अग्नि आलोक

अधर्म का नाश हो*जातिवाद का विनाश हो* (खंड-1)-(अध्याय-32)

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संजय कनौजिया की कलम”

भाजपा को हराना असंभव तो नहीं”.. बहुत ही आसान है..कैसे आसान है, इसे समझने के लिए केवल भाजपा गठबंधन के रहे साथी दलों, पर ही नज़र डालें तो स्थिति बहुत कुछ बयां करती है..आज भाजपा के 2014 व 19 वाले गठबंधन के लगभग वे साथी दल जिनसे भाजपा गठबंधन कर अपनी सीटों में इजाफ़ा करती रही..वो भाजपा से किनारा कर बैठे.. जिसमे दो दल, महाराष्ट्र में शिवसेना और बिहार में जदयू..पंजाब में भी 3-4 सीट्स भाजपा, अकालियों की बैशाखी के सहारे पाती रही..आज ऐसा सिर्फ एक ही गठबंधन का साथी है, बीजू जनता दल (उड़ीसा).. जिससे गठबंधन करने से भाजपा को सीटों का लाभ मिलता है..आंध्रा में जगन रेड्डी, ने चुनाव बाद समर्थन दिया था वह भी केंद्र द्वारा आंध्र राज्य को आर्थिक पैकेज मिलता रहे..उस उद्देश्य को लेकर, इस दल का भाजपा से कोई चुनावी गठबंधन नहीं था..भविष्य में आंध्रा में कोई चुनावी गठबंधन होगा यह अभी कहा नहीं जा सकता..लेकिन उड़ीसा से उम्मीद बनती है कि वह भाजपा से किनारा कर ले..यदि नितीश कुमार कोशिश करें तो..लोजपा के दोनों पार्ट आज भी भाजपा के साथ हैं, लेकिन लोजपा के चाचा-भतीजा, भाजपा की सरदर्दी आने वाले समय में अवश्य बढ़ाएंगे..हरियाणा एक ऐसा राज्य है जहाँ भाजपा अपने गठबंधन के साथी दल के साथ कितनी भी कोशिश कर ले परिणाम शून्य ही आएगा, हरियाणा में भाजपा गठबंधन का बहुत बुरा हाल हो रखा है..इसका मुख्य कारण किसान आंदोलन का असर और किसान संघर्ष में पुलिस बर्बरता का घिनोना चेहरा तथा प्रदेश के अन्य लोगों की मूलभूत बुनयादी मांगों पर, खट्टर की भाजपा सरकार के द्वारा नज़रअंदाज़ करना है..हम बिहार-महाराष्ट्र-पंजाब और हरियाणा को लें तो, इन चार प्रदेशों में ही लोकसभा की, 111 सीट्स बनती हैं, जहाँ भाजपा गठबंधन के साथी दलों के साथ चुनाव लड़ती आई है..महाराष्ट्र में भाजपा शिव सेना, मिलकर चुनाव लड़ने से भले ही सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभरती रही लेकिन कांग्रेस और एन.सी.पी, भी कभी शून्य पर आउट नहीं हुए..यानी यहाँ टक्कर कड़ी होती रही है..इन राज्यों में भाजपा बिना गठबंधन के चुनाव लड़ती है, तो कम से कम भाजपा 60 सीटों का नुक्सान उठाएगी ही..कुछ कहा नहीं जा सकता यह आंकड़ा 80 से 90 भी हो जाए तो आश्चर्य नहीं..वर्तमान में भाजपा 305 सीट्स लिए हुए है, उसे दो सीट्स उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में और मिली हैं..यदि इसमें 60 कम कर दी जाए तो भाजपा 245 पर, केवल गठबंधन साथी दलों के अभाव में ही, पहुँच सकने की स्थिति में है..”यह अनुमान केवल उन्ही राज्यों का है जहाँ भाजपा गठबंधन कर चुनाव लड़ती आई है” ..!
उक्त अनुमान से यही निष्कर्ष निकलता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव की राह भाजपा के लिए आसान नहीं..परन्तु भाजपा को हल्क़े में लेना विपक्ष की कमजोरी ना बने..विपक्ष को, भाजपा की हर गतिविधियों पर नज़र रखनी होगी..दक्षिण पंथी (भाजपा) जैसी घोर साम्प्रदायिक, संविधान व लोकतंत्र विरोधी ताक़त इतनी बलशाली हो चुकी है जो सबको आसानी से पराजित कर दिखाकर अपने को अजेय समझने का गुमान पाल बैठी है..आज इस फासीवादी ताक़त के पास सभी तरह के बेशुमार साधन संसाधन है अथाह पैसा है..सरकारी गैर-सरकारी मशीनरी पर इसका कब्ज़ा है, आज देश की अन्य शक्तियां इनकी उँगलियों के इशारे पर कठपुतलियों से नाचते प्रतीत होते है..इवेंट मेनेजमेंट के माहिर, लोकलुभावन लच्छेदार भाषण शैली के जादूगर, साम-दाम-दंड-भेद के अव्वल खिलाडी, मेहनतीं, रणनीतिकार, दूरदर्शी, जनता में मिलनसार, सदैव संगठननिर्माण में चौकस, गिद्ध दृष्टि, राई को पहाड़ बनाने की कला, असत्य को सत्य कर दिखाने की निपुणता, और सबसे बड़ी खूबी इस फासीवादी विशाल झुण्ड की ये है कि अपने लाभ, स्वार्थ हेतू इन्हे राम को भी बदनाम करने की जरुरत महसूस हुई तो ये वहां भी नहीं चूकेंगे..ठीक उसी तर्ज़ पर जैसे ये महात्मा गांधी को बदनाम करते हैं..इतनी अप्रम खूबियों के बावजूद इनके विनाश की एक ही अत्यंत महत्वपूर्ण कमी है..जिसे ये फासीवादी झुण्ड भी समझता है..लेकिन बेबस रहता है, और वो कमी है कि ये सही मायने में आज भी देश की कुल आबादी का केवल 15% (प्रतिशत) सवर्ण लोगो की ही नुमाईंदगी करते है..और देश का 85%(प्रतिशत) जो सदैव इनको अपने अनुकूल नहीं समझता रहा है..वह सिर्फ जनता दल परिवार के बिखराब के कारण ही..ये फासीवादी लोग अन्य अति दलित-अति पिछड़ी जातियों में, यादव-जाटव और मुसलमान को गुंडई का समहू बताकर और निराधार खौफ दिखाकर, समझाकार, बरगलाकर अन्य छोटी जाति के वोटों में सेंध लगाने में कामयाब होते आएं हैं..इन्ही सभी आधार अनुसार इनका वोट प्रतिशत 45 से 50 प्रतिशत तक जा पहुंचा है..!
में, अपने लेख खंड-1 के अध्याय-24 में पहले ही बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो कु० मायावती का जिक्र कर चुका हूँ कि मायावती के पास आज भी दलित वर्ग की एक ख़ास जाति का, 10% वोट है जो सिर्फ हांथी या हांथी के सहयोगियों के चुनाव चिन्ह पर ही वोट डालने की बात करता है..यदि लोकसभा सीटों के अनुसार समझा जाए तो मायावती के पास आज 10 सांसद हैं..और 10 प्रतिशत वोट भले ही मायावती को किसी मुक़ाम पर नहीं पहुंचाते हों, लेकिन अपने अस्तित्व को बचाने के उद्देश्य को लेकर वह किसी के साथ भी गठबंधन कर सकती है..यह विपक्ष को समझना चाहिए और यह भी समझ लेना चाहिए कि इस बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में, अब मायावती को भाजपा भी नज़र अंदाज़ नहीं कर सकती है..या यूँ भी समझा जा सकता है कि वर्तमान राजनीति का केंद्र बिंदु देश का दलित वर्ग ही हो जाए..2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में अपने को शामिल किये हुए थी..विपक्ष को यही सब गणित-भाग को समझते हुए अभी से मायावती के साथ संपर्क साध लेना चाहिए और सभी बातों को सार्वजनिक करना चाहिए ताकि दलित, पिछड़ों के मध्य जातिवादी वैमनष्य की जो स्थिति बनी है..जो 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर-प्रदेश में बने सपा-बसपा गठबंधन के दौरान उभरकर सामने आई थी….

धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

          
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