ज्योतिषाचार्य पवन कुमार (वाराणसी)
_जिस दिन मां के पेट में पहली दफा गर्भाधान होता है तो पहला एक्सपोजर होता है. जिस दिन मां के पेट से बच्चा बाहर आता है,जन्म लेता है,उस दिन दूसरा एक्सपोजर होता है. दोनों एक्पोजर संवेदनशील चित पर फिल्म की भांति अंकित हो जाते हैं।_
मान लें : मैं आपसे बोल रहा हूं आप सुन रहे है—अगर मैं बहुत धीमे बोलूं तो ऐसी जगह आ सकती है कि मैं बोलूं और आप न सुन पाएँ.लेकिन यह आपको यह ख्याल में न आएगा कि इतने जोर से बोला जाए कि आप न सुन पाएँ। आपको कठिन लगेगा क्योंकि जोर से बोलेंगे तो सुनाई पड़ेगा ही।
_वैज्ञानिक कहते है हमारे सुनने की भी डिग्री है। उससे नीचे भी नहीं सुन पाते, उससे ऊपर भी हम नहीं सुन पाते। हमारे आस पास भंयकर आवाजें गुजर रही है। लेकिन हम सुन नहीं पाते। एक तारा टूटता है आकाश में, कोई नया ग्रह निर्मित होता है या बिखरता है तो भयंकर गर्जना वाली आवाजें हमारे चारों तरफ से गुजरती है।_
अगर हम उनको सुन पाएँ तो हम तत्काल बहरे हो जाएं। लेकिन हम सुरक्षित है क्योंकि हमारे कान सीमा में ही सुनते है। जो सूक्ष्म है उसको भी नहीं सुनते, जो विराट है उसको भी नहीं सुनते। एक दायरा है बस उतने को सुन लेते है।
देखने के मामले में भी हमारी वह सीमा है। हमारी सभी इंद्रियाँ एक दायरे के भीतर है, न उसके ऊपर न उसके नीचे। इसीलिए आपका कुत्ता आपसे ज्यादा सूंघ लेता है। उसका दायरा सूंघने का आपसे बड़ा है। जो आप नहीं सूंघ पाते,कुत्ता सूंघ लेता है। जो आप नहीं सुन पाते, आपका घोड़ा सुन पाता है। उसके सुनने का दायरा आपसे बड़ा है।
_एक डेढ़ मील दूर सिंह आ जाए तो घोड़ा चौककर खड़ा हो जाता हे। डेढ़ मील के फासले पर उसे गंध आती है। आपको कुछ पता नहीं चलता। अगर आपको सारी गंध आने लगें, जितनी गंध आपके चारों तरफ चल रही है तो आप विक्षिप्त हो जाएंगे। मनुष्य एक कैप्सूल में बंद है, उसका सीमित है, उसकी बाउंडरी है।_
आप रेडियों लगाते है और आवाज सुनाई पड़नी शुरू हो जाती है। क्या आप सोचते है, जब रेडियों लगाते है तब आवाज आनी शुरू होती है/ आवाज तो पूरे समय बहती ही रहती है। आप रेडियो लगाएँ या न लगाए। लगाते है तब रेडियों पकड़ लेता है, बहती तो पूरे वक्त रहती है।
_दुनिया में जितने रेडियो है, सबकी आवाजें अभी इस कमरे से गुजर रही है। आप रेडियो लगाएंगे तो पकड़ लेंगे। आप रेडियों नहीं लगाते है, तब भी गुजर रही है। लेकिन आपको सुनाई नहीं पड़ रही है।_
जगत में न मालूम कितनी घ्वनियां है जो चारों तरफ हमारे गुजर रही है। भंयकर कोला हाल है—वह पूरा कोलाहल हमें सुनाई नहीं पड़ता, लेकिन उससे हम प्रभावित तो होते हे। ध्यान रहे, वह हमें सुनाई नहीं पड़ता, लेकिन उससे हम प्रभावित तो होते हे। वह हमारे रोएं-रोएं को स्पर्श करता है। हमारे ह्रदय की धड़कन-धड़कन को छूता है।
_हमारे स्नायु-स्नायु को कंपा जाता है। वह अपना काम तो कर ही रहा है। उसका काम तो जारी है। जिस सुगंध को आप नहीं सूंघ पाते उसके अणु आपके चारों तरफ अपना काम तो कर ही जाते हे। और अगर उसके अणु किसी बीमारी को लाए है तो आप को दे जाते है।_
आपकी जानकारी आवश्यक नहीं है। किसी वस्तु के होने के लिए।
ज्योतिष का कहना है कि हमारे चारों तरफ ऊर्जाओं के क्षेत्र है, एनर्जी फील्डस है और वह पूरे समय हमें प्रभावित कर रहे है। जैसे ही बच्चा जन्म लेता है तो वह जगत के प्रति, जगत प्रभावों के प्रति फंस जाता है। जन्म को वैज्ञानिक भाषा में हम कहें एक्सपोजर, जैसे कि फिल्म को हम ऐक्सपोज करते है।
_कैमरे में, जरा सा शटर आप दबाते है एक क्षण के लिए कैमरे की खिड़की खुलती है और बंद हो जाती है। उस क्षण में जो भी कैमरे के समक्ष आ जाता है। वह फिल्म पर अंकित हो जाता है। फिल्म ऐक्सपोज हो गई। अब दुबारा उस पर कुछ अंकित न होगा—और अब यह फिल्म उस आकार को सदा अपने भीतर लिए रहेगी।_
जिन दोनों एक्पोजर की बात लेख के आरंभ के हमने की है, वे हमारे संवेदनशील चित पर फिल्म की भांति अंकित हो जाते है। पूरा जगत उस क्षण में बच्चा अपने भीतर अंकित कर लेता है। और उसकी एम्पेथीज,समानुभूति निर्मित हो जाती है.
_ज्योतिष इतना ही कहता है कि यदि यह बच्चा जब पैदा हुआ है तब अगर रात है...ओर जानकर आप हैरान होंगे की सत्तर से लेकर नब्बे प्रतिशत बच्चे रात में पैदा होते है, यह थोड़ा हैरानी की बात है….क्योंकि आमतौर से पचास प्रतिशत होने चाहिए। चौबीस घंटे का हिसाब है, इसमें कोई हिसाब भी न हो,बेहिसाब भी बच्चे पैदा हों, तो बारह घंटे रात, बारह घंटे दिन, साधारण संयोग और कांबिनेशन से ठीक है, पचास-पचास प्रतिशत हो जाएं।_
कभी भूल चूक दो चार प्रतिशत इधर-उधर हो, लेकिन नब्बे प्रतिशत तक बच्चे रात में जन्म लेते है—दस प्रतिशत तक बच्चे मुशिकल से दिन में जन्म लेते है। अकारण नहीं हो सकती यह बात, इसके पीछे बहुत कारण है।
समझें, एक बच्चा रात में जन्म लेता है तो उसका जो एक्सपोजर है, उसके चित की जो पहली घटना है जगत में अवतरण की वह अंधेरे से संयुक्त होती है। प्रकाश से संयुक्त नहीं होती। यह तो उदाहरण के लिए कह रहा हूं, क्योंकि बात तो और विस्तीर्ण है।
_सिर्फ उदाहरण के लिए कह रहा हूं। उसके चित पर जो पहली घटना है वह अंधकार है। सूर्य अनुपस्थित है। सूर्य की ऊर्जा अनुपस्थित है। चारों तरफ जगत सोया हुआ है। पौधे अपनी पत्तियों को बंद किए हुए है। पक्षी अपने पंखों को सिकोड़कर आंखे बंद किए हुए अपने घोंसलों में छिप गए है। सारी पृथ्वी पर निद्रा है।_
हवा के कण-कण में चारों तरफ नींद है। सब सोया हुआ है। जागा हुआ कुछ भी नहीं है। वह पहला इम्पेक्ट है बच्चे पर.!
{लेखक चेतना विकास मिशन के संयोजक और काशी’विश्वनाथ वास्तु-ज्योतिष संस्थान के निदेशक हैं.)