अग्नि आलोक

धरती पर भी मिल जाते हैं फरिश्ते

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-नवीन जैन

जनीति, बलात्कार, अन्य अपराध, बॉलीवुड, रा दुर्घटनाएं, स्वास्थ्य दुर्दशाएं, सड़कों की बदहाली आदि से संबंधित समाचारों और लेखों को पढ़कर लाजिमी है कि आम पाठक ऊब जाए और वो निराशा के ऐसे अंधेरे में फंस जाए, कि जहां से निकलने की कोई पगडंडी तक नमिले। इसलिए आज बात करते हैं मानवीय संवेदना, आदमियत, इंसानियत और कृतज्ञता से भरी कुछ घटनाओं की। दुनिया चाहे जितनी स्वार्थी, मतलबी, असंवेदनशील युग की ओर जा रही है, मानव सभ्यता के हर युग में कुछ लोग ऐसे रहें हैं जिनकी वजह से मरा हुआ विश्वास फिर जिंदा हो जाता है। इसी कारण हम सोचने को विवश हो जाते हैं कि दुनिया कुछ अच्छे लोगों के भरोसे ही चल रही है। जो लोग जंगखोर हैं वो सिर्फ एक सिरफिरी और बदला लेने की भावना सेघिरे हैं। किसी के भी साथ जिंदगी में कभी भी ऐसा हो सकता है, लेकिन हमारे समाज में कुछ ऐसे संवेदनशील इंसान भी है जिनकी आत्मा में परोपकार नाम का एक ऐसा तत्व विद्यमान हैं, जो अनादिकाल से भारतीयता की पहली और मूल पहचान रहा है।

इसका पहला उदाहरण सुन लीजिए। मुंबई में खासकर दिन के समय सी क्लाइमेट से उपजी उमस जवान आदमी की ऊर्जा भी निचोड़कर रख देती है और यदि वो परदेसी है तो ज्यादा पैदल चलने के काबिल नहीं रहता। पिछली गर्मियों में मुझेएक जगह से कांदिवली नाम के उपनगर में जाना था। फटाफट ऑटो रोका, जवान ऑये ड्राइवर जबान से ही यूपी का बंदा लग रहा था। बैठ जाइए, उसने कहा। जब मैंने कहा कांदिवली जाना है तो वो कुछ सोचने लगा। फिर बोला मेरी गाड़ी से किराया 450 रुपए सेकम नहीं पड़ेगा और समय भी बहुत लग जाएगा। उसने हैरान करने वाली बात यह कही कि मैं सिर्फ 33 रुपए में आपको अपने गंतव्य पर पूरे आराम के साथ पहुंचा सकता हूं। समय भी बहुत कम लगेगा। मैने सोचा कथित रूप से पैसे के पीछे भागती इस मायानगरी में यह अनुभव भी करके देख लिया जाए। ऑटो वाले ने दस मिनिट के अंदर मुझे एक लोकल ट्रेन स्टेशन पर पहुंचा दिया। उसने मीटर की तरफ इशारा किया, जिसमें किराया लिखा हुआ था तेइस रुपए पचास पैसे।

ऑटो ड्राइवरमेरे साथ नीचे उतरा। टिकट खिड़‌की पर मुझे ले गया, दस रुपए का टिकट दिलवाया और फिर एक पुल तक ले गया। फिर बोला इस पुल पर चढ़कर चौथे नंबर प्लेटफार्म पर चले जाइए, वहां से आपको घोड़ी देर में कादिवली जाने वाली लोकल मिल जाएगी जो आधा घंटा या चालीस मिनट में आपको अपने मुकाम पर लगा देशी। इस बीच आप झपकी भी लगा लेना, क्योंकि इस वक्त सामान्यतः डिब्बे खाली रहते हैं। मैं उस चौथे नंबर प्लेटफार्म पर जाते हुए पलट-पलट कर उस जगह को देख रहा था, जहां उस ड्राइवर ने मुझे छोड़ा था। वो वहां से तत्काल चला गया, लेकिन मेरे लिए वो शख्स जमीं पर एक फरिश्ते के समान था और रहेगा। इसलिए नहीं कि

कुछ दिनों पहले एक ना मालूम से अखबार में दबी-छुपी खबर छपी कि एक बूढ़ा व्यक्ति कई जगह से फटे कपड़ों में अपनी पोती को लेकर एक महंगे रेस्टोरेंट में आया। पानी पीने के बाद उस बूढ़े व्यक्ति ने एक डोसा आर्डर किया। वेटर ने आश्चर्य से पूछा और आप क्या खाएंगे। बुजुर्ग शख्स ने बड़ी नम्रता लेकिन दृड़ता से कहा मेरे पास दूसरे डोसे के पैसे नहीं है। चूंकि, मैंने अपनी इस पोती सेवादा किया था कि यदि तू पूरे जिले में कक्षा बारहवीं में सर्वोच्च अंक से पास हुई तो तुझे इसी महंगे रेस्टोरेंट में डोसा खिलाऊंगा। यह सुनकर बेटर अंदर से हिल गया। उसने रेस्टोरेंट मैनेजर को बुजुर्ग और बच्ची की पूरी कहानी बताई और कहा कि इन दोनों को मैं भरपूर नाश्ता करवाना चाहता हूं। अभी मेरे पास पैसे नहीं है, लेकिन आप मेरे अगले वेतन में से यह राशि काट लेना।

उसके कारण मेरे पैसे बच गए, बल्कि इस वजह से कि खुद की भलाई के बजाय उसने मेरे हित को तरजीह दी। कुछ दिनों पहले एक ना-मालूम से अखबार में दबी-छुपी खबर छपी, कि एक बूढ़ा व्यक्ति कई जगह से फटे अपने कपड़ों में अपनी पोती को लेकर एक महंगे रेस्टोरेंट में आया। पानी पीने के बाद उस बूढ़े व्यक्ति ने एक डोसा आर्डर किया। वेटर ने आश्चर्य से पूछा और आप क्या खाएंगे। बुजुर्ग शख्स ने बड़ी नम्रता लेकिन दृढ़‌ता से कहा मेरे पास दूसरे डोसे के पैसे नहीं हैं। चूंकि, मैंने अपनी इस पोती से वादा किया था, कि यदि तू पूरे जिले में कक्षा बारहवीं में सर्वोच्च अंक से पास हुई तो तुझे इसी महगे रेस्टोरेंट में डोसा खिलाऊंगा। यह सुनकर वेटर अंदर से हिल गया। उसने रेस्टोरेंट मैनेजर को बुजुर्ग और बच्ची की पूरी कहानी बताई और कहा कि इन दोनों को मैं भरपूर नाश्ता करवाना चाहता हूं। अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं, लेकिन आप मेरे अगले वेतन में से यह राशि काट लेना। मैनेजर तो उससेएक कदम आगेनिकला। वो बुजुर्ग और बच्ची की टेबल पर आया। हालचाल पूछकर खूब शावाशियां बधाइयां और आशीर्वाद दिए, फिर एक बड़ा सा केक और मिठाइयां मंगाकर वहां उपस्थित सभी स्टॉफमेंबर और अन्य लोगों के साथ उस बच्ची की सफलताका फूल-माला पहनाकर जश्न मनाया गया औरतालियां बजाई गई। एक लंबा अरसा इस बीच गुजर चुका था। मैनेजर का निधन हो चुका था, लेकिन वो लड़की उच्च अध्ययन करके अपनी पहली पोस्टिंग के लिए संयोगवश अपने उसी मूल शहर में आई। एक शाम रेस्टोरेंट के प्रबंधन को खबर मिली कि इस जिले की नवनियुक्त कलेक्टर इस रेस्टोरेंट में फलां समय आने वाली है। रेस्टोरेंट को जल्दी-जल्दी पूरी तरह साफ-स्वच्छ किया गया। साज-सज्जा की गई और आवभगत के सारे इंतजाम भी कर लिए गए। थोड़ी देर बाद वह महिला कलेक्टर रेस्टोरेंट में आई। सबसे नमस्ते करने के बाद सालों पहले उसे और उसके दादाजी के साथ उसकी स्कूली सफलता का जश्न मनाने वाले उम्र से थक रहे वेटर के पास गईं। तत्काल उसके चरण छुए, फिर पुरानी सारी बातें याद दिलाई और कहा कि आप लोग यदि उत्साह नहीं बढ़ाते, प्रेरणा नहीं देते तो शायद मैं अपने ही जिले की कलेक्टर कभी नहीं बन पाती। अब उसके बाद दोनों के पास गले लगकर रोने के सिवा कुछ नहीं था। वहां मौजूद लोग फिर देर तक तालियां बजाते रहे। जिंदगी इसी को कहते हैं।

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