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बारिश के खेल का खेती पर बुरा असर

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पूनम गौड़
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की अब तक की चाल को देखें तो देश भर में न सिर्फ इसकी तीव्रता अलग रही है बल्कि बारिश में भी काफी असमानता दिखी है। 25 जुलाई तक10 देश में सामान्य से 11 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। इसके बावजूद इस मॉनसून से कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है।

इस साल मॉनसून सीजन की शुरुआत के बाद से अब तक बाढ़ आने, जमीन खिसकने, बादल फटने और बिजली गिरने का सिलसिला जारी है। 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इस तरह की घटनाएं इस मॉनसून में घट चुकी हैं। इनकी वजह से 1172 लोगों की जान गई है और 0.34 मिलियन हेक्टेयर फसल बर्बाद हो चुकी है। यह बर्बादी की तस्वीर का एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू हमें इसी तरह की कई और मुसीबतें दिखाता है:

बिहार का हाल खराब
मौसम विभाग के अनुसार बिहार के 38 में से 36 जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है। बिहार में मॉनसून की कुल बारिश का 50 प्रतिशत हिस्सा जून-जुलाई में ही बरसता है। लेकिन इस बार बारिश कम होने से धान पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। धान लगाने का उपयुक्त समय 15 जुलाई तक ही होता है। अब अगर अगस्त में बारिश सामान्य स्तर पर पहुंच भी जाए, तो किसानों को उसका नुकसान ही होगा, क्योंकि फिर बाढ़ धान की फसल बर्बाद कर देगी।

क्यों बदल रहा है ट्रेंड
कई ऐसी रिसर्च हैं जो बताती हैं कि भारत में 1901 से 2012 के दौरान बारिश के ट्रेंड में कमी आ रही है। इसकी कई सारी वजहें भी इन्हीं में दर्ज हैं। आइए देखते हैं क्या हैं मुख्य कारण:

इस बार जहां मॉनसून सीजन में बारिश से खासतौर पर धान की खेती पर बुरा असर पड़ा है, वहीं इससे पहले हीट वेव के कारण गेहूं की यील्ड में कमी आई थी। मौसम के असामान्य पैटर्न से किसानों की स्थिति और खराब होगी, जो पहले ही खेती की लागत बढ़ने से परेशान हैं।

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