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अल्फ़्रेड हिचकॉक: सस्पेंस और जादू के चितेरे के 125 साल

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प्रशांत द्विवेदी

ऊधर, जब अगस्त के पहले पखवारे में हम ग़दर 2, OMG 2, जेलर एवं घूमर जैसी फ़िल्मों की समीक्षा में व्यस्त थे, उसी दौरान इंटरनेशनल सिनेमा की दुनिया में सस्पेंस, थ्रिल और फ़ीय(र्) के जादूगर और चितेरे अल्फ़्रेड हिचकॉक की 125वीं जयंती खामोशी से गुज़र गई। सस्पेंस, थ्रिल और फ़ीय(र) का तो अपना एक शोर होता है न, तो अल्फ़्रेड हिचकॉक को कम-अज़-कम उतनी आवाज़ तो मिलनी ही थी।

एल्फ़्रेड हिचकॉक की मौत के 42 साल बाद भी अगर उनकी फ़िल्में उतने ही चाव से देखी जा रही हैं तो उन्हें ‘किंग ऑफ़ सस्पेंस’ कहना उचित ही होगा। हिचकॉक ने अपने 60 साल लम्बे फ़िल्मी कॅरियर में 50 के आस-पास फ़िल्में बनाईं। उन्होंने ‘श्वेत-श्याम’ से लेकर ‘रंगीन’ सिनेमा तक का सफर तय किया। उनके एक जीनियस फ़िल्ममेकर होने की एक बानगी यही है कि 1940 के ऑस्कर के लिए उनकी बनाई दो फिल्में बेस्ट पिक्चर के लिये नॉमिनेट हुई थीं – ‘रेबेका’ और ‘दी फ़ॉरेन करेस्पॉन्डेंट’। इसमें से ‘रेबेका’ उनकी पहली अमेरिकन फ़िल्म थी जिसे 13वें एकेडेमी अवॉर्ड्स में बेस्ट फ़िल्म का ख़िताब मिला।

फ्रेंच फ़िल्मों की नई धारा के संस्थापकों में से एक, ‘फ़्राँस्वा त्रुफ़ॉ’ ने एक बार कहा था कि जेम्स बॉन्ड की ज़्यादातर फ़िल्में हिचकॉक की फ़िल्मों की भौंड़ी नक़ल भर हैं। स्पेशली, ‘नॉर्थ ऑफ़ नॉर्थवेस्ट’ की। हिचकॉक ने एक नए तरह के सस्पेंस पैदा करनी की अनोखी शैली गढ़ी। इसमें वो सस्पेंस पहले ही दर्शकों के सामने रख देते हैं। इग्निशन या डेटोनेशन की तरह। फिर वो विस्फोट करके सस्पेंस की एक शॉक वेव पैदा कर देते। फ़िल्म क्रिटिक इसे ‘दी बॉम्ब थीअरी’ कहते हैं।

हिचकॉक ने अपनी फ़िल्मों में सोवियत फ़िल्ममेकर ‘लेव कुलेशोव’ के ‘मॉनटाज़ सिद्धांत’ का भी प्रयोग किया। हिचकॉक के अनुसार ऑडीअन्स के ज़ेहन में किसी कैरेक्टर को बिल्ट करने के लिए डायलॉग्स का सहारा लेना उचित नहीं, बल्कि कैरेक्टर निर्माण किसी भी घटना से उत्पन्न होने वाली रिएक्शंस से होना चाहिए। इसी के लिए उन्होंने ‘कुलेशोव’ के मोंटेज का उदाहरण लिया। इसमें एक सीन को एक ही फ़्रेम में न दिखा कर बल्कि उसे अलग-अलग सिक्वेन्शियल शॉट्स में डिवाइड करके दिखाया जाता है और और दर्शक उन शॉट्स के आपस इंटरेक्शन्स से परसेप्शन ड्रॉ करता है।

हिचकॉक ने अपनी कुछ फ़िल्मों यथा – ‘वर्टिगो’, ’साइको’, ‘रियर विंडो’, ‘बर्ड’ और ‘’फ़ैमिली प्लॉट’ में इस शैली का बखूबी प्रयोग किया है। ‘साइको’ फ़िल्म में तो ‘मॉनटाज़’ का प्रयोग एक कल्ट-क्लासिक का दर्ज़ा प्राप्त कर चुका है। आज भी फ़िल्म एडिटिंग के किसी भी कोर्स में ‘साइको’ का शॉवर वाला सीन ‘मॉनटाज़’ तकनीक समझाने का अपरिहार्य हिस्सा है। इसमें 48 सेकंड के दृश्य के लिए 75 अलग अलग शॉट्स प्रयोग में लाये गए थे।

या फिर ‘वर्टिगो’ में शूट किया जाने वाला वह ‘शॉट’ जिसे क्लासिक सिनेमा में ‘वर्टिगो शॉट’ के नाम से जाना जने लगा है।

सस्पेंस में घिग्घी बँधने से लेकर अटकती हुई हिचकी आने तक इस विधा को आप ‘हिच-हिच-हिचकॉकियन’ शैली कह लीजिये। और यही परम्परा न सिर्फ़ जेम्स बांड की फ़िल्में बल्कि आधुनिक सस्पेंस-थ्रिलर की जो शैली आज दर्शकों को रोमांचित, उत्तेजित और उत्साहित करती है, उन सभी के प्रणेता एल्फ़्रेड हिचकॉक ही हैं। फ़िल्मों के उपासक आज इस सिद्धांत को ‘बाइबिल’ की तरह मानते हैं।

और क्योंकि हिचकॉक ने मूक सिनेमा का भी दौर भी देखा था तो उन्होंने अपनी फ़िल्म तकनीक में दृश्य, कथानक, कोण, बिंब, कैनवस और कोलाज़ पर डायलॉग से ज्यादा भरोसा किया। वह कहते भी थे कि अगर फ़िल्म के कथ्य की ज़िम्मेदारी डायलॉग्स पर आ जाए तो यह एक नीरस अभिव्यक्ति होगी। इसीलिए फिल्मों को शूट करने के पहले वे एक आर्किटेक्ट की तरह से फिल्म के दृश्यों का रेखांकन करते थे और फिर शूटिंग शुरू करते थे।

हिचकॉक की फ़िल्में देखते हुए आप पाएंगे कि पर्दे पर दो प्लॉट्स चल रहे हैं- एक जो आप देखते हैं और एक जो आप महसूस करते हैं।

हिचकॉक में आम लोगों के जीवन के ‘कॉमन फ़िय(र्)’ को पर्दे के फ़िय(र्) में बदल देने की महारत हासिल थी और उन्होंने दिखाया कि केवल भूत या घोस्ट ही डरावने नहीं हो सकते बल्कि साधारण सी चीजों से भी डर और सस्पेंस पैदा किया जा सकता है। और बहुत बार आप पाएंगे कि उनके फ़िल्मांकन में ‘क्लाइमेक्स’ फिर ‘एंटीक्लामेक्स’ ऑल्टरनेट रूप से आते रहते हैं और इस शैली का इस्तेमाल करते हुए हिचकॉक ‘सस्पेंस’ क्रिएट करने की एक ‘कन्स्पिरसी’ कर बैठते हैं।

यही उनका सर्वोच्च आउटकम के रूप में आता है। कुल मिलाकर, अल्फ़्रेड हिचकॉक की हर फ़िल्म अपने आप में एक पाठशाला है। नौसिखिये और वेटरन दोनों ही फ़िल्म निर्माताओं के लिए।

यदि आप किसी भी हॉरर फ़िल्म के किसी भी सीन पर चीख पड़ें, या सस्पेंस में अपनी मुट्ठियों को भींचते हुए कुर्सी पर चिपक जाएं तो आप एक बार अल्फ़्रेड हिचकॉक को धन्यवाद जरूर दे दें।

सस्पेंस के महानतम चितेरे को उसके होने के 125वें वर्ष में हम फिल्म प्रेमियों की तरफ से याद और श्रद्धांजलि पहुंचे।

 

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