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जन विरोधी नीतियों की वजह से पतन की ओर बढ़ता हुआ अमेरिकी साम्राज्यवाद

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मुनेश त्यागी

         पूंजीवादी व्यवस्था ने पिछले 250 सालों में काफी प्रगति और विकास किया है। उसने कई देशों में सामंती और जमींदारी व्यवस्था के शोषण और अन्याय को कम किया था। जब से समाजवादी व्यवस्था को धरती पर स्थापित किया गया तब से इस समाजवादी व्यवस्था ने पूंजीवादी व्यवस्था में छाई लूट, शोषण, जुल्मों सितम और साम्राज्यवादी पूंजीवादी शोषण, अन्याय और प्रभुत्ववादी, विस्तारवादी नीतियों और युद्धों पर प्रभावी रोक लगाई थी।

      समाजवादी व्यवस्था ने जनता को उसके मूलभूत अधिकार जैसे भोजन, वस्त्र, मकान, रोजगार और स्वास्थ्य की जैसी बुनियादी सुविधाएं मोहिया कराईं और देश के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल अपनी जनता और देश के विकास के लिए किया और इन्हीं नीतियों से कई सारे देशों को मदद की और इस प्रकार हजारों साल से चले आ रहे जमींदारी, सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था के अन्यायी, शोषणकारी और जन विरोधी स्वरूप को बदला और पूंजीवादी मुल्कों को जन कल्याणकारी कदमों और नीतियों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा और इन साम्राज्यवादी मुल्कों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूरोपियन यूनियन, कनाडा जापान आदि को कल्याणकारी राज्य के स्वरूप को अपने को मजबूर होना पड़ा। 

      1991 की सोवियत यूनियन की प्रतिक्रान्ति से दुनिया की तस्वीर बदल गई और साम्राज्यवादी पूंजीवादी लुटेरे मुल्क फिर से धीरे-धीरे अपने शोषणकारी, अन्यायकारी, प्रभुत्ववादी, युद्धोनवादी और जनविरोधी स्वरूप में लौट गए। 

    इन जन विरोधी साम्राज्यवादी मुल्कों ने अपने हत्यारे और आक्रामक समूह और गठबंधन जैसे नाटो,  जी7, और यूरोपियन यूनियन जैसे गठबंधन बनाकर दुनिया को रौंदने, लूटने और कब्जाने की मुहिम शुरू कर दी और वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन, विश्व बैंक, इंटरनेशनल मोनेटरी फंड जैसी वैश्विक संस्थाएं बनाकर अपने लिए अपने लुटेरे साम्राज्यवाद और पूंजीवादी नीतियों का विस्तार करना और जोरदार तरीके से शुरू कर दिया।

     अमेरिका और इन पूंजीवादी साम्राज्यवादी मुल्कों ने पूरी दुनिया को अपनी टेक्नोलॉजी के विकास के माध्यम से लूट कर अपने-अपने देश में धन और संप्रदाय इकट्ठी कर ली। पूरी दुनिया से ब्रेन ड्रेन को गति प्रदान की और मध्यम वर्ग और अधिकारी वर्ग को मोटी मोटी तनख्वाह देकर दुनिया के लोगों का मनमोहा और अपने प्रति उनकी सहानुभूति बटोरी और पूरी दुनिया में अपना धन-धान्य पूर्ण रुतबा कायम किया जिसे दुनिया के बहुत सारे लोगों का उनके प्रति झुकाव और लगाव पैदा हुआ।

     इसी के साथ-साथ उन्होंने पहले सोवियत संघ के काम करने में बधाई डाली और अब चीन, क्यूबा, वियतनाम, उत्तरी कोरिया, ईरान, इराक, लीबिया, वेनेजुएला, बोलिविया, ब्राजील जैसे समाजवादी और जनतांत्रिक मुल्कों को अपनाने वाले देशों की प्रगति और विकास में तमाम तरह की बाधाएं उत्पन्न कर दी और धीरे-धीरे उन्होंने अपने साम्राज्यवादी लुटेरे देशों के समूहों द्वारा इन समाजवादी देशों का काम करना जैसे मुश्किल कर दिया और अब इन्होंने पूरी दुनिया में अपना एकतरफा, प्रभुत्ववादी दबदबा कायम कर लिया है।

       अब स्थिति यहां तक खराब हो गई है कि अमेरिकी साम्राज्यवाद अपना वैश्विक लुटेरा दबदबा कायम करने के लिए और ज्यादा आक्रामक और युध्दोन्मादी नीतियां अपनाकर पूरी दुनिया का जीना मुहाल कर रहा है जो आज यूक्रेन और फिलिस्तीन में अपना विनाशकारी रूप दिखा रही हैं। अमेरिका नॉर्थ कोरिया को लगातार धमकता रहता है। अमेरिका चीन और ताइवान में युद्ध करने की स्थिति पैदा कर रहा है और अब फिलहाल अमेरिका  दलाई लामा को मोहरा बनाकर तिब्बत और चीन के बीच खाई पैदा करने की नीति अपना रहा है। 

     अमेरिका ने अपनी साम्राज्यवादी और वैश्विक प्रभुत्वकारी और आक्रामकता की नीतियों और लूट को कायम रखने के लिए पश्चिम एशिया, यूरोप और पूर्वी एशिया के क्षेत्रों में और दुनिया के अनेक देशों में अपने सैनिक अड्डे कायम कर लिए हैं और वहां पड़ोसी देशों को युद्ध की विभीषिका में धकेल दिया है और उनके आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी करके जनता के हक में काम करने की उनकी नीतियों को रोक रहा है। उनमें तरह तरह की बाधाएं पैदा कर रहा है।

       इन सबसे परेशान होकर दुनिया के अधिकांश समाजवादी मुल्कों और दूसरे जनतांत्रिक मुल्कों जैसे रूस, चीन, उत्तरी कोरिया, क्यूबा, वियतनाम, लाओस, भारत, ब्राजील, ईरान, दक्षिणी अफ्रीका, सउदी अरब आदि देशों ने BRICKS और SCO जैसे आपकी सहयोग पर आधारित समूह बना लिए हैं जो समाज साम्राज्यवादी मुल्कों की दादागिरी, फासीवादी, युद्धोन्मादी नीतियों और वैश्विक प्रभुत्वकारी नीतियों का जोरदार प्रतिवाद करने में लगे हैं। अब BRICKS समूह में शामिल होने वाले देशों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

      इस प्रकार अमेरिका अपनी वैश्विक प्रभुत्वकारी, युद्धोन्मादी और आक्रामक नीतियों के करण लगातार पतन की ओर अग्रसर है और युध्दखोर  अमेरिका की वर्तमान नीतियां पूरी दुनिया को बता रही है कि उसने जनतांत्रिक मूल्यों को धराशाई कर दिया है, बोलने की आजादी और प्रैस की आवाज पर प्रतिबंध लगा दिए हैं और वह पूरी दुनिया पर अपनी दादागिरी किसी भी कीमत पर थोपने को बेचैन है,  जिसका दुनिया के अधिकांश मुल्क विरोध कर रहे हैं। इन्हीं सब कारणों से अमेरिका का वैश्विक प्रभुत्वकारी, युद्धोन्मादी और साम्राज्यवादी दबदबा अब पतन की ओर जाना शुरू हो गया है।

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