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रमज़ान और सीएए कानून का ऐलान

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–सुसंस्कृति परिहार 

अभी चंद रोज़ ही गुज़रे हैं जब भारत सरकार के मुखिया ने देश के 140करोड़ लोगों को अपना परिवार बताया था और अब रमज़ान के पाक माह के पहले दिन ही नागरिकता संशोधन कानून 2019को अध्यादेश के ज़रिए लागू कर दिया।हम सभी को याद है किस तरह एकजुटता पूर्वक इस कानून का विरोध शांतिपूर्ण और व्यवस्थित तौर पर चला जिसमें बड़ी तादाद में महिलाओं ने उपस्थित होकर एक रिकॉर्ड बनाया था। कोरोना की वजह से यह आंदोलन स्थगित हुआ था आज लगभग साढ़े चार साल बाद इस कानून को लागू करना इस बात का इशारा करता है कि चार सौ पार में कथित हिंदू वोट पर्याप्त नहीं इसलिए गैर हिन्दू अल्पसंख्यकों पारसी,सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई जो 2014से पहले भारत में बस गए उन्हें नागरिकता  प्रदान करके खुश करना है। वहीं मुसलमानों को अल्पसंख्यक ना मानकर उन्हें नागरिकता ना देना। ठीक रमज़ान के पहले दिन एक असंवेदनशील फैसला है।

याद कीजिए आज़ादी के बाद कितने तिब्बती, पाकिस्तानी, बंगाली भारत में शरणार्थी बन कर आए उन्हें इंसानियत के नाते भारत का नागरिक भी बनाया गया वगैर शोर-शराबा और आत्मप्रशस्ति गान किए।2014के पहले आए बहुसंख्यक लोग भी अब तक मुख्य धारा में शामिल हो चुके होंगे।ये कानून तो सिर्फ ऐसा लगता है मुसलमानों को परेशान करने के लिए है।इस सरकार के कार्यकाल में सिर्फ म्यांमार से आए रोहिंग्या मुसलमान ही हैं जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय दवाब में विभिन्न कैम्पों में रखा गया है।दूसरे बांग्लादेश से असम और बंगाल में आए मुसलमान है जो तकरीबन पांच दशक से निवासरत हैं उनके प्रति जो वैमनस्य भाव असम में पनपाया गया है उनकी समस्या बनाई जा रही है जबकि बंगाल ,उड़ीसा, छत्तीसगढ़ वगैरह प्रांतों में वे सद्भाव पूर्वक भारतीय नागरिक बनकर रह रहे हैं।

ध्यान दीजिए जब सरकार किसी बड़ी मुसीबत में फंसती है तो जनता का ध्यान भटकाने कुछ चालू फार्मूले सामने, मीडिया लाके खड़ा कर देता है हाल ही में इलैक्ट्रोनिक बांड मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ गठजोड़ की जिस तरह कलई खुलती जा रही है उसे दबाने के उपक्रम में सरकार ने सीएए कानून लागू कर दिया और बिकाऊ चैनलों में तरह तरह की खुशियां व्यक्त करते नकली लोग सामने आने लगे। सरकार की वाहवाही का सिलसिला चल पड़ा।जबकि आप याद करें सीएए आंदोलन को मज़बूती देने में सिख भाईयों का सबसे बड़ा अवदान था।मगर जिसके पास पावर है गोदी मीडिया है वह इसे इस तरह परोस रहा है जैसे भारत सरकार ने कोई बड़ा अनोखा वा महत्वपूर्ण काम किया है।

इस सरकार के व्यवहार को लेकर निश्चिंत तौर पर भारत में सन् 2014के बाद आए शरणार्थी मुस्लिम समुदाय में रोष होना स्वाभाविक है किंतु यह भी सरकार को अंततः सोचने विवश करेगा क्योंकि इसमें अन्तर्राष्ट्रीय जगत की सहमति है।यदि इनकी ईमानदारी से पड़ताल की जाए तो रोहिंग्या को छोड़कर तमाम मुस्लिमों ने सभी चुनावों में अपना मत दिया है और अपनी सरकार चुनी है।ये तो वही बात हुई वोट देते वक्त वे नागरिक बन जाते हैं बाकी समय उनके प्रति नफ़रत फैलाकर कथित हिंदुत्व की दुहाई दी जाती है। ध्रुवीकरण का यह खेल 2014से शुरू हुआ है। दहशतज़दा मुस्लिम भी उसे वोट देना फ़र्ज़ समझते हैं यानि दोनों हाथ लड्डू लेने का यह मसला समझना और समझाना होगा।

बहरहाल, देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम को एक डरावने हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है यह और भी दुखद इसलिए है कि माहे पाक रमज़ान में इसका ऐलान मोदी के कथित इस परिवार पर वज्रपात की तरह है।यह असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है।

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