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अमरीका की बुजदिली और धोकेबाजी

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हिसाम सिद्दीकी

यूक्रेन के मामले और उसपर रूस के हमले के वक्त एक बार फिर साबित हो गया कि अमरीका दुनिया का सबसे बड़ा धोकेबाज और बुजदिल मुल्क है। अमरीका अपनी ताकत सिर्फ उन्हीं मुल्कों पर दिखाने का काम करता है जो मुल्क बहुत कमजोर हों या अमरीका के दोस्त रहे हों। यह हरकतें अमरीका ने इराक के साथ की, लीबिया के साथ की, सीरिया के साथ की, इन तीनों पर बाकायदा हमले किए। इराक और लीबिया को तो पूरी तरह तबाह करके सद्दाम हुसैन और कर्नल कज्जाफी को कत्ल तक करा दिया। सीरिया को तबाह किया, पाकिस्तान, फिलिस्तीन और टर्की जैसे मुल्कों के साथ धोकेबाजी की, ईरान ताकतवर था तो आज तक उसपर अमरीका हमला करने की हिम्मत नहीं कर सका सिर्फ अमरीका ही नहीं उसके साथ ‘नाटो’ के नाम पर लगे मुल्कों का भी रवैय्या ऐसा ही है। वह भी अमरीका की तरह पूरी दुनिया से झूट बोलते हैं कमजोर मुल्कों पर हमला करके उन्हें लूटते हैं फिर उनपर कब्जा करके उनकी तमाम जायदादें और कुदरती वसायल यानी पेट्रोल, हीरे-जवाहारात और यूरेनियम वगैरह की लूट मुसलसल जारी रखते हैं।
अमरीका और उसके नाटो साथियों की धोकेबाजी की ताजा तरीन मिसाल यूक्रेन के मामले में भी दुनिया के सामने आई है। पहले तो यूक्रेन को उकसाया उसे भी नाटो मुल्कों में शामिल करने की बात की उस वक्त रूस ने यूक्रेन को धमकाया और समझाया कि रूस किसी भी कीमत पर अपने पड़ोस में सरहद पार ‘नाटो’ फौजों की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं कर सकता लेकिन अमरीका और नाटो मुमालिक के वर्गलाने में फंसा यूक्रेन किसी भी तरह रूस की बात समझने और मानने के लिए तैयार नहीं हुआ। रूस को अमरीका की चाल पर शुरू से ही शक था नतीजा भुगतना पड़ गया यूक्रेन को।
जब यूक्रेन पर रूस ने हमला कर दिया तो अमरीका यह कह कर भाग खड़ा हुआ कि नाटो अपनी फौज इस जंग में नहीं भेजेगा हम यूक्रेन को बस असलहा देंगे। इन हालात का मतलब यह भी नहीं है कि रूस के यूक्रेन पर हमले को किसी भी कीमत पर जायज ठहराया जा सकता है। अगर यूक्रेन रूस की बात को नजरअंदाज करके नाटो मुमालिक में शामिल होना चाहता था और रूस के मुताबिक यूक्रेन में रहने वाली रूसी आबादी के साथ यूक्रेन का सलूक अच्छा नहीं था तो उसे इस सबसे बाज रखने के और भी कई तरीके हो सकते थे। दोनों मुल्कों की एक लम्बी सरहद आपस में मिलती है। रूस ताकतवर है वह यूक्रेन पर कई किस्म की पाबंदियां लगा सकता था, रोजमर्रा की तिजारत रोक सकता था, जंग तो आखिरी मरहला होना चाहिए था। जब तमाम कार्रवाइयां नाकाम साबित हो जातीं और यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाता तब जंग या हमले की नौबत आनी चाहिए थी।
हमने इस मजमून की शुरूआत अमरीका की बुजदिली और धोकेबाजी बयान की है तो तारीख गवाह है कि अमरीका उन्हीं मुल्कों पर हमला करता है जिनके तमाम मामलात से वह बखूबी वाकिफ होता है। इराक के हुक्मरां सद्दाम हुसैन अमरीका के सबसे नजदीकी दोस्त हुआ करते थे। अमरीका के भड़काने पर ही सद्दाम हुसैन ने ग्यारह सालों तक ईरान के साथ जंग की, जंग लड़ने के लिए तमाम हथियार भी उसे अमरीका ने ही फराहम किए थे। ईरान के साथ जंग चल ही रही थी कि अमरीकी एजेंंसियों ने सद्दाम हुसैन को यह कह कर उकसाया कि कुवैत तो इराकी तेल कुओं से बड़े पैमाने पर तेल की चोरी कर रहा है। सद्दाम हुसैन को इस हद तक उकसाया कि उन्होने कुवैत पर कब्जा ही कर लिया, बस अमरीका को मोका मिल गया फौरन अमरीका और ब्रिटेन ने पूरी दुनिया के सामने झूट फैलाया कि इराक ने तो इंसानी तबाही के एटमी हथियार बना रखे हैं। इसी झूट के सहारे इराक पर हमला करके उसपर तकरीबन काबिज हो गया। लीबिया के कर्नल कज्जाफी ने जबतक अमरीका का दौरा नहीं किया था और अमरीका उन्हें समझ नहीं पाया था उस वक्त तक अमरीका ने लीबिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी लेकिन जैसे ही सद्दाम हुसैन की तरह कर्नल कज्जाफी को अमरीका समझ गया उसपर हमला करके पूरा मुल्क तबाह कर दिया और कज्जाफी का पूरा खानदान खत्म कर दिया। अमरीका ने वेनेजूएला और ब्राजील जैसे मुल्कों के साथ भी धोकेबाजी ही करके उन्हें तबाह व बर्बाद कर दिया।
वियतनाम को अमरीका पूरी तरह समझ नहीं पाया था अफगानिस्तान में बीस साल की लम्बी मुद्दत तक काबिज रहने के बाद भी अमरीका अफगानिस्तान और अफगानियों को अच्छी तरह समझ नहीं सका तो दोनों मुल्कों से ही उसे लम्बी मुद्दत के बाद दुम दबा कर भागना पड़ा। बराबर में क्यूबा है वहां अब फीदल कास्त्रो जैसा ताकतवर हुक्मरां भी नहीं रहा इसके बावजूद अमरीका आज तक क्यूबा का कुछ बिगाड़ नहीं सका। इंतेहा यह कि क्यूबा की सरहद पर दीवार बनाने का काम शुरू किया था उसे भी बाद में रोक दिया गया। अब यूक्रेन का मामला आया तो कह दिया कि नाटो मुल्क रूस के खिलाफ अपनी फौजें तो नहीं भेजेंगे लेकिन यूक्रेन को असलहा जरूर सप्लाई करते रहेंगे यानी महज एक बहाना।
अमरीका को 1971 में भारत-पाकिस्तान जंग और बांग्लादेश की शक्ल में एक नया मुल्क के वजूद के वक्त भी मुंह की खानी पड़ी थी उस वक्त अमरीका ने भारत के सामने बुजदिली दिखाने और अपने जिगरी दोस्त पाकिस्तान के साथ धोकेबाजी का मुजाहिरा ही किया था। रिचर्ड निक्सन अमरीका के सदर थे भारतीय वजीर-ए-आजम इंदिरा गांधी दीगर अहम और बड़े समझने वाले मुल्कों के हुक्मरान से मिलकर यह बताने गई थीं कि भारत अब पाकिस्तान के खिलाफ फैसलाकुन कार्रवाई करके पूर्वी पाकिस्तान को अलग मुल्क बनवा देगा। वह अमरीका गईं सदर निक्सन के साथ डिनर पर उनसे बातचीत हुई, बातचीत के दौरान इंदिरा गांधी ने निक्सन को भी अपने इरादों से बाखबर किया तो निक्सन बोले कि आप ऐसी कार्रवाई नहीं कर सकतीं हम आपको इसकी इजाजत नहीं दे सकते इंदिरा गांधी ने व्हाइट हाउस की डायनिंग ैटेबिल पर बैठे-बैठे निक्सन को सबक सिखाते हुए कहा कि मैं आपको सिर्फ अपने मंसूबे की इत्तेला देने आई हूं आपसे इजाजत लेने की जरूरत मुझे नहीं है। पूर्वी पाकिस्तान में भारत की कार्रवाई शुरू हुई तो अमरीका ने पाकिस्तान की मदद में पचहत्तर हजार टन एटमी हथियारों और सत्तर लड़ाकू जहाजों से लैस अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी के लिए रवाना कर दिया। उस वक्त भारत के पास महज बीस हल्के लड़ाकू जहाजों से लैस बिक्रांत था। सोवियत यूनियन ने भी भारत की मदद का एलान कर दिया था। नतीजा यह कि अमरीका डर गया और आज तक उसका सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी तक नहीं पहुचा। दरम्यान में इंदिरा गांधी ने उस वक्त के डिफेंस मिनिस्टर जगजीवन राम से बयान दिला दिया कि अगर सातवां बेड़ा आया तो हम उसे बंगाल की खाड़ी में डुबो देंगे।

लेखक उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और उर्दू अखबार जदीद मरकज के संपादक हैं

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