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*आर्थराइटिस : जानकारी और निदान*

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     डॉ. प्रिया 

अर्थराइटिस यानि गठिया का मतलब जोड़ों की सूजन है। सूजन इस समस्या का सबसे सामान्य लक्षण है। जोड़ यानि वो क्षेत्र जहां शरीर की दो हड्डियां मिलती है। घुटने, कोहनी और उगलियां इसके उदाहरण हैं।

     गठिया कई प्रकार का होता है। उनमें जोड़ों के अलावा आंखें, हृदय व त्वचा भी प्रभावित हो सकती हैं। शरीर का इम्यून सिस्टम जब गड़बड़ाने लगता है, तो ये बीमारी धीरे धीरे शरीर को अपनी चपेट में ले लेती है।

    इस ऑटोइम्यून डिजीज में बॉडी में मौजूद हेल्दी सेल्स पर अटैक किया जाता है। इससे शरीर में सूजन की स्थिति पैदा हो जाती है।

40 के बाद ज्यादातर लोगों में होने वाली यह समस्या आमतौर पर घुटनों, कोहनी और कलाई को ज्यादा प्रभावित करती है। इसके चलते उंगलियों और पैरों के जॉइंट में ऐंठन, दर्द और सूजन का एहसास होने लगता है।

     शरीर के जोड़ों को प्रभावित करने वाली इस बीमारी के दो रूप हैं। पहला ऑस्टियो अर्थराइटिस और दूसरा है रुमेटाइड अर्थराइटिस।

*कारण :*

      मोटापा : शरीर का वज़न बढ़ने से उसका प्रभाव जोड़ों पर पड़ने लगता है। इसके चलते जोड़ों में दर्द और ऐंठन की समस्या बनी रहती है। इसका असर कार्टिलेज़ पर दिखने लगता है।

     जेनेटिक : कई बार अनुवांशिक तौर पर भी ये हमारे शरीर में फैलने लगता है। अगर परिवार का कोई भी सदस्य इसे ग्रस्त हो, तो ये आपको भी प्रभावित करता है।

    खराब खान पान : उचित खान पान न होना भी अर्थराइटिस बढ़ने का एक प्रमुख कारण है। हेल्दी डाइट न लेने से हम इस आटो इम्यून डिजीज के शिकार हो जाते हैं। ऐसे में हमें रोज़ाना पौष्टिक भोजन के अलावा एक्सरसाइज़ को भी अपने रूटीन में शामिल करना चाहिए।

    बढ़ती उम्र : उम्र बढ़ने के साथस हमारी हड्डिया कमज़ोर होने लगती है। तकरीबन 60 की उम्र के बाद लोग इस समस्या के शिकार होने लगते हैं। हड्डियों पर शरीर का वज़न न आने से ये समस्या पनपने का खतरा बना रहता है।

    चोट लगना : कई बार लगने वाली सामान्य चोट भी ऑस्टियो अर्थराइटिस का कारण साबित होती है। चोट लगने से कार्टिलेज का स्तर घटने लगता है। इससे शरीर कमज़ोर होने लगता है और ये समस्या बढ़ जाती है।

*स्वरूप और लक्षण :*

अलग-अलग तरह के अर्थराइटिस में कुछ लक्षण अलग-अलग भी हो सकते हैं :

    ऑस्टियो अर्थराइटिस : ऑस्टियो अर्थराइटिस से ग्रस्त लोगों में घुटनों में दर्द और स्टिफनेस महसूस होने लगती है। रुमेटाइड गठिया एक ऑटोइम्यून बीमारी है। इसके चलते ज्वाइंटस में दर्द, सूजन और गर्माहट का एहसास होने लगता है।

    गाउट : शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने के चलते गाउट की स्थिति उत्पन्न होती है। इसमें जोड़ों में दर्द और स्वैलिंग होने लगती है।

     जुवेनाइल इडियोपैथिक : गठिया को जुवेनाइल रूमेटोइड गठिया के तौर पर जाना जाता है। जो आमतौर पर 16 साल से कम उम्र के बच्चों में पाया जाता है। इससे बच्चों की ग्रोथ में दिक्कत आती है और आंखों की सूजन भी रहती है।

    एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस : एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस एक तरह का क्रॉनिक अर्थराइटिस है जो रीढ़ की हड्डी के कुछ हिस्सों में सूजन का कारण बनता है।

*1. जोड़ों में ऐंठन का एहसास :*

      लंबे वक्त तक बैठने पर इस बीमारी से ग्रस्त लोगों के जोड़ों में ऐंठन का एहसास होने लगता है। खासतौर पर घुटनों में सबसे ज्यादा अकड़ान महसूस होने लगती है। उठते-बैठते वक्त, सीढ़ियां चढ़ते समय और घुटने मोड़कर योग करते वक्त यह दर्द अगर बढ़ने लगे, तो ये अर्थराइटिस की समस्या का एक संकेत है। अगर आप इस समस्या का अनुभव कर रही हैं, तो इसे हल्के में न लें।

    *2. सूजन महसूस होना :*

अर्थराइटिस के चलते शारीरिक अंगों में ऐंठन के अलावा सूजन भी पाई जाती है। इसमें त्वचा पर सूजन के अलावा लालिमा भी नज़र आती है। साथ ही शरीर के अंग गर्म भी लगने लगते हैं। अगर आपको बार बार सूजन की समस्या झेलनी पड़ रही है या लंबे वक्त तक सूजन बनी हुई है, तो डॉक्टरी जांच आवश्यक है।

  *3. बार- बार दर्द की शिकायत :*

गठिया के दौरान दर्द का अनुभव होना एक शुरूआती संकेत माना जाता है। कई बार ये दर्द लगातार बना रहता है, तो कभी आता जाता भी है। शरीर के कई अंगों में अगर आपको दर्द रहने लगा है, तो उपचार अवश्य कराएं।

*4. झनझनाहट का अनुभव होना :*

अगर आप देर तक एक ही कुर्सी पर बैठी रहती हैं, तो इससे पैरों में, घुटनों में और हाथों में झनझनाहट लगने लगती है। इससे आप आसानी से उठ बैठ नहीं पाती है। इसके चलते देर तक एक ही जगह पर बैठी रहती है। बार बार सनसनी महसूस करना भी अर्थराइटिस का ही एक संकेत है।

*निदान :*

    फिजिकल एग्जामिनेशन करके डॉक्टर इस बीमारी का पता लगा पाते हैं। इसके लिए वे जोड़ों में होने वाली दर्द व सूजन की जांच करते हैं।

इसके अलावा ब्लड, यूरिन और जोड़ों के फ्लूइड को लेकर लेबोरेटरी टेस्ट भी करवाए जाते हैं।

    बीमारी की तह तक पहुंचने के लिए एक्स रे, एमआर आई और सीटी स्कैन भी आवश्यकतानुसार किए जाते हैं।

आर्थरोस्कोपी का भी प्रयोग किया जाता है। इसके ज़रिए घुटनों के नज़दीक एक टयूब को इंसर्ट किया जाता है। जिससे अंदरूनी इमेज़िज़ के सहारे समस्या को बारीकी से समझा जा सके।

   *एक्सरसाइज़ करें :*

दिन भर में कुछ वक्त एक्सरसाइज़ करना बेहद ज़रूरी है। इससे शारीरिक अंगों में मौजूद स्टिफनेस दूर होने लगती हैं। इससे बॉडी में ब्लड फ्लो बेहतर बनता है। सुबह स्ट्रेचिंग से दिन की शुरूआत करें और कुछ वक्त योग व मेडिटेशन के लिए निकालें।

       *हाइड्रेटेड रहें :*

     पानी बार-बार पिएं और बॉडी में वॉटर लेवल को मेंटेन रखें। इससे शरीर के बाकी अंगों में थकान और दर्द की समस्या नहीं रहती है। साथ ही बॉडी में फ्लूइड की मात्रा बरकरार रहती है। अपनी डाइट में पानी के अलावा अन्य प्रकार के तरल पदार्थों को भी शामिल करें। इससे शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की पूर्ति होती है।

    *मोटापे से बचें :*

दिनभर में कुछ देर वॉक के लिए निकालें। इससे शरीर को वज़न नियंत्रित रहता है। इसके अलावा शरीर कई प्रकार की बीमारियों से भी बचा रहता है। वज़न को नियंत्रित करने से आपके शरीर का वजन जोड़ों में होने वाली तकलीफ को कम कर देता है।

*उपचार :*

     दवाएं : अर्थराइटिस के जोखिम को कम करने के लिए डॉक्टर की सलाह के बाद इबुप्रोफेन, नेपरोक्सन, मेथोट्रेक्सेट और प्लाक्वेनिल मेडिसिन का सेवन कर सकते हैं। इनकी मदद से उपचार में मदद मिलती है।

     साथ ही अर्थराइटिस की बढ़ती को नियंत्रित किया जा सकता है। इस समस्या से दो चार हो रहे लोगों की बॉडी में सूजन भी बढ़ने लगती है। इससे मुक्ति पाने के लिए इन्फ्लिक्सिमाब नामक दवा को भी डॉक्टर की जांच और परामर्श के बाद ले सकते हैं।

    फिज़ियोथेरेपी : शरीर को दोबारा से मूवमेंट में लाने के लिए फिज़ियोथेरेपी एक बेहतरीन विकल्प है। इससे इलाज में भी मदद मिलती है। साथ ही जोड़ों में आइ ऐंठन, सूजन और दर्द कम होने लगता है। इसके लिए खासतौर से शरीर की मालिश की जाती है।

    इससे जोड़ों को दोबारा से हेल्दी बनाने और उन्हें सुचारू करने के लिए एक्यूपंक्चर व कई प्रकार की एक्सरसाइज़ की जाती है। इससे पेन से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही दर्द के कारण परेशान शरीर दोबारा से एक्टिव होने लगता है।

   सर्जरी : रूमेटॉइड अर्थराइटिस के ट्रीटमेंट में सर्जरी भी बेहद लोकप्रिय है। वे लोग जिनमें जोड़ों के दर्द की समस्या बढ़ने लगती है। वे सर्जरी को विकल्प के तौर पर चुनते हैं। इसके लिए तीन तरह की सर्जरी की जाती है : आर्थ्रोस्कोपी, जॉइंट रिप्लेस करना और एंडोटेरेक्टॉमी.

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