भारत के संविधान में वर्णित धर्म-निरपेक्षता की शपथ लेने के बावजूद विश्व हिंदू परिषद और संघ के एजेंडे के प्रचारक के तौर काम कर रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर यादव को इलाहाबाद हाई कोर्ट की ही एक खंडपीठ ने कोई राहत देने से इनकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति शेखर यादव के खिलाफ राज्यसभा में दाखिल महाभियोग प्रस्ताव को निरस्त करने की मांग करने वाली जनहित याचिका को खंडपीठ ने खारिज कर दिया है।
न्यायमूर्ति अताउर्रहमान मसूदी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने याची अधिवक्ता अशोक पांडे की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि जनहित याचिका का प्रधान सिद्धांत लोगों के कमजोर वर्गों का प्रतिनिधित्व करना होता है।
खंडपीठ ने कहा,’’ बहरहाल, हम यह नहीं पाते कि रिट याचिका में दर्ज कारण किसी कमजोर वर्ग के लोगों से संबंधित है। इसलिए, स्वीकार्यता की कसौटी पर यह जनहित याचिका अपने पहले पायदान पर कार्यवाही शुरू करने की शर्तों पर खरा नहीं उतरती है।‘’
बताते चलें कि न्यायमूर्ति यादव ने बीते 8 दिसंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट के प्रांगण में विश्व हिंदू परिषद के विधिक प्रकोष्ठ की ओर से आयोजित कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर बात करते हुए मुसलिम समुदाय पर खुला हमला किया था।
उन्होंने कहा था कि देश बहुसंख्यकों की इच्छानुसार चलेगा। उन्होंने सीधे पर मुसलिम समुदाय का नाम नहीं लिया था, मगर कहा था कि ऐसे लोगों के बच्चे कैसे दयालु और सहनशील होंगे, जिनके सामने पशुओं का वध किया जाता है। उनके इस भाषण का वीडियो वायरल होते ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी।
इस वीडियो की देश भर में आलोचना हुई और तमाम विधि विशेषज्ञों ने इसे नफरती भाषण माना था। बाद में न्यायमूर्ति यादव को सुप्रीम कोर्ट ने तलब भी किया था और उनसे कुछ अहम मामलों की सुनवाई भी छीन ली थी।
नफरती भाषण को आधार मानकर विपक्ष के छह सांसदों ने न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया है। प्रस्ताव में उन पर नफरती भाषण देने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़कर संविधान विरोधी कृत्य करने का आरोप लगाया गया है।
इस संबंध में हाल ही दिए अपने एक इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता कॉलिन गोंजावेल्स ने न्यायमूर्ति यादव के विरुद्ध की गई कार्रवाई को नाकाफी बताते हुए सीधे एफआइआर दर्ज करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि नफरती-भाषण के लिए किसी को कोई छूट नहीं है।