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नज़रिया:हमारी आदत बन चुकी है हर चीज को जेंडर के दायरे में बांधने की

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शैलेंद्र पांडेय:

 प्याज महंगा है या महंगी, दही जमता है या जमती और रोड बनता है या बनती? ज्यादा टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। जवाब आपका या के इधर वाला हो या उधर वाला, इससे उस चीज पर तो कोई फर्क पड़ने से रहा। प्याज का दाम आसमान चढ़ ही चुका है, तो इसके नर या मादा बन जाने से क्या असर पड़ने वाला है। इसे तो याद रखिए बस एक उदाहरण के रूप में कि कैसे हमारी आदत बन चुकी है हर चीज को जेंडर के दायरे में बांधने की।

जीवित तक तो ठीक, लेकिन गाड़ी-मोटर, मशीनें, हथियार, ओहदा-ओहदेदार, खेल-मैदान, गांव-कस्बा-शहर, व्रत-त्योहार – कुछ भी ऐसा नहीं बचा जिसका लिंग न निर्धारित किया हो हमने। अंतर बस यह कि किसी भाषा में यह हरकत ज्यादा है और किसी में थोड़ी कम। बच्चे को भाषा ज्ञान देते समय यह भेदभाव भी दे देते हैं हम। फिर वह हर चीज को उसके जेंडर के हिसाब से तौलने लगता है। इस लैंगिक पूर्वाग्रह की जड़ें इतनी गहरी हैं कि पता भी नहीं चलता हम किसी पूर्वाग्रह के शिकार हैं। यह सामान्य आदत का हिस्सा बन जाता है। लेकिन जो भाषाएं सैकड़ों-हजारों बरसों में विकसित हुईं, उन्हें एक झटके में तो बदला नहीं जा सकता। हां, शायद इन भाषाओं के लिए उन भाषाओं के उदाहरण कुछ काम आ सकें, जिन्हें जेंडर न्यूट्रल लैंग्वेज कहा जाता है।

जेंडर न्यूट्रल का मतलब यह बिल्कुल नहीं कि मर्द और औरत का भेद पूरी तरह मिटा दिया गया है इन भाषाओं में। इसका मतलब है ऐसी लचीली भाषा, जहां संवाद करते समय जेंडर पर अधिक ध्यान नहीं देना पड़ता। हमारी अपनी ऐसी सबसे जानी-पहचानी भाषा है बंगाली। कई सामान्य वाक्यों में यहां लिंग के आधार पर अंतर नहीं होता।

इसी तरह पुलिस, डॉक्टर और शिक्षक जैसे कई ओहदे जेंडर में नहीं बंधे। फिलीपींस में बोली जाने वाली प्राचीन Tagalog को भी जेंडर न्यूट्रल मानते हैं। इसमें बहुत से शब्द और वाक्य संरचनाएं लिंग के आधार पर नहीं बंटतीं। महिला और पुरुष, दोनों के लिए एक ही सर्वनाम इस्तेमाल होता है, ‘Sia’। जापानी, बास्क, पर्शियन और कुछ हद तक चीन की मैंडरिन को भी जेंडर न्यूट्रल माना जाता है। इनमें ऐसी कोई मजबूरी नहीं कि जेंडर देखकर वाक्य बदलना पड़े।

किसी भी भाषा का लक्ष्य है कम्युनिकेशन, न कि कंफ्यूजन या बायस्ड बनाना। अंग्रेजी ने पांच साल पहले यह पहचाना कि दुनिया बस मर्द और औरत में नहीं बंटी। उसने They को सिंगल पर्सन के लिए सर्वनाम के रूप में अपनाया। यह केवल एक शब्द की नई पहचान नहीं थी, बल्कि इसने एक पूरी कम्युनिटी को अपनी पहचान दे दी, जो खुद को आदमी या औरत के रूप में बांटना नहीं चाहती। अर्जेंटीना के कुछ स्कूलों में प्रयोग के तौर पर जेंडर न्यूट्रल शब्दों का इस्तेमाल शुरू किया गया है। तो बराबर की बात करने से पहले क्यों न भाषा में थोड़ी बराबरी लाई जाए, क्योंकि कथनी और करनी में अंतर जमता नहीं।

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