डॉ. गीता शर्मा
कल हम छले गये. आना था चाँद की चाँदनी को आ गये गरजत , बरसत , घन चहु ओरा। आसमान झाकने की हिम्मत नहीं। बिजली चमकत दमकत कहाँ चले आये ? शरद की पूर्णिमा है , चाँदनी झरती है और “मालकौन्स “ ( एक राग है , हमारी सभ्यता का परचम, सास्त्रीय संगीत ) बहता है। आधी रात से उठता है और भोर तक चाँदनी के साथ बिहार करता है।
लेकिन कल की रात न चाँद निकला , न चाँदनी झरी , यहाँ तो सावन की झड़ी लग गई। सावन की बूदनिया , बिजली तड़कत दमकत बिजली चमकत। सास ननदिया लरजत। बिजली चमकत। सास ननदिया लरजत। अरे ! आना था “माल कौन्स “ को आ गया “ केदार“ ( केदार एक रराग है , यह रात्रि के पहले पहर में गाया जाता है। पंडित भीम सेन जोशी ने गाया है – सावन की बुदनिया/बरसत घनघोर/बिजली चमकत दमकत तक तो ठीक था , लेकिन इसमें – सास ननदिया का लरजना कहाँ से आ गया ? हम बुद्ध पार्क में बैठे जोशी जी को सुन रहे थे।
राजीव जी का जमाना था , खुले पार्क में संगीत की महफ़िले जमती , लोग सुनते। बग़ल बैठी महिला मित्र से पूछा था – यार ! सावन की बूदनिया के साथ बिजली चमकत , दमकत तो ठीक है लेकिन ये सास ननद का लरजना कहाँ से आ गया ? लरजना जानती हो न ?
उसने जोर से चिकोटी काटा – बदतमीज़ हो!
- रंग ठीक करो!
- किसका रंग ?
- अपने चेहरे का!
- इसमें क्या हुआ?
- हाँ अब ठीक है , सिंदूरी हो गया था!
- इराटिक इमेज क्रियेट करते हो
- भारतीय संगीत। इराटिक नहीं , यह सौन्दर्य है।
सौंदर्य की यह सुविधा , संगीत ने अपने लिये आरक्षित करा रखा है। ख़ुसरो साहब इसके आदि पुरखे हैं। पद्मावती पर ख़िलजी ही नहीं आसक्त हुआ था।
ख़ुसरो ने भी देखा है सौंदर्य :
छाप तिलक सब छीना
तोसे नयना मिलाय के… - बकवास बंद करो , अलाप सुनो , दुष्ट ! नौटंकी !
लौट आया अपने चाँद के इंतज़ार में। लेकिन वह निकला तो नहीं निकला।
महीनों से इंतज़ार था , आयेगा शरद का चाँद। आ गये बदरा। रफ़ी साहब शकील बदायुनी का लिखा और नौशाद के संगीत पर भजन गा रहे हैं , माल कौस में – मन तड़पत / हरि दर्शन को आज । मन फिर भटक गया शरद की आधी रात के बाद गाया जाने वाला राग मालकौन्स – शकील साहब लिख रहे हैं , संगीत दे रहे नौशाद साहब और गा रहे हैं मोहम्मद रफ़ी।
पूछते हो क्या दिया पंडित नेहरू ने? पंडित नेहरू ने केवल संस्थानों की नींव ही नहीं रखी , मज़हब के नाम पर बटे समाज को जोड़ कर एक किया इसके अनगिनत सबूत हैं। एक “माल कौन्स “ में खड़ा सुहाना राग है , इसका लेखक , संगीत कार और गायक तीनो मुसलमान हैं और बज रहा है – हरिदर्शन को आज/ हज़ारो हज़ार साल की यह तहज़ीब पोख्ता हो रही थी , जिसे आज मिटाया जा रहा है। लेकिन यह सब अब फिर जुड़ेगा।
– शरद में सावन कैसे आया?
ज़्यादती हमने की है।
हमने सोचा था आयेगा चाँद , झरेगी चाँदनी। लपकेगा समन्दर लिपटने के लिये चाँद से , लेकिन सब अकारथ गया।
आज ही रचा गया है कृष्ण का महारास। यमुना तट पर पसरी रेत , आज की रात रचे जा रहे महारास की बाट जोह रहीं है। बिहाँसती यमुना की तरंगों को रोक कर कहती है – बहुत पुलकित हुई हो यमुना! देवकी नन्दन का पाँव छूकर , बहुत उपहास किया है हमारा रेत समझ कर! आज बदला हम भी ले लेंगे इस काले कलूटे कृष्ण से। कह कर रेत उड़ी और ढूहे के शिखर पर बैठ गई।
कथा पीछे घूम गई। भादों की अंधेरी रात , कारागार में क़ैद बासुदेव और देवकी को पुत्र हुआ , कंस भय से , बासुदेव कृष्ण को गोद में लिये अपने सनेही नंद और यसोदा के पास छोड़ने जा रहे हैं।
गोकुल गाँव यमुना पार है। रेत और यमुना में बतकही हो चुकी है , रेत आस्वस्थ है वासुदेव उतारेंगे कृष्ण को इस रेत पर , पाँव के निशान हमारी थाती होगी। यमुना हंस पड़ी थी आने दो मजधार में , बग़ैर पाँव छुए जाने नहीं दूँगी उस पार देवकी नंदन को। यमुना जीत गई थी , बासुदेव बाल कृष्ण को ऊपर उठाते गये , यमुना भी उठती गई अंत में पाँव छू ही लिया। यमुना तब से हंस रही है और रेत उदास है। आज बदला लेगी रेत। आने दो कृष्ण को , रचायें महारास!
वही शरद पूर्णिमा आज है। व्यास वर्णन कर रहे हैं। यमुना का किनारा चाँद लटक कर नीचे झुका कृष्ण का महारास देख रहा है। अचानक कृष्ण ओझल हो जाते हैं। गोपिया तलाशती हैं – कहाँ गये कृष्ण? दूर दूर तक पता नहीं। अब रेत की बारी थी उठ कर चुग़ली कर ही दिया। ये निशान देखो , कह कर रेत ने छाती खोल दिया। गोपियों ने पहचान लिया यह तो कृष्ण के पैरों के निशान है , यह निशान कमल पुष्प सा बनता है।
लेकिन यह दूसरा किसका पैर है जो केवल एड़ियों के बल चला है यानी उसका सारा बोझ कृष्ण के ऊपर है। व्यास की प्रतिज्ञा यहाँ टूट जाती है भागवत कथा में व्यास महराज कहीं भी राधा का नाम नहीं लेते लेकिन यहाँ लिखना पड़ा – कृष्ण के साथ जो दूसरा चला है , वह राधा है। दोनों के झुरमुट की ओर जाने का निशान है। रेत की छाती पर कृष्ण के पैरों के निशान इस शरद के चाँद ने भी देखा है। पर कल की रात , हम कुछ नहीं देख पाये।(चेतना विकास मिशन)