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हरियाणा चुनाव में तैतीस सीटों पर धांधली के आरोप

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मतदान पश्चात ईवीएम की बैटरियों में 99 फीसदी चार्जिंग

कामेश्वर

हरियाणा चुनाव में कांग्रेस ने तैतीस सीटों पर धांधली के आरोप लगाए हैं जिनमें से बीस सीटों के प्रामाणिक दस्तावेज जुटाकर चुनाव आयोग को अभ्यावेदन किया है और शेष तेरह सीटों के दस्तावेजी सबूत जल्द प्रस्तुत करने की बात कही गई है। मुख्य आरोप यह है कि मतदान पश्चात जिन ईवीएम की बैटरियों में 99 फीसदी चार्जिंग होना पाया गया है उनमें सत्तर से अस्सी फीसद वोट भाजपा को मिले हैं। जिनमें 60-70 फीसदी चार्जिंग प्रदर्शित है उनमें कांग्रेस आगे है।

डिजिटल न्यूज़ चैनलों के साथ-साथ मुख्यधारा की मीडिया ने भी कहा कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव में विपक्ष की लहर है। हरियाणा में चुनाव कांग्रेस नहीं जनता लड़ रही है। चुनाव क्षेत्रों में न्यूज़ चैनलों के इंटरव्यू में ऐसा दिखता भी था। एक्ज़िट पोल में बताया गया कि हरियाणा में कांग्रेस पचास से लेकर बहत्तर सीट पाने जा रही है। भाजपा पंद्रह से लेकर बत्तीस तक सिमट जाएगी। फील्ड में घूमने वाले और न्यूज़ चैनलों पर बहस करने वाले पत्रकार भी यही बता रहे थे। कुछ पत्रकारों ने तो यहां तक दावा किया कि अगर नतीजे ऐसे ही नहीं आए तो वे पत्रकारिता छोड़ देंगे।

चुनाव विश्लेषण करने वाले योगेंद्र यादव ने भी कहा कि हरियाणा में कांग्रेस की हवा चल रही है, यह आंधी भी हो सकती है। और ज़्यादा चली तो सुनामी भी। लेकिन चुनावों के नतीजे उम्मीद के उलट आए तो उन्होंने कहा कि कई बार चुनाव सर्वेक्षक और विश्लेषक माहौल को भांप नहीं पाते। कोई अंडर करंट चल रहा था जिसे वे भी भांप नहीं पाए। ईवीएम की धांधली के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे कोई तकनीकी विशेषज्ञ नहीं हैं और उनके पास धांधली का कोई सबूत नहीं है इसलिए इस बारे में वे कुछ कह नहीं सकते। खैर, योगेंद्र यादव ही क्यों, वैकल्पिक मीडिया के कई दिग्गज विश्लेषक भी कथित अंडर करंट को भांप न पाने के लिए खुद को लानत भेजने लगे। उन्हें कांग्रेस पार्टी और नेताओं की वे कमियां, जिन्हें भाजपा प्रचारित कर रही थी, बड़ी दिखाई देने लगीं जिन्हें वे उसकी लहर के सामने नगण्य मानकर उसकी शानदार जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे।

चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा खेमे में मायूसी का आलम था। उन्हें गांवों में घुसने से रोका जा रहा था। उनकी सभाओं और रैलियों में लोग जुट नहीं रहे थे। खट्टर जैसे बड़े नेता तो खुले में प्रचार करने के बजाय बंद हॉलों में प्रचार कर रहे थे। एक चुनाव क्षेत्र में पार्टी के एक कार्यकर्ता द्वारा उम्मीदवार की जीत के प्रति नाउम्मीदी जताए जाने पर उसे हॉल से बाहर निकलवा दिया।

मुख्यधारा की मीडिया द्वारा यह प्रचारित कराया जाने लगा कि हरियाणा कांग्रेस में फूट है। भूपेंद्र हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला अलग-अलग दिशाओं में चल रहे हैं। हुड्डा नहीं चाहते कि पार्टी को पचपन से ज़्याद सीटें मिले। नहीं, उनकी दावेदारी कमजोर पड़ जाएगी। हाई कमान हावी हो जाएगा। इसलिए हुड्डा आमआदमी पार्टी और सपा के साथ गठबंधन कर ज़्यादा सीटें जीतने के पक्ष में नहीं हैं। टिकट वितरण में उन्होंने हाई कमान की नहीं चलने दी और अपने बहत्तर उम्मीदवार मैदान में उतार दिए। कुमारी सैलजा के कोटे से केवल सात उम्मीदवार उतारे गए इसलिए वे नाराज होकर घर बैठ गईं और न्यूज़ चैनलों को इंटरव्यू देकर अपनी भड़ास निकालने लगीं। पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर ने उन्हें अपनी पार्टी में आने का न्यौता भी दे दिया। सुरजेवाला अपने बेटे को ही जिताने में लगे रहे। राहुल और प्रियंका गांधी ने प्रचार अभियान में उतरने में देरी कर दी।

इसी बीच राहुल गांधी अपनी अमरीका यात्रा से लौटे और उनका डंकी वीडियो वाइरल हुआ जिसमें वे डलास में पंद्रह/दस फीट के कमरे में रह रहे हरियाणा के उन डंकी युवाओं से मिले थे। फिर वे करनाल जाकर उन युवाओं के परिवार से भी मिले और हरियाणा में बढ़ रही बेरोजगारी और नशाखोरी का मार्मिक चित्र खींचा। इस तरह हरियाणा में उनके चुनाव प्रचार का आगाज़ हुआ और उनके प्रचार में न आने शिकायत करने वाले चुनाव विश्लेषक कहने लगे, दे आयद, दुरुस्त आयद।

फिर राहुल गांधी वहां लगातार वाहन और पैदल चलकर हाईब्रिड यात्रा करने लगे जिसमें डंकियों के बहाने बढ़ती बेरोजगारी और नशाखोरी के संबंध में भावुक अपील करने लगे। किसान (एमएसपी की गारंटी), जवान (अग्निपथ योजना को बंद कर फौज में सामान्य भर्ती, दो लाख रिक्त पदों पर भर्ती), पहलवान (शारीरिक शोषण के खिलाफ न्याय) और संविधान की रक्षा के नारे लगाते हुए छत्तीस बिरादरी की सरकार बनाने की गारंटी देने लगे। इसके अलावा, घोषणा पत्र में महिलाओं, युवाओं, किसानों और आम जनता के लिए सात प्रकार की रेवड़ियां बांटने का ऐलान भी किया। उन्होंने हुड्डा और कुमारी सैलजा का हाथ मिलवाकर उनके बीच मन-मुटाव दूर कर देने का प्रदर्शन भी कराया। मतदान से एक दिन पहले दलित नेता अशोक तंवर को भाजपा से निकाल कर अपनी पार्टी में शामिल करा लिया। उनकी प्रचार यात्रा और रैलियों में भारी भीड़ उमड़ने लगी।

इधर मोदी ने चुनाव प्रचार में अधूरे मन से भाग लिया और फिर चुनाव से हफ्ते भर पहले ही वहां से भाग लिए। उनकी पहली रैली में मुश्किल से पांच हजार लोग जुटाए जा सके। उधर वरिष्ठ भाजपा नेता अनिल विज खुद मुख्यमंत्री बनने के दावे ठोक रहे थे। नायब सिंह सैनी को अपने विधानसभा क्षेत्र लाडवा में पिछड़ते बताया जाने लगा। खट्टर की अलोकप्रियता के मद्देनज़र उन्हें चुनाव प्रचार और पोस्टरों से गायब कर दिया गया। पोस्टरों में मोदी भी दिखने बंद हो गए। ताकि हार का ठीकरा मोदी के सिर न फूटे।

चुनाव विश्लेषकों द्वारा बार-बार यही कहा जाता रहा कि मतदाता कांग्रेस को जिताने के लिए नहीं, बल्कि भाजपा को हराने के लिए वोट करेंगे। जब नतीजे निकले तो पासा पलट गया। भाजपा 48 सीट जीत गई और कांग्रेस 37 पर सिमट गई।

इस नतीजे से सभी भौंचक रह गए। मतदाता भी और चुनाव विश्लेषक भी। चुनावी पंडितों को अपनी समझ पर संदेह होने लगा। आखिर उनसे कहां चूक हो गई? अंडर करंट को वे समझ कैसे नहीं पाए। उन्होंने मान लिया कि सच में कोई अंडर करंट था। सड़क पर जो दिख रहा था वह सही नहीं था। फिर वे भाजपा की जीत को वास्तविक बताने के लिए उसके समर्थन में तर्क गढ़ने लगे-

1.जाट और गैर-जाट के बीच की खाई (मानों, जाटों का कथित अत्याचार संविधान संशोधन से होने वाले नुकसान से ज़्यादा घातक हो।)
2. सीएम पद की खींच-तान (मानों, यह केवल कांग्रेस की ही समस्या रही हो।)

3. अति आत्मविश्वास (मानों, यह केवल कांग्रेस की ही समस्या रही हो। नतीजे निकलने से एक दिन पहले मुख्यमंत्री सैनी भरी सभा में कह रहे थे कि जीत के लिए निश्चिंत रहो। हमने सब व्यवस्था कर दी है। यह अति आत्मविश्वास नहीं था?)

4. इंडिया गुट के सहयोगियों के साथ गठबंधन न करने का फैसला। (चुनाव विश्लेषकों के अनुसार जब मतदाताओं ने भाजपा को उसके जनविरोधी नीतियों के कारण हराने का संकल्प ले लिया था तो वे दूसरे दलों पर अपना अमूल्य वोट क्यों खराब करते?)

5. पन्ना प्रमुखों का संगठनात्मक मशीन। (पन्ना प्रमुख क्या सम्मोहन विद्या जानते हैं जो मतदाता को अपने हित-अनहित सोचने के विवेक को छिन लेते हैं और एक ही दिन में उसके मत को पलट देते हैं। तब तो दूसरे दल कभी चुनाव नहीं जीत सकते।)

दरअसल, मीडिया और चुनाव विश्लेषक जिधर बम उधर हम के कायल दिखे। वे चित भी मेरी और पट भी मेरी की चाल चलने लगे। मुख्यधारा की मीडिया को छोड़ भी दिया जाए तो वैकल्पिक सोशल मीडिया के चुनाव विश्लेषक भी भाजपा की जीत की दबसट में अपने ही अनुमानों को झुठलाने लगे। वैकल्पिक न्यूज़ चैनल का एक एंकर कह रहा था कि भाजपा ने हरियाणा चुनाव अपने पराक्रम से जीत लिया। अब वे जिन बातों को पराक्रम समझ रहे हैं उनकी बानगी कुछ इस प्रकार है-

ईडी, आईटी और सीबीआई के माध्यम से भयादोहन के ज़रिए इलेक्टोरल बांड से संचित किया गया अकूत धन जिसे चुनावी मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त किया जाता है, हर बूथ पर पन्ना प्रमुख तैयार किया जाता है और अब तो पन्ना समिति बनाने की तैयारी है। मतदाताओं को भी खूब बांटा जाता है। प्रॉक्सी उम्मीदवारों और वोट कटवा दलों को खड़ा कर उन्हें इफरात पैसा बांटा जाता है। राहुल गांधी पैदल तो चंद्रशेखर हेलीकॉप्टर से प्रचार कर रहे थे। विरोधी पार्टियों के खाते बंद कर दिए जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से खोले भी जाते हैं तो उन्हें सरकार के डर से कोई चुनावी चंदा देना नहीं चाहता।

केंद्रीय वित्त मंत्री, भाजपा और अन्य पर भयादोहन का केस चल रहा है। कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश से उन पर एफआईआर दर्ज कर लिया गया है। लेकिन अब सीजेआई ने उस केस को अपने पास भेजने का आदेश दे दिया है।

पिछले आम चुनाव में 79 सीटों पर ईवीएम से धांधली का एडीआर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर केस लंबित है जिसमें न्याय मिलने की संभावना अब तक तो नहीं दिखती। इसी संबंध में 2019 में भी दायर किया गया केस आज तक लंबित चला आ रहा है।

हरियाणा चुनाव में कांग्रेस ने तैतीस सीटों पर धांधली के आरोप लगाए हैं जिनमें से बीस सीटों के प्रामाणिक दस्तावेज जुटाकर चुनाव आयोग को अभ्यावेदन किया है और शेष तेरह सीटों के दस्तावेजी सबूत जल्द प्रस्तुत करने की बात कही गई है। मुख्य आरोप यह है कि मतदान पश्चात जिन ईवीएम की बैटरियों में 99 फीसदी चार्जिंग होना पाया गया है उनमें सत्तर से अस्सी फीसद वोट भाजपा को मिले हैं। जिनमें 60-70 फीसदी चार्जिंग प्रदर्शित है उनमें कांग्रेस आगे है।

बलात्कार और हत्या के आरोप में सजायाफ़्ता बाबा राम-रहीम को पैरोल/फरलो पर बार-बार छोड़कर उसके अनुयायियों को प्रभावित करवाना। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक ठहरा कर बंद तो करा दिया। लेकिन इसके माध्यम से इकठ्ठे किए गए धन की न तो वसूली करवाई और न इसमें लिप्त मंत्रियों, पदाधिकारियों और संस्थाओं की जांच। इकठ्ठा किया गया धन चुनावों को प्रभावित करने में धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है। इसी तरह महाराष्ट्र में जोड़-तोड़ और खरीद-फ़रोख्त से बनाई गई सरकार को असंवैधानिक ठहराया गया था, लेकिन बर्खास्त नहीं किया गया।

कांग्रेस में संगठनात्मक कमियां हैं। उसमें भी स्वार्थी नेताओं की कमी नहीं है। पर राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के अभियान पर जनता ने भरोसा करना शुरू कर दिया है। हरियाणा की जनता भाजपा के दस साल के कुशासन से तंग आ चुकी थी। चुनाव विश्लेषक कह रहे थे कि वह कांग्रेस को जिताना नहीं चाहती, पर भाजपा को हराना चाहती है। कांग्रेस की जीत तो इस चुनाव के डिफाल्ट में है। तो क्या उसने भाजपा के कथित पराक्रम से पराभूत होकर उसे जिता दिया। बात गले से नहीं उतरती।

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