाजपा की ओर से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने न सिर्फ अपने आपको चुनाव प्रचार में झोंक दिया है बल्कि उन्होंने वैश्विक नेताओं यानी विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को भी परोक्ष रूप से भाजपा के चुनाव प्रचार में उतार दिया है। इस समय दो विदेशी नेता गुजरात के दौरे पर हैं और माना जा रहा है कि आगामी चार पांच महीने तक किसी न किसी बहाने गुजरात में विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों का आना-जाना लगा रहेगा। पिछले चुनाव के दरम्यां जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे आए थे तब बुलेट ट्रेन के साथ ही कई परियोजनाओं का जापान के साथ ताना बाना बुना गया था।भले वह दिवास्वप्न ही रहा।2020 में नमस्ते ट्म्प भी जलवा कायम रखने के लिए ही हुआ। कोशिश ये थी भारतीय प्रवासी उन्हें जिताने में मदद करेंगे और भारतीय वोट को भी प्रभावित करेंगे। ट्रम्प तो विदा हो गये पर मोदी की प्रतिष्ठा कायम रही ।
इस बार फिर विदेश में रह रहे गुजराती प्रवासियों के ज़रिए गुजरात की वोट प्राप्त करने के साथ विदेशी राष्ट्र अध्यक्षों की उपस्थिति के ज़रिए अपना जलवा बनाए रखने का उपक्रम जोरदार तरीके से चल रहा है।आग दोनों तरफ मौजूद है ब्रिटेन में बोरिस जानसन को भारतीय प्रवासियों के वोट की दरकार है और गुजरात में भी भाजपा की पकड़ कमज़ोर हो रही है। इसलिए बीच में बुलडोजर ने आकर इस बात का भरोसा जताया है कि उसकी ताकत का भरोसा रखना चाहिए।
हमारे देश ने उत्तर प्रदेश में यह तो जता दिया है कि बुलडोजर से चुनाव जीते जा सकते हैं। मुझे तो दिल्ली पुलिस की किरण बेदी की क्रेन बेदी की छवि से ही बुलडोजर की उपयोगिता का पता चला फिर कानपुर के बिकरु गांव में विकास दुबे के घर की तोड़फोड़ से तो जैसे बुलडोजर के पंख निकल पड़े।यू पी का मुख्यमंत्री बुलडोजर बाबा नाम से प्रसिद्ध हो गया। मध्यप्रदेश के शिवराज मामा ने तत्वरित कदम उठाते हुए खरगौन में एक विशेष कौम के लोगों को मौन कर दिया। दिल्ली भला कैसे पीछे रहती उसने जहांगीर पुरी पर जुल्मो-सितम ढा दिया, गुजरात, उत्तराखंड भी बुलडोज़री कल्चर में रंग ज़माने चल पड़े हैं। बुलडोजर के नेक काम आजकल कम नज़र आते हैं वह तो दुश्मनों पर तोप की तरह द्रुतगति से टूट पड़ता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद तोपें गरजती रहती हैं। हां सी पी एम की ताकत का अंदाजा आज भी लोगों को हो जाना चाहिए जब बृंदा करात आदेश लेकर बुलडोजर के सामने खड़ी हो जाती हैं वरना एम सी डी तब तक आदेश नहीं लाती जब तक सब साफ़ नहीं हो जाता।
बहरहाल यह तो सच है बुलडोजर वैज्ञानिकों का दिया एक उपकरण है जिसके ज़रिए बहुत से महत्वपूर्ण काम होते हैं याद कीजिए उस 26 जनवरी की जब किसानों ने अपनी गणतंत्र परेड में जगमगाते बुलडोजरों पर राष्ट्रीय कार्यक्रमों की जो छटा बिखेरी वह अद्वितीय थी।तोड़ फोड़ से अलहदा राष्ट्र प्रेम का संदेश भांगड़ा करते,नाचते गाते दिया था।आज बुलडोजर पर बैठने एंकर रिपोर्टर भी बेताब है। कुछ तो बैठकर अपने आपको बोरिस जानसन सा ग्रेट मानने लगे हैं।
भाजपा ने भारत में बुलडोजर की राजनैतिक उपयोगिता का पाठ ठाठ से उत्तर प्रदेश से सीखा और यू पी जीता है इसलिए यह तो जाहिराना बात है कि 2024के चुनाव तक बुलडोजर का अपना वजूद कायम रहेगा इसलिए उसके निर्माताओं से जानसन मिलते हैं।
कई लोगों को सुप्रीमकोर्ट के गुस्से का इंतजार है ।शायद वह बुलडोजर की बखिया उधेड़ दे लेकिन सख्त से सख्त सुको के आदेश की दुर्दशा हम सब देख रहे हैं इसीलिए हाल में रिटायर हुए पूर्व सी जे एम ये ना कहते कि सुको की कोई नहीं सुनता है इसे बंद कर देना चाहिए।