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अप्रैल Fool?

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शशिकांत गुप्ते

31मार्च का दिन वित्तीय वर्ष का अंतिम दिन होता है। जहां तक स्मरण है,सत्तर के दशक तक 31मार्च को सरकारी दिवाली कहा जाता रहा है।
इस सरकारी दिवाली के दिन जो भी लेन देन होता है,वह आपसी सामंजस्य के साथ किसी अंदर खाने कहलाने वाले कक्ष में होता है।
भौतिकवाद के बढ़ने के साथ जैसे मानव में मानवीयता का ह्रास हुआ वैसे रुपयों को भी अवमूल्यन होते गया। पूर्व में ऊपरी कमाई की गितनी सैकड़ा और हजारों में होती थी,यह गिनती अब पेटियों और खोकों में होने लगी है? ऐसा सिर्फ आरोप है? इस आरोप की सत्यता प्रमाणित करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है?
आज कल ऐसे संवेदनशील मुद्दों को नजर अंदाज ही करना चाहिए।
31मार्च ठीक दूसरे दिन अप्रैल माह की पहली तारीख होती है।
एक अप्रैल के दिन, दूसरे के साथ मज़ाक करते हुए उसे अप्रैल फूल मतलब अंग्रेजी Fool मतलब मूर्ख बनाया जाता है।
सन 1964 में अप्रैल फूल नाम की फिल्म भी निर्मित हुई है।
इस फिल्म में गीतकार हसरत जयपुरी ने अप्रैल फूल बनाया यह गीत भी लिखा है।
यह फिल्म रोमांटिक फिल्म थी।
इस फिल्म में अभिनेता अभिनेत्री को रिझाने के लिए उक्त गीत गाता है।
इस गीत का मुखड़ा है।
अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया
फिल्मों में सब कुछ कल्पनातीत होता है।

यथार्थ में देश की आम जनता पिछले एक दशक से अनवरत अप्रैल फूल बन रही है।
अप्रैल फूल बनाने शुरुआत जुमले नामक शब्द में लपेटकर,पूरे पंद्रह लाख रुपयों से की गई।
पंद्रह लाख के पश्चात अच्छे दिन, सबका साथ विकास और विश्वास के बाद अप्रैल फूल बनाने के लिए और भी स्लोगन विज्ञापनों में पढ़ने देखने और सुनने को मिले।
वर्तमान में अमृत काल नामक स्लोगन भी अप्रैल फूल की बनाने की शृंखला में ही समाहित है।
इतनी बार अप्रैल फूल बनने के बाद भी गुस्सा क्यों नहीं आ रहा है?
जब सहनशीलता की इंतिहा हो जाती है,तब गुस्सा आता नहीं है,गुस्सा फूटता है।
अन्याय के विरुद्ध गुस्सा फूटना लाजमी है।
यह नहीं भूलना चाहिए कि,कालचक्र अनवरत चलता ही रहता है।
संत कबीर साहब ने स्पष्ट शब्दों में कहा है।
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रोंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौदूंगी तोय।।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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