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अथ भागवत कथा बनाम संघ की अंतर्व्यथा  

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 -सुसंस्कृति परिहार

 अंग्रेजी शासन काल में 1925 से हालांकि संघ की विचारधारा स्पष्ट हो चुकी थी कि वे अंग्रेजों के खिलाफ नहीं है। इस संगठन ने हिटलरशाही को अंगीकार किया उसी स्वरुप में अपने को देशभक्त का चोला पहनाया। यह वेशभूषा काले रंग की टोपी और निकर आदि कहीं से हिंदुस्तानी नज़र नहीं आती। काला रंग दुनियां में प्रतिरोध का प्रतीक रहा है। जब देश में बापू विदेशी कपड़ों का वहिष्कार कर रहे थे आज़ादी के दीवाने गांधीवादी चरखे से स्वयं काती खादी के वस्त्र पहन रहे थे, विदेशी कपड़ों की होली जला रहे थे तब यह हिटलरी पोशाक अपनी कहानी खुद बा खुद बयां करती है ।

बहरहाल इनका आज़ादी के संग्राम से लेकर बापू की हत्या तक का इतिहास गद्दारी से भरा पूरा है। बापू की हत्या के लिए तो सरे आम प्रार्थना सभा में इसके अनुषंगी संगठन हिंदू महासभा के सदस्य नाथूराम गोडसे को जिम्मेदार ठहराया जा चुका है। खासियत यह है कि संघ सीधे सीधे किसी आपराधिक घटना में शरीक नहीं दिखता कहीं बजरंग दल , विश्व हिंदू परिषद, हिंदू जनजागृति, दुर्गा वाहिनी समिति,अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भाजपा है तो कहीं सनातन संस्था संगठन ही जिम्मेदार दिखता है। सबसे अहम् बात ये है कि मुसलमानों के विरोध का कीड़ा संघ के निर्माण की तारीख से इनके भीतर पनप चुका था। पाकिस्तान के विभाजन की स्क्रिप्ट लिखने में जितना हाथ संघ का था उतना जिन्ना का भी था। ये दोनों अंग्रेजों के चाटुकार थे। पाकिस्तान निर्माण के बाद हिंदू राष्ट्र की मांग खुलकर की गई जब पूरी नहीं हो पाई तो गांधी को निशाना बनाया गया उम्मीद थी भारत के बहुसंख्यक वर्ग यानि तमाम हिंदू पूरे देश में इस घटना से एकजुट हो जाएंगे पर भारत की गंगा जमुनी तहज़ीब ने यह नहीं होने दिया।उस दौर में सरदार पटेल ने संघ पर प्रतिबंध लगाने नेहरू जी को राजी कर लिया था  बाद में जब यह लिखित स्वीकृति संघ ने दी कि वह सिर्फ सांस्कृतिक संगठन बनकर काम करेगा तो संघ से प्रतिबंध हटा लिया गया। यहीं शायद कांग्रेस से चूक हो गई और संघ का पूरे भारत में बर्चस्व कायम हो गया।

इसका प्रतिफल ये मिला कि इस संगठन ने अंदर अंदर कथित राष्ट्रवादियों को अपनी शाखाओं और अपने स्कूलों में हिंदू राष्ट्र निर्माण का प्रशिक्षण दिया जिसकी परिणति गोधरा कांड और बाद के 2002 गुजरात नरसंहार में सामने लाई। इसके बाद से इनके प्रशिक्षित  लोगों की उम्मीदें परवान चढ़ने लगीं। ये लोग तब तक प्रशासन के जिम्मेदार पदों तक पहुंच गए।इसी बीच बाबरी मस्जिद का ढांचा राममंदिर के नाम पर तोड़ा गया तब मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे जो पक्के संघी थे वहां आडवानी, मुरलीमनोहर जोशी और उमा भारती जैसे नेताओं की अहम् भूमिका रही।इस घटना ने देश को नई आग में झोंक दिया और मुसलमानों पर  लगातार हमले हुए कभी गौमांस ,गौवंश और लव-जिहाद को लेकर। दूसरी ओर अंधविश्वास के खिलाफ काम करने वाले और प्रगतिशील लेखक विचारक डॉ नरेन्द्र दाभोलकर  ,एम एम कलबुर्गी,  कामरेड गोविंद पानसरे और पत्रकार गौरी लंकेश को इन्हीं दक्षिण पंथियों ने मौत के घाट उतार दिया।इसी जुनून में कहा जाता है  मध्यप्रदेश में सिमी के13 कथित आतंकवादियों को गोली से उड़ाया गया। धीरे धीरे चारों ओर मर्यादा पुरुषोत्तम राम की आड़ में जय श्री राम का खौफनाक  नारा दिल दहलाने लगा। चारों ओर हिंदुत्व का माहौल बनाया जाता रहा।

इसी बीच संघ ने अन्ना हजारे के ज़रिए एक बड़ा आंदोलन कांग्रेस के खिलाफ फर्जी भ्रष्टाचार का षडयंत्र रचा और रामलीला मैदान पर सत्याग्रह किया गया जिसमें तमाम संघी अनुषंगी संगठनों ने सरकार के विरोध में खूब दुष्प्रचार किया और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने लोकपाल की गारंटी दी।  देश इनके जाल में फंस गया। कांग्रेस के नेताओं ने इसे सहजता से लिया अपने काम पर भरोसा किया लेकिन लंबे कांग्रेस के शासन से ऊबे लोगों ने बदलाव का मार्ग चुना और गुजरात नरसंहार के लिए बदनाम मोदी और तड़ीपार शाह देश के कर्णधार बन गए। संघ की खुशी का ठिकाना ना रहा। लोकसभा में बहुमत के बावजूद राज्य सभा इनके लिए अड़ंगा बना हुआ जिसे अपने दूसरे कार्यकाल में भाजपा ने पूरा किया गया।

अब संघ पूरी  तरह अपने हिंदू राष्ट्र की कल्पना में डूबने उतराने लगा लेकिन तभी खुद्दार मोदी और शाह ने रिमोट की अवज्ञा शुरू कर दी। अपने गुरु लालकृष्ण अडवाणी की तरह जब सत्ता पर काबिज गुजरात लाबी गोलबंद हुई तो भागवत के होश उड़ गए। अपनी उपेक्षा का दंश झेलते हुए भागवत ने  तब योगी आदित्यनाथ, अरविंद केजरीवाल को सहलाने की तरकीब निकाली। योगी के चुनाव को पहली बार अपनी प्रतिष्ठा बताया था। संघ ने पहली दफा खुलकर चुनाव में चुनौती दी थी।संघ अपरोक्ष रुप से मोदी के खिलाफ उतरा था। ये बात बहुत कम बाहर आई। जब 9 साल की  मोदी सरकार होने वाली थी तभी से संघ का हिंदू राष्ट्र बनते बनते जनता का मोदीशाह की जोड़ी से मोहभंग हुआ। वह मंहगाई और झूठ से त्रस्त तो थी ही। इस बीच अडानी की लूट में मोदीजी के साथ का जो पर्दाफाश किया जाता  रहा उससे संघ पशोपेश में था इसलिए उसका ध्यान इन बिगड़ते समीकरणों को कैसे सुधारा जाए इस ओर हुआ किंतु इस बीच राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में नफ़रत के विरुद्ध मोहब्बत का पैगाम का जादू सिर चढ़कर बोलने लगा मणिपुर से प्रारंभ दूसरी भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने तो मोदी शाह के साथ संघ की नींद उड़ा दी। इंडिया गठबंधन बना विपक्ष मज़बूत हुआ जिसने 2024 में हिंदू राष्ट्र बनाने वालों की धज्जियां उड़ा दीं।

 दरअसल  संघ प्रमुख मोहन भागवत तो सिर्फ़ यह चाहते थे  मोदी शाह जोड़ी को किसी तरह हटा दिया जाए पर जब भाजपा डूबती दिखने लगी तो उन्होंने फिर पैंतरा बदलना शुरू किया उन्होंने मुसलमानों को साथ लेने उन्हें अपना डीएनए वाला बताया मजार और मौलवियों का रुख किया। साथ ही यह भी कहने से नहीं चूके कि मुसलमान और ईसाई समुदाय के बिना हिंदु राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती है।सदा जातिवादी दृष्टिकोण रखने वाले चितपारी ब्राम्हण भागवत आज जातिवाद के लिए पंडितों को दोषी ठहरा रहे हैं। गौमांस खाने वालों की खिलाफत करने वालों को बता रहे हैं कि हमारे वेदों में गोमांस खाना जरुरी था।संघ के ऐसे दुर्दिन भाजपा ने कर दिए हैं कि बकौल रिटायर्ड जज पी एस कोलसे पाटिल ने बताया है कि संघ को आतंकवादी संगठन ISISसे 29 करोड़ लेना पड़ा।यह संघ की मन: स्थिति को दर्शाता है।

संघ की छटपटाहट इसलिए और बढ़ गई है कि भाजपा का सूपड़ा 2024 में लगभग साफ हो गया वह दो वैशाखियों के सहारे  आ गई है। विपक्ष बराबरी पर आकर खड़ा हो गया है। अब संघ दुविधा में दिख रहा है। देर सबेर वह सत्ता  में आता है तो संघ और भाजपा दोनों इसके लपेटे में आ जाएंगे इसलिए वे अपने रक्षण के लिए अब भाजपा के ख़िलाफ़ बोलने लगे हैं।सवाल यह उठता है इतने दिनों से मोहन भागवत जी कहां थे।जो आरोप वे आज लगा रहे हैं वे पहले क्यों  नहीं लगाए। 

इसीलिए भागवत जी संघ की विचारधारा से अलहदा विचार पिछले कुछ माहों से बोलने लगे हैं जिन्हें उनके साथी भी नहीं समझ पा रहे हैं वस्तुत:जहर बोकर अब भारतीय तहज़ीब की धारा में बहने का ढोल पीट रहे हैं।जबकि संघ पोषित कथा प्रवचन और भागवत करने वाले अब भी खुलकर हिंदू राष्ट्र की वकालत करने में लगे हैं। वहीं कांग्रेस खासतौर से राहुलगांधी की तारीफ भी की जाने लगी है किंतु संघ का यह खेल अब चलने वाला नही है। संघ के अनुशासित संघियों का विश्वास भी उन पर से उठने लगा है। देखिए आगे क्या होता है? बहरहाल अभी इतना तो तय नज़र आ रहा है कि हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे।

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