अग्नि आलोक

वोट देके तुम घर आएंगा अऊर सोचेंगा कि गलत उम्मीदवार कूं वोट दियेला, अगला इलेक्शन का वेट करने का

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दीपक पाचपोर

तुमकूं अपुन पूछेंगा कि भिड़ू कोई बी अक्खा लाइफ क्या करताए, तबी तुमारा पास फटाक से बोले तो जवाब नईं होएंगा। आधा घंटा तलक तुम मुंडी खुजाएंगा। लाइफलाइन मांग के फोनो फ्रेंड का माफिक कोई जान-पहचान वाला से पूछेंगा, तबी तुमकूं भौत सा झक्कास आईटम सुनने कूं मिलेंगा। अबी जईसा जिसका लाइफ होताए वो वईसाईच तुमकूं जवाब देंगा। कोई बोलेंगा कि वो सादी बनाने का वेट करताए, कोई नोकरी-धंधा करने का। कोई छोकरा होने का तो कोई खोली बांधने का। कोई को गांव में जमीन खरीदने का वेट होताए तो कोई कूं फॉरेन जाने का।

जित्ता जास्ती तुम किसी कूं बी कंसल्ट करेंगा, वो तुमकूं अऊर कन्फ्यूज करेंगा। कंसलटेंट अऊर एक्सपर्ट लोग का एकईच काम होताए- सबकूं अपना माफिक कन्फ्यूज करने का। वो इसी बात का चार्ज करताए। जित्ता उसका दिमाग का भीतर लोचा होताए ना, वो डाटा ट्रांसफर का माफिक तुमारा दिमाग का भीतर अपलोड कर देताए। तुम जित्ता जास्ती कन्फ्यूज होएंगा, उत्ताईच उसकूं श्याणा समज के फीस देंगा। वो बी जानताए कि तुमकूं कन्फ्यूज नईं करेंगा तबी तुम उसकूं येड़ा समज के हकाल देंगा।

अबी ये तुमकूं जो कहेलाए ना, वो अपुन अपना दोस्त बाबूराव से सिखेलाए। वो एक बार अपुन कूं टोटल फिलासफर होके बताएला- जईसा तुम अपना घर बनाएंगा तबी अपना आईडिये से कोई आड़ा-तेढ़ा नक्शा बनाएंगा। उसकूं लेके कोई आर्किटेक्ट का पास जाएंगा, तबी वो टोटल पलटी कर देंगा। तुम जिदर ड्राइंग रूम बनाके लेके जाएंगा, उदर वो बाथरूम बनाके देंगा। जिदर तुम किचन का आईडिया सोचेला उदर वो छोकरा-छोकरी का रूम बनाने कूं सजेस्ट करेंगा। तबी तुम क्या करेंगा? खोली, घर का नक्शा लेके फ्यामिली में बात करेंगा। वो तुमकूं सजेस्ट करेंगा कि वास्तुशास्त्र वाला कूं दिखाने का। वो देखके ट्रेजेडी किंग का माफिक मुं बनाएंगा अऊर वो बी नक्शा पलटी कर देंगा। तुमारा दिमाग का दही जम जाएंगा तबी लास्ट चांस मारने का वास्ते अऊर बड़ा एक्सपर्ट का पास जाएंगा। वो एकईच सल्ला देंगा- ‘तुमकूं इदर फ्लैट बांधके मरनाए क्या? तुमारा बरकत नईं होएंगा। प्लॉट बेचके पईसा बैंक में डालके ब्याज खाने का। अबी जिदर तुम रहताए ना, वो झक्कास जगा होताए। उदरईच रैने का!’

कोई बी आईटम को लेके तुम इदर से उदर रखड़ताए ना उसीच कूं ‘सेकंड ओपिनियन’ बोलताए। तुमकूं थोड़ा सा सिरदर्द होएंगा नईं तो चक्कर आएंगा तबी वांदा नईं। तुमकूं क्या करना मांगताए? घर जा के थंडा पानी पीने का, फैन फुल स्पीड पे चलाके शांति से सो जाने का। पन तुम हुशारी दिखाएंगा अऊर कोई डॉक्टर का पास जाएंगा न, तबी जान लेने का कि तुमारा वाट लगेंगा। पैले कईसा होताए ब्रादर, कि तुम बीमार होने पे हास्पिटल जाताए अऊर तबियत टनाटन करके घर आताए। अबी उलटा होताए। तुम ओके कंडिशन में जाताए अऊर बीमार होके आताए।

अबी ‘ओपिनियन’ से एक अऊर आईडिया आएला। तुम टीवी देखताए ना? अक्खा साल ये अलग-अलग चैनल वाला, सर्वे एजेंसी वाला तुमकूं क्या दिखाताए? खाली एकईच आईटम- अबी इदर इलेक्शन होएंगा तबी इस पक्ष को इत्ता वोट मिलेंगा, इसका सरकार बनेंगा, वो सीएम बनेंगा, वो पीएम बनेंगा। भिड़ू, तुम जानताए कि वो तुमकूं टोटल कन्फ्यूज करने का पईसा लेताए। अबी तुमकूं वो सच्ची-सच्ची का पोजिशन बताएंगा तबी उसकूं रोकड़ा कऊन देंगा? अबी एक चैनल का भीतर जिसका सरकार बनताए दूसरा चैनल का भीतर वो टोटल खल्लास होताए। एक जिसकूं सीएम बनाताए दूसरा उसका जमानत जब्त करताए।

इस करके तुमकूं जो बताताए, वो ध्यान से सुन के लेने का। तुमारा वोटिंग का बखत फिर से आएला न? किसी कूं पूछने का नईं, किसी कूं बताने का नईं। ओपिनियन सर्वे वाला माइक, कैमेरा लेके गल्ली-गल्ली में घूमताए। उसका बात सुनने का नईं! कोई पूछेंगा तबी उदर से कट लेने का। अबी तुम बोलेंगा कि ‘अईसा करेंगा तबी लोकशाही कईसा बचेंगा?’ तुमारा बात ठीक है, ब्रादर। अपुन येईच बात बाबूराव कूं पूछेला, तबी वो बोतलाए कि ‘उस काम का वास्ते भोत लोग घूमताए। उनका पास अऊर कोई धंधा-पानी नईं होताए। वो खाली इसी बात का एक्सपर्ट होताए। उनका टोटल काम ओपिनियन देने का होताए। तुम जो सोचताए वो बी एक्सपर्ट लोग बताने कूं सकताए। उनकूं ये काम करने देने का। तुम खाली अपना पेट-पानी का फिकिर करने का। वोट देके आने का अऊर अगला इलेक्शन का वेट करने का। हर बार सोचने का कि अगला बखत कोई झक्कास कैंडिडेट कूं वोट करेंगा। इलेक्शन में बोले तो अईसाईच होताए। वोट देके तुम घर आएंगा अऊर सोचेंगा कि गलत उम्मीदवार कूं वोट दियेला। नो प्रॉब्लेम! अगला टाइम ट्राई मारने का!’

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