पहली बार में ही निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह को मिली थी शानदार जीत। जवानी के दिनों में बॉलीवुड फिल्मों में एक्टर बनना चाहते थे अर्जुन सिंह, लेकिन बचपन में ज्योतिष की भविष्यवाणी के बाद अधूरा रह गया था उनका यह सपना। अर्जुन सिंह की जिंदगी का यह रोचक किस्सा…
भोपाल। मध्यप्रदेश न सिर्फ देश का हृदय प्रदेश कहा जाता है, बल्कि विभिन्न कालखंडों में यहां के कई दिग्गज राजनीतिज्ञ अपनी राजनीति से देश को प्रभावित करते रहे हैं। ऐसे ही राजनीतिज्ञों की जमात का एक नाम है अर्जुन सिंह। 5 नवंबर वर्ष 1930 में प्रदेश के चुरहट नामक स्थान पर जन्मे अर्जुन सिंह के जन्मदिन के अवसर पर आज हम आपको उनके जीवन का एक रोचक किस्सा बताने जा रहे हैं। बचपन में उनके पिता ने ज्योतिष को कुंडली दिखाई थी, जिसे देखकर ज्योतिष ने कहा था कि यह बड़ा होकर राजनीति में नाम कमाएगा। लेकिन बड़े होते ही अर्जुन सिंह ने अपनी आंखों में एक सपना पाल लिया। यह सपना था बॉलीवुड में एक्टिंग करना। दिन-रात एक्टिंग का सपना संजोने वाले अर्जुनसिंह ने जैसे ही पिता से अपने दिल का हाल कहा, पिता ने उन्हें कुछ ऐसा कहा कि उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। यहां आपको बता दें कि अर्जुन सिंह देश के पहले ऐसे राजनेता थे जिन्होंने कहा था कि जनप्रतिनिधियों को अपनी संपत्ति का ब्योरा देना चाहिए। उनका यह सवाल आज चुनाव के समय एक आवश्यक शर्त बन चुका है।
अर्जुन सिंह देश की राजनीति के ऐसे नेता थे, जो जहां भी जाते रहस्य का वातावरण अपने इर्द गिर्द बुन देते थे। साठ साल के अपने राजनीतिक जीवन में अर्जुन सिंह कभी चाणक्य कहलाए तो कभी राजनीति की बूझ पहेली। वे तीन बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पंजाब के राज्यपाल बने। अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष और पांच बार केंद्रीय मंत्री बने।
हमेशा रहा विवादों से नाता
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह का विवादों से गहरा नाता रहा है। उनका नाम चर्चित भोपाल गैस त्रासदी के साथ भी जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि भोपाल में यूनियन कार्बाइड के जिस प्लांट में वर्ष 1984 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ और हजारों लोग प्रभावित हुए, उस समय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ही थे। इसके अलावा चुरहट लॉटरी केस में भी अर्जुन सिंह का नाम आया था।
अपने खिलाफ खुद छपवाते थे खबर
कहते हैं कि राजनीति की दुनिया से जुड़ी खबरें उन्हीं गलियारों से निकलती हैं, जहां सियासतदान चहलकदमी किया करते हैं, विरोधियों के खिलाफ जानकारी लीक कराने का प्रचलन तो पुराना रहा है लेकिन अपने ही खिलाफ खबरें प्लांट करवाने वाले भी विरले ही होते हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भी कुछ ऐसे ही नेता थे। कई बार वह अपने मित्र पत्रकारों से अपने ही खिलाफ खबरें छापने को कहते थे। कई सूचनाएं तो वह खुद ही पत्रकारों तक पहुंचाते थे।
और पहुंच जाते थे कमियों की जड़ तक
रामशरण जोशी की किताब ‘अर्जुन सिंह : एक सहयात्री इतिहास का’ में लिखते हैं कि अपने ही खिलाफ खबरें छपवाने के पीछे अर्जुन सिंह का उद्देश्य उन जानकारियों का पता लगाना होता था, जो अधिकारी किसी संकोच के कारण उन तक नहीं पहुंचाते थे। अपने ही खिलाफ खबर लिखवाने के बाद वह उन कमियों की जड़ों तक पहुंच जाते थे, जिसकी जानकारी उन तक पहुंचने से रोकी जाती थी। लेकिन कई बार उनका यह स्टाइल उन्हीं के खिलाफ भारी पड़ जाता था, क्योंकि विरोधियों को बैठे बिठाए उनके खिलाफ आवाज उठाने के लिए मुद्दे मिल जाया करते थे।
पहले खुद करते थे मामले की जांच
अर्जुन सिंह जानते थे कि पत्रकारों के लिए विश्वसनीयता कितनी अहम होती है, लिहाजा वह किसी पत्रकार को खबर देने से पहले अपने स्तर से उसकी जांच-पड़ताल करते थे। उन्हें कम बोलने और ज्यादा सुनने की भी आदत थी, ऐसे में उनके पास जानकारियां ज्यादा हुआ करती थीं लेकिन उनका जिक्र वह जरूरी जगहों पर ही किया करते थे। किताब में रामशरण लिखते हैं वह लोगों पर जमकर उपकार करते थे और समय आने पर उसका इस्तेमाल करने से भी परहेज नहीं करते थे।
भ्रष्टाचार और राजनीति का पुराना नाता
भ्रष्टाचार और राजनीति का संबंध बहुत पुराना है। तीन बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह भी इस नाते से बच नहीं सके। उनके जो विंध्य प्रदेश के मंत्री थे, उन पर रिश्वत लेने का आरोप लगा था। इसकी वजह से उन्हें भी जेल जाना पड़ा। पिता की वजह से अर्जुन सिंह को हमेशा घेरने की कोशिश भी की गई।
लिया था पिता के अपमान का बदला
राजनीति के इस सितारे के राजनीतिक जीवन की शुरुआत त्रासदी से भरी थी। यहां 1952 में हुए एक किस्से का जिक्र करना होगा, जब आजाद भारत का पहला आम चुनाव होना था। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू विंध्य क्षेत्र की एक चुनावी सभा को संबोधित करने रीवा गए थे। सभा में विंध्य के नेता शंभूनाथ शुक्ल और मुख्यमंत्री कप्तान अवधेश प्रताप सिंह बैठे थे। स्वागत के लिए दरबार महाविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष के नाते अुर्जन सिंह उपस्थित थे।
नेहरू जी का भाषण शुरू होता उससे दो मिनट पहले ही एक नेता जी धीरे से उन्हें कुछ बताते हैं। इससे प्रधानमंत्री का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था और उन्होंने भाषण मंच से ही कह दिया, चुरहट से खड़ा उम्मीदवार कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं है। जिस कांग्रेसी उम्मीदवार को नेहरू ने मंच से ही नकार दिया उनका नाम था राव शिवबहादुर सिंह और वे अर्जुन सिंह के पिता थे। वे विंध्यप्रदेश की अवधेश प्रताप सिंह सरकार में मंत्री भी थे। लेकिन उन पर पन्ना में मौजूद हीरा खदानों के नवीनीकरण के दौरान 25 हजार रुपए की रिश्वत का आरोप लगा था। जिसके बाद नेहरू ने उनका नाम सुनते ही मंच से ही उन्हें नकार दिया था। यहां इस तरह किए गए पिता के अपमान ने अर्जुन सिंह को झकझोर कर रख दिया था। वहीं इसी दौरान अर्जुन सिंह के पिता कांग्रेस से अलग निर्दलीय चुनाव लडऩे मैदान में उतरे और चुनाव हार गए। तभी अर्जुन सिंह ने कसम खाई थी कि वह अपने परिवार पर लगे कलंक को धो डालेंगे।
निर्दलीय लड़ा पहला चुनाव
अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अर्जुन सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़कर की। अर्जुन सिंह की बढ़ती लोकप्रियता के कारण कांग्रेस ने उन्हें ऑफर भी दिया। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए ऑफर ठुकरा दिया कि चुना जीतने के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे। इसके बाद वह निर्दलीय चुनाव में बेतहाशा वोटों से जीते। बाद में उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन कर ली।
डैकेतों ने किया था आत्म समर्पण
अर्जुन सिंह को इसलिए भी याद किया जाता है। अर्जुन सिंह के दौर में चंबल के बड़े डकैतों ने सरेंडर कर दिया था। मलखान सिंह, फूलन देवी और घनश्याम सिंह जैसे डकैतों के समर्पण के लिए अर्जुन सिंह ने एक नीति बनाई थी। अर्जुन सिंह की राजनीतिक और प्रशासनिक कुशलता की वजह से उस दौर में चंबल के तमाम बड़े डकैतों ने उनके सामने सरेंडर किया था। कहा जाता है कि पान सिंह तोमर ने अर्जुन सिंह को खुली चेतावनी दी थी जिसके बाद पान सिंह तोमर का एनकाउंटर किया गया था। अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा ए ग्रेन ऑफ सेंड इन ऑवरग्लास ऑफ टाइम में लिखा है। खूंखार डकैत फूलनदेवी को जब मैंने पहली बार देखा तब चौंक गया था। क्योंकि, मेरे सामने एक पांच फीट की लंबी लड़की। ऑटोमेटिक राइफल लिए मंच पर चढ़ रही थी। उसने मेरे पैर छूए और मेरे पैरों में हथियार डालकर हाथ जोड़े। मेरी सहानुभूति उसके साथ थी। उन्होंने फूलन देवी के लिए लिखा था। जो लोग तलवार के दम पर जीते हैं। उनका नाश भी तलवार से ही होता है और फूलन का अंत भी कुछ ऐसा ही हुआ। वर्ष 2001 में शेर सिंह राणा नामक शख्स ने फूलन देवी की दिल्ली के अशोका रोड स्थित उनके आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी थी।
बचपन में ही कर दी थी भविष्यवाणी
अर्जुन सिंह मध्यप्रदेश के रीवा राजघराने से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता रीवा राजघराने के अंतर्गत चुरहट के जागीरदार थे। इसलिए बचपन से ही अर्जुन सिंह का लालन-पालन पूरे ऐशो-आराम से किया गया था। उनके जन्म के करीब 10 साल बाद पिता राव साहब शिव बहादुर सिंह ने अपने दोनों बेटों की कुंडली ज्योतिषी से दिखवाई थी। अर्जुन सिंह और उनके भाई डॉ. सज्जन सिंह की कुंडली देखते ही ज्योतिषी ने जो भविष्यवाणी की थी, वह आगे चलकर एकदम सही साबित हुई। ज्योतिषी ने दोनों भाइयों की कुंडली देखकर राव साहब से कहा था कि आपका एक बेटा तो संन्यासी हो जाएगा लेकिन दूसरा बेटा राजनीति में बहुत ऊपर तक जाएगा। राव साहब के छोटे बेटे अर्जुन सिंह के लिए की गई ज्योतिषी की यह भविष्यवाणी अक्षरश: हकीकत में बदली।
बॉलीवुड में जाने का सपना नहीं हुआ पूरा
यह जानकारी भी बड़ी रोचक है कि कांग्रेस पार्टी का ये दिग्गज नेता कभी सियासत की दुनिया से दूर मायानगरी में अपना भविष्य तलाश रहा था। अर्जुन सिंह पर फिल्मों में एक्टिंग का शौक सवार था। वे किसी भी हालत में मुंबई जाकर फिल्मों में एक्टिंग करना चाहते थे। दरअसल, इसके पीछे की वजह थी फिल्में देखने की दीवानगी और जाने-माने अभिनेता प्रेमनाथ से दोस्ती। डॉ. जोशी ने अपनी किताब में इसका रोचक अंदाज में वर्णन किया है। प्रेमनाथ के पिता उस समय रीवा के आईजी हुआ करते थे। वह वहीं के कॉलेज में पढ़ते भी थे, जिसके कारण अर्जुन सिंह के साथ उनकी गाढ़ी मित्रता थी। प्रेमनाथ और अर्जुन सिंह उस समय के सभी नामचीन अभिनेता या अभिनेत्री की फिल्में देखा करते थे। ऊपर से प्रेमनाथ की बहन की शादी प्रख्यात फिल्मकार और शोमैन राजकपूर के साथ हुई थी, इसलिए कॉलेज के दिनों में फिल्मों पर खूब चर्चाएं हुआ करती थीं।
वाइफ से पूछने पर टूट गया सपना
यही कारण था कि अर्जुन सिंह को भी अभिनेता बनने का चस्का लगा। लेकिन यह बात जब अर्जुन सिंह ने अपने पिता से कही तो, उन्होंने ऐसा जवाब दिया कि भविष्य का यह नेता, फिल्मों में जाते-जाते रह गया। उनके पिता ने बड़ी चतुराई के साथ अर्जुन सिंह से कहा- ‘तुम अपनी वाइफ से पूछ लो’। दरअसल अर्जुन सिंह का विवाह पढ़ाई के दौरान ही हो गया था। इसलिए फिल्मों में जाने से पहले पिता की सलाह आड़े आ गई। डॉ. जोशी ने लिखा है अपनी किताब में इस किस्से का जिक्र करते हुए लिाा है, ‘अर्जुन सिंह ने कहा- पिताजी ने ऐसा कहकर मेरे साथ डिप्लोमेसी कर दी। मेरी मुंबई जाने और फिल्मों में काम करने की योजना शुरू होने से पहले ही फेल हो गई।’