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 युद्ध,प्रेम,खेल और राजनीति में सब जायज़ है?

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शशिकांत गुप्ते

समाज की विकृतियों,दुराचार और विभिन्न बुराइयों को दूर करने के लिए कहावतें बनी है। कहावतें मतलब ही व्यंग्य हैं।
युद्ध, प्रेम, खेल में सब जायज़ है।
इसका कतई यह मतलब नहीं है कि युद्ध, प्रेम और खेल में बेईमानी करने के बाद यह कहा जाए कि सब जायज़ है।
युद्ध, प्रेम,खेल के साथ अब इसमें राजनीति को जोड़ लिया है।
इस कहावत में राजनीति ना जोड़ें, तब भी प्रेम,युद्ध और खेल वर्तमान में राजनीति से अछूते कहा रहें हैं।
राजनीति में नीति हाशिए पर चली गई है। सिर्फ राज ही राज रह गया है।
राजनीति में सलग्न हरएक व्यक्ति को सत्ता चाहिए। चाहे सत्ता शासन में या संगठन में कोई महत्वपूर्ण पद चाहिए।
इनदिनों सफाई अभियान पर बहुत सक्रियता दिखाई दे रही है।
सफ़ाई सिर्फ सड़कों और घरों के कचरे तक सीमित होकर रह गई है।
राजनीति में जब झाड़ू का कीचड़ से अदृश्य तरीके से अघोषित समझौता होने का राजनैतिक गलियारों में आरोप लगता है?
तब सफाई पर ही प्रश्न उपस्थित होता है?
देश की राजधानी में कोई हाथों में झाडू थामें कचरें के ठेर पर चढ़कर के चुनाव जीत जाता है।
कोई कहता है, अब आया ऊंट कचरें के पहाड़ के नीचे।
इस तरह के वक्तव्य सुन कर राजनीति का स्तर कितना नीचें गिर चुका है,यह स्पष्ट हो जाता है।
इनदिनों राजनैतिक उपलब्धियों को नैतिकता को ताक में रखकर विज्ञापनों में दर्शाने की मानो प्रतिस्पर्धा ही चल रही है।
राजनीति में एक ओर अव्यवहारिक प्रतिस्पर्द्धा का उदय हुआ है,वह है रेवड़ियाँ बांटने की प्रतिस्पर्धा?
मुफ्त मुफ्त मुफ्त,का उठाओ लुफ्त लुफ्त लुफ्त।
मुफ्त बांटने की घोषणा और उसका विज्ञापनों में दिखाया जाने वाला क्रियान्वयन देखकर
वे तमाम खबरें झूठी लगने लगती है। जिन खबरों में कुपोषण से पीड़ित देश के नोनिहाल दिखाई देतें हैं?
राजनीति में मुफ्त बांटने का प्रचलन ठीक वैसा ही प्रतीत होता है जैसा तमाम धार्मीक स्थानों पर भिखारियो को भीख दी जाती है।
एक ओर देश की आर्थिक स्थिति दयनीय हो रही है। दूसरी ओर धार्मीक कथावाचको के भव्य आयोजन पर,और राजनैतिक दलों की रैलियों पर होने वाले बेतहाशा खर्च को देखकर, देश की आर्थिक स्थिति की दयनीयता मिथ्या लगने लगती है?
कारण उक्त दोनों आयोजनों में लगने वाला खर्च निश्चित ही श्वेत रंग के धन का ही होगा?
यही मानना उचित होगा?
एक ओर कुछ एनजीओ मतलब गैर सरकारी कथित समाज सेवी आमजन से पुराने उतरे कपड़े गरीबों को वितरित करने के लिए मांग कर एकत्रित करतें हैं।
दूसरी ओर स्वयम्भू जन सेवक दिन में चार पर कीमती परिधान बदलतें हैं?
इसीलिए यह कहावत सटीक है।
युद्ध,प्रेम,खेल और राजनीति में सब जायज़ है। अब इस कहावत में धर्म को भी जोड़ना चाहिए?
युद्ध, प्रेम, खेल, राजनीति और धर्म में सब जायज़ है?

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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