अग्नि आलोक

अल्फाज़~ ए~ ज़िंदगी

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पवन कुमार

पैर चाटकर हाथ काटक़र कामयाब बने तो क्या :

वो उसका घर बनाने में मेरा गिराने में लगे हैं,
वो सारे दिलजले उनके चेहरे दिल मन गले है।
माना हम रह गए अकेले सूखे वो सब हट्टे,कट्टे,
मोटे पले हैं, किसी इंसान को नहीं हम छले हैं।

ना झुके थे ना झुकेंगे ना चाटे तलवे ना चाटेंगे,
उन्हें उनके किरदारों के बदले इनाम बाटेंगे।
अकेले आए हैं अकेले जाएंगे किसी का छीन।
कर लूटकर ,चुराकर हक कभी नहीं खाएंगे।

चाटेंगे पैर उनके जो किरदार असली निभाते हैं,
उनके हरगिज़ नहीं जो चढ़कर बार सीने पर
करने आते हैं,मेरे दिल कलेजे को काट जाते है,
वो जो कह जाते हैं सोच सोच के हम हैं जिंदा
पर जीते जी शर्मिंदा होकर के मर जाते है।

न किया कोई काम ना करेंगे अपने हक किस्मत
की रोटी पानी के पैसे उड़ उड़कर मेरे आएंगे,
क्योंकि मेरा मन दिल जानता है ईश्वर जानता है,
कि अकेले हम कुछ नहीं खाएंगे मिल बांट कर
सबको दवा, दुआ कुछ न कुछ देकर के जाएंगे।
[चेतना विकास मिशन]

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