*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
मोदी जी के विरोधी आखिर चाहते क्या हैं? क्रिकेट के वर्ल्ड कप में इंडिया को हरवाने से भी संतोष नहीं हुआ क्या? अब सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों को बचाने का श्रेय चुराने में लगे हुए हैं। सिर्फ मोदी जी को नीचा दिखाने के लिए, ऐन आखिरी वक्त पर न जाने कहां से रैट होल माइनर कर के कोई मजदूर ले आए हैं। जबर्दस्ती मजूरों ने मजूरों को बचाया के गीत गा रहे हैं और मोदी जी की उद्धारकर्ता वाली फोटो को दूसरे चेहरों के पीछे छुपा रहे हैं। असली हीरो ये हैं, असली हीरो ये हैं, का शोर मचा रहे हैं। यानी मोदी जी असली हीरो नहीं हैं! इसी झांय-झांय के चक्कर में तो मोदी जी बीच में से ही दुबई के लिए निकल गए। कम से कम वहां उनके और कैमरे के बीच में कोई नहीं आएगा।
पर बलिहारी है इन विरोधियों की अकल की, जो उद्धारकर्ता के रोल में मोदी जी के सामने फटीचर खदान मजदूरों को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। क्या सुरंग में उतरकर बचाने से, हाथ से मलबा हटा-हटाकर निकालने से ही कोई उद्धारकर्ता बन जाता है? क्या हाथ से मिट्टी निकालना ही सब कुछ है? मोदी जी जो चुनावी युद्घ के बीच भी बार-बार सुरंग में फंसे मजदूरों की कुशल पूछते रहे, जो मोदी जी कभी एमपी, तो कभी राजस्थान तो कभी तेलंगाना से, रिपोर्ट लेते रहे और चिंता जताते रहे, उसका क्या कोई मोल ही नहीं है? ये तो वही वर्ल्ड कप वाली बात हो गयी। मोदी जी के यशस्वी नेतृत्व में भारत फाइनल से पहले हरेक मैच जीता, पर उसका कोई क्रेडिट नहीं। बस फाइनल में हरा दिया, तो जीत का कप आस्ट्रेलिया वालों के पांवों में। ऐन आखिरी दस मीटर में बड़ी वाली मशीन टूट गयी, तो मोदी जी उद्धार करने की दौड़ से आउट — मजदूरों को निकालने का सेहरा रैट माइनरों के नाम, जबकि उनमें ज्यादा तो मुसलमान ही हैं।
हद्द तो यह है कि भाई लोग उद्धार का श्रेय चुराने पर भी नहीं रुक रहे हैं? उल्टे मजदूरों के सुरंग में फंसने का जिम्मा भी मोदी जी पर डालने की कोशिश और कर रहे हैं। पूछ रहे हैं सुरंग बनाने की इजाजत किस ने दी? सुरंग किस की कंपनी बनवा रही थी? सुरंग बनवाने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं, वगैरह, वगैरह!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*