डॉ. गीता शर्मा
अस्थमा एक नॉन कम्युनिकेबल डिजीज है, जो बच्चों और बड़ों दोनों को प्रभावित करता है। यह बच्चों में सबसे आम क्रोनिक डिजीज है. क्रोनिक एयर वेज डिजीज ब्रोन्कियल अस्थमा में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। सामान्य रूप से सांस लेने की प्रक्रिया में सांस मार्ग के आसपास की मांसपेशियां आराम की स्थिति में होती हैं।
इससे आसानी से हवा सांस मार्ग में आती जाती रहती है। दमा या अस्थमा होने पर ये प्रभावित हो जाते हैं।
अस्थमा लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है, जो फेफड़ों में एयरवेज को प्रभावित करती है। एयरवेज के सहारे फेफड़ों से हवा अंदर और बाहर जाती है। अस्थमा के कारण एयरवेज यानी वायुमार्ग में कभी-कभी सूजन और संकुचन भी हो सकता है। इससे सांस छोड़ने और लेने से वायुमार्ग से हवा का बाहर निकलना कठिन हो जाता है।
भारत में अस्थमा के लगभग 3% यानी 30 मिलियन रोगी हैं। इसमें 15 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों में 2.4% और बच्चों में 4% से 20% के बीच है.
*लक्षण :*
अस्थमा का सबसे आम लक्षण गले में घरघराहट है। सांस लेने के दौरान सीटी जैसी आवाज आ सकती है।
रात में, हंसते समय या एक्सरसाइज के दौरान खांसी होने लगती है।
सीने में जकड़न, सांस लेने में कठिनाई, बात करने में कठिनाई, एंग्जायटी, थकान,छाती में दर्द, तेजी से सांस लेने में दिक्कत इसके लक्षण हो सकते हैं। बार-बार संक्रमण होना, नींद न आना भी लक्षण हैं।
*स्वांस फूलना :*
अस्थमा के दौरे में एयरवेज को घेरने वाली चिकनी मांसपेशियों की परत का निर्माण होता है, जिससे इसमें संकुचन होता है। इससे हवा के आने-जाने में कठिनाई होती है।
*सूजन :*
अस्थमा के दौरान फेफड़ों में ब्रोन्कियल ट्यूबों की अंदरूनी परत में सूजन हो जाती है। यह सूजन हवा के प्रवाह को कम कर देती है।
*बलगम :*
अस्थमा के दौरे के दौरान बलगम एयरपाथ को अवरुद्ध कर देता है। यह हवा के प्रवाह को रोक देता है।
अस्थमा के दौरे तनाव, बहुत अधिक थकान, एलर्जी और मौसम में बदलाव होने के दौरान बढ़ जाते हैं।
*अस्थमा के कारण :*
जेनेटिक्स के कारण इसके विकसित होने की अधिक संभावना होती है। वायरल संक्रमण हिस्ट्री भीअस्थमा का कारण हो एकता है।
जिन लोगों में बचपन के दौरान गंभीर वायरल संक्रमण, जैसे कि रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस संक्रमण का इतिहास रहा हो, उनमें इस स्थिति के विकसित होने की संभावना अधिक हो सकती है।
बच्चे अपने शुरुआती महीनों और वर्षों में पर्याप्त बैक्टीरिया के संपर्क में नहीं आते हैं, तो उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली अस्थमा और अन्य एलर्जी से लड़ने के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं हो पाती है।
श्वसन संक्रमण, एक्सरसाइज, पर्यावरण संबंधी परेशानियां, एलर्जी, किसी प्रकार के इमोशन, मौसम की स्थिति, पोलेन ग्रेन, कुछ दवाएं, जिनमें एस्पिरिन या नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं शामिल हैं, भी अस्थमा को ट्रिगर कर सकते हैं।
*अस्थमा का निदान :*
ऐसा कोई परीक्षण नहीं है, जो यह निर्धारित कर सकता है कि आपको या बच्चे को अस्थमा है या नहीं। इसके निदान में हेल्थ हिस्ट्री, हेल्थ चेक अप मदद कर सकते हैं। पित्ती या एक्जिमा जैसी एलर्जी प्रतिक्रिया के लक्षण देखने के लिए स्किन टेस्ट हो सकता है। एलर्जी से अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है।
पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट फेफड़ों में और बाहर एयर प्रवाह को माप कर अस्थमा का पता लगाया जाता है।
*अस्थमा का उपचार :*
अस्थमा को उपचार गंभीरता को देखकर किया जाता है.
शीघ्र राहत देने वाली दवा, नियंत्रण के लिए लंबे समय तक चलने वाली दवाएं, तुरंत राहत और लंबे समय तक चलने वाली दवाओं के संयोजन से भी इसका इलाज किया जा सकता है।
गंभीर रूपों के लिए बायोलॉजिक्स दिए जाते हैं, जो इंजेक्शन या इन्फ्यूजन द्वारा दिया जाता है। अस्थमा की स्थिति, उम्र, ट्रिगर के आधार पर इलाज किया जाता है।
घरेलू उपचार भी आजमाए जा सकते हैं :
*गर्म भोजन और पेय पदार्थ :*
अस्थमा से बचाव के लिए गर्म पेय और ताज़ा और गर्म भोजन लें।
ब्राउन राइस, प्रोटीन युक्त भोजन, हरी पत्तेदार सब्जियां, बीन्स, गाजर, पत्तागोभी, फूलगोभी, प्याज, शकरकंद, इडली, डोसा, किमची, अंकुरित अनाज और अंडे मानसून के दौरान अस्थमा से राहत दिलाने में सहायक हो सकते हैं।
*भाप :*
जीरा, तुलसी, या आवश्यक तेलों के साथ उबले हुए पानी के वाष्प को अंदर लेने से ब्रोन्कोडायलेशन होता है और सांस लेने में आसानी होती है।
स्वच्छ परिवेश: घर की धूल कण और नम दीवारें अस्थमा फैलने का कारण बनती हैं।
जितनी जल्दी हो सके, इससे निपटने का उपाय करें। साप्ताहिक रूप से बिस्तर की चादरें और तकिए के कवर बदलना चाहिए। सप्ताह में कम से कम दो बार कालीन को वैक्यूम क्लीन करना चाहिए।
*एलर्जी से बचें :*
बारिश के मौसम में प्रदूषण युक्त क्षेत्रों, धूम्रपान क्षेत्र, धूल भरे क्षेत्रों और पोलेन ग्रेन युक्त पौधों से दूर रहें।
इन सावधानियों के अलावा, अपनी अस्थमा की दवाएं नियमित रूप से लेती रहें।