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एक और रिसर्च संस्था ने अडानी मामले से जुड़ी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की पुष्टि की

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नई दिल्ली। एक और रिसर्च संस्था ने एक रिपोर्ट में अडानी मामले से जुड़ी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की अपने तरीके से पुष्टि कर दी है। जिसमें बताया गया है कि भारत के शेयर बाजार में विदेशी रास्ते से अपनी ही कंपनियों में हजारों करोड़ रुपये का निवेश अडानी और उनसे जुड़ी कंपनियों ने किया है।

आर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग (ओसीसीआरपी) द्वारा गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स से साझा किए गए दस्तावेज में इस बात का खुलासा किया गया है कि मारीशस से एक गोपनीय और जटिल किस्म का विदेशी आपरेशन संचालित किया गया जिसका पूरा नियंत्रण अडानी समूह के हाथ में था। और यह सब कुछ 2013 से 2018 के बीच अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों को बढ़ाने के लिए था। 

विदेशी वित्तीय दस्तावेज के मुताबिक अडानी परिवार से जुड़े लोग पर्दे के पीछे से अडानी समूह की अपनी कंपनियों के शेयर खरीदते रहे। और यह सब कुछ उस समय हो रहा था जब अडानी का व्यवसाय दिन दुगुना और रात चौगुना के हिसाब से आगे बढ़ रहा था। जिसका नतीजा यह रहा कि अडानी भारत के सबसे बड़े और शक्तिशाली व्यवसायी बन गए।

2022 तक गौतम अडानी भारत के सबसे धनी और दुनिया के तीसरे सबसे दौलतमंद शख्स हो गए। जिसकी संपत्ति 9 लाख करोड़ रुपये से ऊपर हो गयी। इसी साल के जनवरी महीने में हिंडनबर्ग ने एक रिपोर्ट जारी कर अडानी के इस पूरे खेल से पर्दा उठा दिया। और उसने बताया कि कॉरपोरेट के इतिहास का यह कैसे सबसे बड़ा घोटाला है।

उसने आरोप लगाया कि बड़े स्तर पर संदिग्ध विदेशी कंपनियों का इस्तेमाल करके  शेयरों में हेर-फेर और एकाउंटिंग फ्राड के जरिये अडानी समूह ने खुद अपने ही शेयरों की खरीदारी कर समूह के शेयरों की कीमत आसमान पर पहुंचा दी। नतीजतन समूह के शेयरों का बाजार का मूल्य 2022 में 288 बिलियन डॉलर के पार चला गया।

हालांकि अडानी समूह ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। लेकिन इस रिपोर्ट ने अडानी को अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया। इसने अडानी समूह की बाजार की कीमत को एकबारगी 100 बिलियन डालर गिरा दिया। इसके साथ ही दुनिया भर के दौलतमंदों की सूची में हासिल मुख्य स्थान भी अडानी के हाथ से जाता रहा।

गोतम अडानी के साथ पीएम मोदी।

उस समय समूह ने हिंडनबर्ग पर इसे भारत और भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, एकता और उनकी गुणवत्ता पर सोच-समझ कर किया गया हमला बताया था।

नये दस्तावेज में कहा गया है कि अभी तक इस विदेशी नेटवर्क के बिल्कुल अंदर तक नहीं घुसा जा सका है।

इन सारे गोपनीय विदेशी आपरेशनों में गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी ने बेहद प्रभावी भूमिका निभाई है। दस्तावेज इस बात के पुख्ता प्रमाण मुहैया कराते हैं। जबकि अडानी समूह कहता है कि विनोद अडानी की कंपनी के रोजमर्रे के काम में कोई भूमिका नहीं है।

दस्तावेज में विदेशी कंपनियों के जरिये जाने वाले इस पैसे में सबसे बड़े लाभार्थी के तौर पर विनोद अडानी के दो सबसे नजदीकी सहयोगियों का नाम आता है। इसके साथ ही वित्तीय रिकार्ड और इंटरव्यू इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि मारीशस आधारित इस फंड का भारतीय शेयर मार्केट में निवेश दुबई स्थित एक कंपनी द्वारा संचालित किया जाता है जिसको चलाने का काम विनोद अडानी का एक कर्मचारी करता है। 

इस बात में कोई शक नहीं कि इस नये खुलासे के बाद पीएम मोदी और अडानी के रिश्तों पर महत्वपूर्ण राजनीतिक असर पड़ने जा रहा है। हालांकि सेबी मामले की सुप्रीट कोर्ट की निगरानी में जारी जांच का अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। लेकिन इस खुलासे के बाद उसमें भी नई ट्विस्ट आने की संभावना है।

क्योंकि हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद पीएम मोदी को असहज स्थितियों का सामना करना पड़ा था। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस मसले को संसद में उठाया था। लेकिन पीएम मोदी ने इसका कोई जवाब नही दिया था और इस पूरे मसले पर बिल्कुल चुप्पी साधे रखी। देश में पीएम मोदी को अडानी के खैरख्वाह के तौर पर जाना जाता है। और कुछ लोगों ने तो अब इसे अडानी की सरकार कहना शुरू कर दिया है जिसके पीएम मोदी मैनेजर हैं।

ओसीसीआरपी ने 2014 के एक पत्र का खुलासा किया है जिसमें सेबी के सामने शेयर बाजार में अडानी समूह से जुड़ी संदिग्ध गतिविधियों के प्रमाण पेश किए गए थे। लेकिन कुछ महीने बाद ही मोदी के सरकार में आते ही सरकार की इस नियामक संस्था ने उसमें दिलचस्पी लेना बंद कर दिया। 

इसके जवाब में अडानी समूह ने नये दस्तावेजों के आइने में नये सवाल पूछ डाले। जिसमें उसका कहना था कि आपके नये प्रमाण के दावे के विपरीत ये सब कुछ नहीं बल्कि हिंडनबर्ग में लगाए गए गैरतथ्यात्मक आरोपों का ही दोहराव है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का जवाब हमारी यानि अडानी समूह की वेबसाइट पर उपलब्ध है। इसके साथ ही इस बात में न तो कोई सच्चाई है और न ही इस तरह के अडानी समूह और उसके मालिकानों के खिलाफ आरोप लगाने का कोई आधार और हम पूरी मजबूती के साथ उन आरोपों को खारिज करते हैं।

गौतम अडानी के। बड़े भाई विनोद अडानी

विदेशी पैसे की यात्रा

दस्तावेजों का पूरा भंडार कंपनियों के एक पूरे जटिल जाल को सामने लाता है जो 2010 के आस-पास स्थापित की गयी थीं। जब अडानी परिवार के दो सहयोगी चांगचुंग-लिंग और नासिर अली शाहबान अहली ने मारीशस, ब्रिटिश वर्जिन आइसलैंड्स और यूएई में विदेशी शेल कंपनियां स्थापित करना शुरू कर दिया था।

ये वित्तीय रिकार्ड इस बात को प्रदर्शित करते हैं कि चांग और अहली, जो अडानी से जुड़ी कंपनियों में डायरेक्टर रहे हैं, द्वारा स्थापित चार विदेशी कंपनियों ने बरमूडा स्थित ग्लोबल अपारच्यूनिटीज फंड (जीओएफ) में हजारों करोड़ रुपये इनवेस्टमेंट फंड के तौर पर भेजे। और फिर इन्हीं पैसों का 2013 से ही भारतीय स्टॉक मार्केट में निवेश करना शुरू कर दिया गया। 

इस पूरे निवेश के पीछे संदिग्धता की एक और पर्त मौजूद थी। वित्तीय रिकार्ड के मुताबिक इस जोड़े की विदेशी कंपनियों से जीओएफ को जाने वाला यह फंड दो कंपनियों इमरजिंग इंडिया फोकस फंड्स (ईआईएफएफ) और ईएम रिसर्जेंट फंड (ईएमआरएफ) को जाता है। ये दोनों जीओएफ से जुड़ी हुई हैं।

उसके बाद इस पैसे का इस्तेमाल सालों साल तक शेयर मार्केट में लिस्टेड अडानी की चार कंपनियों अडानी इंटरप्राइजेज, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनामिक जोन, अडानी पावर और बाद में अडानी ट्रांसमिशन के शयरों को हासिल करने में किया जाता रहा। दस्तावेज इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि इस संदिग्ध विदेशी ढांचे से कैसे कोई पैसा गोपनीय तरीके से भारत में सार्वजनिक तौर पर लिस्टेड कंपनियों का हिस्सा बन सकता है।

शायद इन दोनों फंडों के निवेश का फैसला एक निवेश सलाहकार कंपनी की निगरानी में लिया जाता है जिसको नियंत्रित करने का काम विनोद अडानी का एक ज्ञात कर्मचारी करता है जो दुबई में रहता है।

मई 2014 में ईआईएफएफ ने ऐसा लगता है कि अडानी से जुड़ी तीन कंपनियों के शेयर खरीदने के लिए 190 मिलियन डालर से ज्यादा रुपये का निवेश किया। जबकि ईएमआरएफ ने अडानी के शेयर मार्केट में 70 मिलियन डालर के निवेश के क्रम में अपनी दो तिहाई रकम खर्च कर दी। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों फंडों ने उन पैसों का इस्तेमाल किया जो चांग और अहली द्वारा नियंत्रित कंपनियों से आए थे।

सितंबर 2014 में वित्तीय दस्तावेजों का एक अलग सेट सामने आया जिसमें यह दिखाया गया था कि कैसे चांग और अहली की चार विदेशी कंपनियों ने उसी ढांचे के जरिये अडानी के शेयरों में 260 मिलियन डॉलर का निवेश किया था।

दस्तावेज दिखाता है कि इस निवेश में अगले तीन सालों के दौरान और बढ़ोत्तरी हुई: मार्च, 2017 में चांग और अहली की विदेशी कंपनियों ने शेयर मार्केट में लिस्टेड अडानी की कंपनियों में 430 मिलियन डॉलर का निवेश किया। यह उसका पूरा का पूरा निवेश था।

गार्जियन ने जब फोन पर चांग से संपर्क कर उसकी कंपनियों द्वारा अडानी के शेयरों में निवेश करने संबंधी सामने आए दस्तावेजों पर बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बातचीत से इंकार कर दिया। और न ही विनोद अडानी से अपने रिश्तों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कोई जवाब दिया। दूसरी तरफ गार्जियन ने जब विनोद अडानी और अहली से संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होंने उसका कोई उत्तर नहीं दिया।

भारतीय शेयर बाजार का नियम

अडानी एसोसिएट्स की कथित विदेशी कंपनी भारतीय शेयर बाजार के नियमों के संभावित उल्लंघन को लेकर सवाल उठाती है जो शेयरों में हेर-फेर को रोकने और सार्वजनिक शेयरधारक वाली कंपनियों के नियमन का काम करती है।

नियम यह कहता है कि 25 फीसदी शेयर ‘फ्रील फ्लोट’ रहना चाहिए यानी यह शेयर मार्केट में आम लोगों की खरीद-फरोख्त के लिए उपलब्ध रहना चाहिए। जबकि 75 फीसदी उसके मालिक द्वारा अपने पास रखा जा सकता है जो खुद को सीधे तौर पर कंपनी से जुड़े होने की घोषणा करता है। आपको बता दें कि विनोद अडानी को अभी हाल में समूह द्वारा कंपनी के मालिकानों में से एक के तौर पर घोषित किया गया है।

हालांकि दस्तावेज यह दिखाते हैं कि अपने निवेश के उच्च स्तर पर अहली और चांग ने ईआईएफएफ और ईएमआरएफ के जरिये चार अडानी कंपनियों के 8% से 13.5% शेयर फ्लोएटिंग के तौर पर रखे थे। अगर उनकी होल्डिंग को पीछे से विनोद अडानी के नियंत्रण के तौर पर लिया जाए तो अडानी समूह के मालिकाने की होल्डिंग निश्चित तौर पर 75 फीसदी सीमा का उल्लंघन करेगी। 

राजनीतिक रिश्ते

गौतम अडानी पर बहुत दिनों से अपने शक्तिशाली राजनीतिक रिश्तों से लाभ हासिल करने का आरोप लगता रहा है। उनका मोदी से रिश्ता 2002 के आस-पास से शुरू होता है। जब वह गुजरात में एक व्यवसायी थे और मोदी राज्य के मुख्यमंत्री। और दोनों तभी से लगातार आगे बढ़ रहे हैं। मई 2014 में आम चुनाव जीतने के बाद मोदी अडानी के विमान से दिल्ली आते हैं। यह दृश्य अडानी के कारपोरेट लोगो के साथ उनकी खींची गयी एक बेहद चर्चित तस्वीर के जरिये सामने आता है।

अडानी और मोदी का लोग कोलकाता में पुतला फूंकते हुए

मोदी के समय और उनके नेतृत्व के दौरान समूह को मिलने वाले सरकारी पोर्ट, पावर प्लांट, बिजली, कोयला खदानें, हाईवे, एनर्जी पार्क, स्लम डेवलपमेंट और हवाई अड्डों के ठेकों ने अडानी समूह की ताकत और प्रभाव को शिखर पर पहुंचा दिया। कुछ मामलों में हवाई अड्डों और कोयला सेक्टर से जुड़े कानूनों में बदलाव तक किया गया जिससे अडानी समूह की कंपनियों को विस्तार दिया जा सके। नतीजे के तौर पर शेयर मार्केट में अडानी की कंपनियों के शेयरों की कीमत 2013 में 8 बिलियन डालर से बढ़कर सितंबर, 2022 में 288 बिलियन डालर तक पहुंच गयी।

अडानी लगातार इस बात को खारिज करते रहे हैं कि उनका पीएम मोदी के साथ बहुत सालों से चला आ रहा रिश्ता भारत सरकार में उन्हें तरजीह दिलाता रहा है।

फिर भी ओसीसीआरपी के दस्तावेज इस बात का खुलासा करते हैं कि अडानी समूह मामले की जांच करने वाली सेबी को 2014 के शुरुआती दौर में ही अडानी के विदेशी फंड के शेयर बाजार की गतिविधियों में इस्तेमाल की जानकारी थी।

जनवरी, 2014 में एक पत्र के जरिये उस समय के डीआरआई यानि डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई)  ने तब के सेबी हेड उपेंद्र कुमार सिन्हा को इसकी जानकारी दी थी।

शाह पत्र में कहते हैं कि “वहां इस बात की संभावना है कि (अडानी से जुड़ी) अडानी समूह में निवेश और गैर निवेश के जरिये भारत के शेयर बाजार में पैसा जा रहा है।“

उन्होंने इस बात को भी चिन्हित किया कि उन्होंने इस मामले को सिन्हा को इसलिए भेजा था क्योंकि स्टाक मार्केट में अडानी समूह की कंपनियों से जुड़ी जांच सेबी कर रही है।

हालांकि कुछ महीने बाद ही मोदी के मई 2014 में चुनाव जीतने के बाद सेबी की यह दिलचस्पी खत्म हो गयी। और यह बात गार्जियन को उस समय सेबी में कार्यरत एक सूत्र ने बतायी।

सेबी ने डीआरआई द्वारा दी गयी चेतावनी के बारे में कभी भी सार्वजनिक तौर पर नहीं बताया। और न ही इसके बारे में बताया कि वह 2014 में अडानी से जुड़ी कंपनियों के बारे में कोई जांच कर रही है। यह पत्र सेबी द्वारा हाल में सुप्रीम कोर्ट में दिए गए इस बयान से मेल नहीं खाता है जिसमें उसने 2020 के पहले अडानी समूह से जुड़ी कंपनियों की किसी भी मामले में जांच से इंकार किया है। इसके साथ ही उसने कहा है कि 2016 से पहले उसने इस तरह की कोई जांच की थी, तथ्यात्मक तौर पर आधारहीन है।

मोदी सरकार के दौरान स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से अडानी समूह की जांच को लेकर सेबी की योग्यता पर उसके आलोचकों, वकीलों और विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाया है।

मई में सुप्रीम कोर्ट, जिसने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह की जांच के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी गठित की थी, में पेश की गयी रिपोर्ट के मुताबिक सेबी 13 विदेशी निवेशकों की 2020 से जांच कर रही है। लेकिन अडानी समूह से उनके जुड़े होने की कोशिश में वह दीवार से टकराती है। दो कंपनियां जिनकी जांच चल रही है वो ईआईएफएफ और ईएमआरएफ हैं।

अडानी समूह से जुड़े संभावित उल्लंघनों की जांच में रेगुलेटर पर अपना पैर खींचने का आरोप लगता रहा है। इसको जांच के लिए मांगे गए उसके कई विस्तार के तौर पर देखा जा सकता है। शुक्रवार को सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें उसने कहा कि उसकी जांच अपने आखिरी चरण में है लेकिन उसके तथ्यों का खुलासा करने से उसने इंकार कर दिया।

अडानी समूह ने अपने जवाब में कहा है कि रिपोर्ट के प्रकाशन का समय ही सवालों के घेरे में है। एक ऐसे समय में जबकि सभी आरोपों की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच चल रही है और सब कुछ आखिरी चरण में है इस तरह की रिपोर्ट जान बूझ कर कंपनी को बदनाम करने के लिए किया गया है। 

(ज्यादातर इनपुट द गार्जियन से लिए गए हैं।)

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