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 मियां भाइयों के कंधे पर पूरी की बबलू भट्ट ने अपनी अंतिम यात्रा

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 बबलू भट्ट ने अपनी अंतिम यात्रा अपने मियां भाइयों के कंधे पर पूरी की. बबलू के मियां भाई लोग उनको जिंदगी तो नहीं दे सकते थे, लेकिन इंसानियत दिखा सकते थे. इंसानी जिंदगी को गरिमा और इज्जत बख्श सकते थे. उन्होंने वह करके इंसानियत की लाज बचाई.  समाज को लड़ाने वाले बहिष्कार और बवेला चाहते हैं, लेकिन समाज अपने तरीके से चलता है. 

बबलू भट्ट ऑटो चलाते थे. घर में बस उनकी मां थी. माली हालत बहुत ठीक नहीं थी. बस गुजर-बसर होता था. बबलू लंबे अरसे से बीमार थे. अचानक बीमारी बढ़ गई और बबलू की मौत हो गई. 

घर में कोई और नहीं था, इसलिए मौत की खबर लगते ही उनके पड़ोसी मुसलमान भाई लोग एकत्र हुए. अंतिम संस्कार का सब सामान मंगवाया और कंधा देकर राम नाम सत्य है के उदघोष के साथ मुक्तिधाम ले गए और बाकायदा हिंदू रीति-रिवाज से बबलू का अंतिम संस्कार किया. 

यह मामला मध्य प्रदेश के अनूपपुर का है. भारत में हर दिन ऐसे सैकड़ों वाकये होते हैं जब हिंदू-मुसलमान आपस में मिलकर एक-दूसरे की मुसीबत में सहारा बनते हैं. कुछ लोगों को यह सब अच्छा नहीं लगता. वे मंच सजाकर आह्वान करते हैं कि मुसलमानों को सबक सिखाओ, सिर काट लो, हाथ काट लो, बहिष्कार कर दो. वे दुष्ट लोग हैं. वे समाज के दुश्मन हैं. उनकी मंशा ठीक नहीं है. वे चाहते हैं कि आप आपस में लड़ें, आप बंट जाएं और उनको सत्ता मिले. उन्हें सत्ता का संरक्षण हासिल है. वे पुलिस की मौजूदगी में ऐसे अपराध करते हैं, लेकिन उनपर कभी कार्रवाई नहीं होती. जाहिर है कि उन्हें ऐसा करने के लिए कहा जाता है. 

उनकी बातों में आकर आप अपने लोगों के प्रति नफरत पालते हैं और अपना नुकसान करते हैं. जब विवेकानंद शिकागो में सर्वधर्म सम्मेलन में भाग लेने गए तो उन्होंने भाषण दिया था कि मैं उस धरती से आया हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सर्वधर्म समभाव का पाठ पढ़ाया. ये लोगों का आपस में लड़ाने वाले विवेकानंद से बड़े हिंदू हैं? नहीं, इनका धर्म से कोई लेना देना नहीं है. ये आपकी आस्था के सियासी लुटेरे हैं. इन्हें तवज्जो मत दीजिए. अपने समाज को इसी तरह सुंदर बनाइए. मुसीबत में एक दूसरे की मदद कीजिए और प्रेम से मिलजुल कर रहिए.

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