Site icon अग्नि आलोक

आज भी जारी है औरत विरोधी वहशियानापन और दरिंदगी

Share

 मुनेश त्यागी

        फिलहाल आफताब और श्रद्धा का मामला मीडिया में छाया हुआ है जिसमें आफताब ने श्रद्धा से लव अफेयर्स किया और बाद में घरती आर्थिक स्थिति खराब होने और आफताब के दूसरे लव अफेयर्स से मतभेद होने पर, आफताब ने श्रद्धा के जिस्म के 35 टुकड़े-टुकड़े करके मार डाला और उन टुकड़ों को एक एक कर दिल्ली के जंगलों में बिखेर दिया। इससे पहले भी अक्टूबर 2017 में राजेश गुलाटी नाम के सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी पत्नी अनुपमा से शादी के 18 साल बाद उसके 70 टुकड़े करके डीप फ्रीजर में रख दिए और धीरे-धीरे उन्हें जब वह अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाता था तो उसके टुकड़ों जंगलों में फेंक आता था।

       राजेश गुलाटी और अनुपमा दोनों 8 साल अमेरिका में रहे। फिर वापस देहरादून भारत में आ गए और यहां आकर शादी के चलते, राजेश का किसी दूसरी लड़की से अफेयर हो गया, जिसका अनुपमा ने विरोध किया, तो विरोध करने पर राजेश ने उसे मार डाला और उसके 70 टुकड़े करके अपने फ्रीजर में रख लिया। दो महीने बाद जब अनूपमा का भाई उससे मिलने उसके घर आया तो उसे वहां ना पाकर, उसने गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी, तब जाकर इस हत्याकांड का पर्दाफाश हुआ।

       अनुपमा और श्रद्धा का कोई नया मामला नहीं है। इससे पहले भी हमने तंदूर कांड देखा है जिसमें अपनी प्रेमिका को प्रेमी ने तंदूर में जला कर मार डाला था। यही हाल हमने हाथरस में देखा है। यही हाल हमने दिल्ली में देखा था, जम्मू और कश्मीर का कठुआ कांड देखा और सुना था। बिलकिस बानो का मामला पुराना नहीं है, जिसमें सारे देश और दुनिया ने देखा कि एक साजिश के तहत हत्यारों को आजन्म कारावास से रिहा किया गया और उन्हें फिर फूल मालाएं पहनाई गईं, मिठाइयां बांटी गई और उनका सत्कार जुलूस निकाला गया।

       इससे पहले भी भारत में औरतों को हजारों साल से दोयम दर्जे का नागरिक और मनोरंजन का सामान समझा और माना जाता रहा है। उन्हें दासियों के रूप में प्रयोग किया जाता था, मंदिर की सेविकाओं के रूप में इस्तेमाल किया जाता था और भगवान का नाम लेकर उनके साथ शारीरिक शोषण किया जाता था। दक्षिण भारत में तो उन्हें आज भी देवदासियों के रूप में मंदिरों में रखा जाता है। भारतवर्ष में आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा औरतों के खिलाफ अपराध किए जाते हैं

       यह किसी धर्म जाति का मामला नहीं है। आफताब और राजेश दोनों अलग-अलग धर्मों के शातिर, हत्यारे, दरिंदे, वहशी, पतित, मानसिक विकृत और मानसिक रूप से बेहद बीमार लोग हैं। यह सब शातिर दिमाग का खेल है। हत्यारा कोई भी हो सकता है। इसमें किसी धर्म का कोई रोल या दोष नहीं है। यह सब विकृत और असामान्य मानसिकता का औरत विरोधी रोग है और औरत विरोधी सोच का और मानसिकता का मामला है।

       यह सब दिखाता है कि यहां औरतों की कोई औकात नहीं है। उन्हें कोई भी, किसी भी धर्म का आदमी, टुकड़े-टुकड़े करके, जलाकर मार सकता है। भगवान के नाम पर उसका दुरुपयोग कर सकता है। वैसे भी उसे तो हजारों सालों से गर्भ में ही मार डाला जाता रहा है। इस तरह की सबसे ज्यादा वारदातें भारत में ही होती हैं और आश्चर्य तो यह है कि इसमें सारे नियम कानून, पुलिस, वकील, जज, अदालतों और संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद भी भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा औरतों की हत्याएं की जा रही हैं, उन्हें मारा जा रहा है, उनकी बोटी बोटी करके जंगलों में फेंका जा रहा है, फ्रिज में रखा जा रहा है।

       हमारे यहां दुनिया में औरतों के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध, बलात्कार और हत्याएं भी हो रही हैं और यह मानसिकता हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों में मौजूद है। हम आए दिन इस तरह की खबरें अखबारों में पढ़ते रहते हैं। किसी भी धर्म जाति वर्ग में कहीं कोई रियायत औरतों को नहीं दी जा रही है। हम बहुत दिनों से सुनते चले आ रहे हैं,,,,,

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी 

ये सब ताड़न के अधिकारी।

       भारतीय समाज में औरतों के खिलाफ, यह मानसिकता आज भी बरकरार है। इस मानसिकता को खत्म नहीं किया गया है। मनुस्मृति में औरतों को पढ़ने लिखने, धन और धंधे के अधिकार से वंचित किया गया है। अतः हजारों साल से उन्हें अनपढ़ ही रखा गया। बहुत से लोगों आज भी यही मानसिकता और सोच मौजूद है। उन्हें कई घरों, परिवारों में आज भी दासियों और गुलामों की तरह रखा जाता है। आज भी कई लोग अपनी बहू को, परिवार वाले, ससुराल वाले, उसका वाजिब स्थान उसे परिवार में देने को तैयार नहीं हैं, उसके व्यक्तित्व को समझने को तैयार नहीं हैं। इन सबके कारण, इस औरत विरोधी मानसिकता को जड़ से खत्म ही नहीं किया जा सका है।

        बहुत सारे लोगों में, आज भी वही सोच कायम है। औरत विरोधी यही मान्यताएं समय-समय पर हमारी समाज में विभिन्न रूपों में उजागर होती रहती हैं। अब इन मान्यताओं और सोच ने औरत विरोधी नए-नए रूप धारण कर लिए हैं और यही जवाला मुखी समय-समय पर फट और फुटकर हमारे सामने आते रहते हैं। 

       हमारा पूरी दृढ़ता से यह मानना है कि हमारे समाज में आज भी हजारों साल पुरानी औरत विरोधी सोच और मानसिकता मौजूद है। औरत को पूरी आजादी नहीं दी जा रही है। उसे आज भी हजारों साल पुरानी वाली पितृसत्तात्मक सोच का बंदी बनाकर रखा जा रहा है। जब तक यह औरत विरोधी सोच और मानसिकता नहीं बदलेगी, औरत को एक पूर्ण पारिवारिक सदस्य नहीं समझा जाएगा और उसे जब तक मनोरंजन का साधन और दोयम दर्जे की नागरिका ही समझा जाता रहेगा, तब तक यह औरत विरोधी माहौल, मानसिकता और सोच नहीं बदल सकती और औरत विरोधी माहौल नहीं बदला जा सकता है।

       आज भी औरतों के खिलाफ जो अपराध हो रहे हैं, बलात्कार और हत्याएं हो रही हैं, वे सब औरत विरोधी मानसिकता और सोच के कारण हो रहे हैं। हमारे समाज का माहौल, आज भी औरत के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है। यह सब हजारों साल पुरानी पितृसत्तात्मक औरत विरोधी सोच और मानसिकता का खेल है।

        इन हत्याओं और अपराधों को जाति, धर्म या हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिकता का रंग देकर, औरतों द्वारा झेली जा रही मुख्य समस्याओं से ध्यान हटाना है। इसे धर्म का साम्प्रदायिक रंग देना भी एक साजिश और एक शातिराना खेल है। भारत के लोगों को इस शातिराना खेल को  ध्यानपूर्वक देखने की और समझने की और इसे करारी मात देने की सबसे ज्यादा जरूरत है।

Exit mobile version