मुनेश त्यागी
बहराइच दंगों में एक 22 वर्षीय नौजवान की जान चली गई, उसका परिवार और पत्नी बर्बाद हो गई हैं। सोशल मीडिया की खबरों के अनुसार इन दंगों में एक निजी घर में लगा हरा झंडा नौचा गया और उसके स्थान पर भगवा झंडा लगा दिया गया। झंडा नौचे जाने के समय एक समुदाय विशेष के खिलाफ नारे लगाए जा रहे थे, लोग खुशियां मना रहे थे और भीड़ झंडा नौचने वाले की हत्या को बलिदान बता रही थी।
इन दंगों के बहुत सारे सवालों की सच्चाई यह भी है कि जब यह झंडा नौचा जा रहा था, तो उस समय वहां पर सैकड़ों की संख्या में पुलिस मौजूद थी और वह तमाशबीन क्यों बनी रही?। हरा झंडा नौचने और भगवा झंडा लगाने में कम से कम 5 से 10 मिनट तो लगे होंगे, तब पुलिस ने इसे क्यों नहीं रोका और तब पुलिस क्या करती रही? इसके बाद हरे झंडे को देवी की मूर्ति को विसर्जित करने वाली भीड़ द्वारा पैरों से रौंदा गया, तब भी पुलिस निष्क्रिय और तमाशबीन ही क्यों बनी रही? ऐसा करने वालों को क्यों नहीं रोका गया? इससे पहले देवी की मूर्ति पर पत्थर मारने वालों को क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया? पुलिस इस समय क्या कर रही थी? यहीं पर सवाल उठ रहा है कि झंडा नोचने वाले को गिरफ्तार करके पुलिस को क्यों नहीं दिया गया? उसे मार क्यों डाला गया? उसकी हत्या क्यों की गई? और क्या किसी सड़क विशेष से जुलूस निकालने की आजादी नहीं है?
भीड़ पर पत्थर किसने मारे? भीड़ द्वारा सांप्रदायिक नारे और गाने क्यों बजाने दिए गए? इन्हें पुलिस ने समय रहते क्यों नहीं रोका? मृतक के शव का जुलूस क्यों निकालने दिया गया और शव यात्रा में भीड़ लाठी, डंडे , तलवार क्यों लिए हुई थी? पुलिस ने सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाली शव यात्रा को क्यों होने दिया? सरकारी तंत्र डीएम, एसएसपी, पीएससी के अधिकारी उस समय क्या कर रहे थे? इंटेलिजेंस एजेंसियां क्यों सुषुप्तावस्था में थी? इस पूरी घटना की वीडियो क्यों नहीं बनाई गई? मृतक में झंडा नोचने की मानसिकता कहां से आई?
इसके बाद भीड़ द्वारा हिंदुओं और मुसलमानों के घरों, दुकानों, कारों और मोटरसाइकिलों को क्यों लूटा और जलाया गया? पहले दिन की घटना के बाद पूरा सरकारी शासन, प्रशासन, पुलिस और पीएसी क्या करती रही? उन्होंने दंगों की अप्रत्याशित घटनाओं को रोकने के लिए समय से क्यों कड़े कदम नहीं उठाए? वे सावधान क्यों नहीं हुए और वे निष्क्रिय और संवेदनहीन क्यों बन रहे? ये बहुत सारे सवाल हैं जिनका शासन, प्रशासन, मीडिया और जनता द्वारा जवाब दिया जाना चाहिए।
मगर हम पिछले काफी समय से देखते चले आ रहे हैं कि इस प्रकार की घटनाओं का कोई समुचित जवाब जनता को नहीं दिया जाता है। यहीं पर एक बहुत बड़ी बात सामने आ रही है कि गोदी मीडिया और अखबार वालों द्वारा इन दंगों की असली सच्चाई और पूरी हकीकत आज तक भी देश की जनता को क्यों नहीं बताई गई? यह सच्चाई की सबसे बड़ी हत्या है। भारत का चौथा स्तंभ यानी सच्ची पत्रकारिता को पूर्ण रूप से धाराशाई कर दिया गया है। उसे सरकार और उसके मालिकों ने अपना गुलाम और अपना पिछलग्गू बना लिया है इसलिए वह सच्चाई को नहीं दिखा और बता रही है और सच्चाई यह है कि अगर सोशल मीडिया नहीं होता तो बहराइच के दंगों की सच्चाई जनता को पता ही नहीं चलती। वह दंगाइयों, हत्यारों, साम्प्रदायिक अपराधियों और सरकारी निष्क्रियता और मिलीभगत के बारे में जान ही नहीं पाती।
इन सारे घटनाक्रम को देखकर यह पूरी तरह से साफ है कि जैसे यह दंगा नहीं एक बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा है जिसमें जान पूछ कर हिंसा, दंगों, अपराधों, हत्याओं, लूटपाट और आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया गया है ताकि जनता की एकता को तोड़कर उसके बीच सांप्रदायिक नफरत फैलाई जा सके और राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। बहुत साल पहले पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट नेता और मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने कहा था कि सरकार की सहमति और कारिस्तानियों के बिना कोई भी दंगा नहीं हो सकता। इन सारी घटनाओं को देखकर लगता है कि यह दंगा भी सरकार, पुलिस, पीएसी की मिलीभगत और इंटेलिजेंस एजेंसी की असफलता और संवेदनशीलता का परिणाम है जिस कारण सैकड़ो घरों, कारों, दुकानों और मोटरसाइकिलों को आग के हवाले किया गया, करोड़ों करोड़ों का नुकसान हुआ, निर्दोष लोगों के घरों में रखे अनाज तक को जला दिया गया, वहां पर रखे गहनों और कीमती सामान को लूट लिया गया।
विपक्षी दलों ने इन सांप्रदायिक दंगों को सरकारी साजिश बताया है ताकि यूपी में होने जा रहे उपचुनावों में, चुनाव से पहले जनता के अंदर साम्प्रदायिक विभाजन पैदा करके, उसकी एकता तोड़ी जा सके और उसमें हिंदू मुसलमान के नाम पर नफरत फैलाई जा सके और इसका राजनीतिक फायदा उठाया जा सके और अपनी सत्ता को बरकरार रखा जा सके।
अब यह समय की सबसे बड़ी जरूरत है और सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि 1. इन दंगों के शिकार हुए सभी लोगों और पीड़ितों को हुई आर्थिक नुकसान की पूरी भरपाई की जाए, 2. दंगों में मारे गए लोगों को आर्थिक मदद की जाए और 3. इन दंगों में जिन-जिन निर्दोष लोगों के घर, मकान, दुकान, कारें और मोटरसाइकिलें जलाई गई हैं, उनको पूरी आर्थिक सहायता प्रदान की जाए और 4. इन दंगों के जिम्मेदार तमाम दोषी सरकारी अधिकारियों जैसे डीएम, एसएसपी, पीएसी और खुफिया एजेंसियों के तमाम जिम्मेदार अधिकारियों को समुचित सजा दी जाए और उन्हें तुरंत नौकरी से हटाया जाए और 5. इन दंगों के लिए जिम्मेदार तमाम अपराधियों को बिना देरी किए कठोर से कठोर सजा दी जाए और उन्हें जेल की सींकचों के पीछे भेजा जाए।
यहां पर हिंदू और मुसलमान सारी जनता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वे सांप्रदायिक तत्वों के नफरत भरे अभियान का हिस्सा ना बनें, उनसे सावधान रहे और इन दंगों, हिंसा और अपराधों में भाग ना लें, अपनी सामाजिक एकता, शांति और सुरक्षा को बनाए रखें और वे कानून के शासन और संविधान की हिफाजत करें। यहीं पर तमाम राजनीतिक दलों, हिंदू मुस्लिम बुद्धिजीवियों और पत्रकारों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वे इन दंगों की सच्चाई और सरकारी अधिकारियों के निकम्मेपन और असंवेदनशील को जनता के सामने लाएं, ताकि जनता इनसे सीख ले सके और भविष्य में ऐसे तमाम तरह के सांप्रदायिक नफरत के अभियानों और मानसिकता से बच सके और वह साम्प्रदायिक नफ़रत की मुहिम को धाराशाई कर सके। आपसी सद्भाव, एकता और सौहार्द बनाए रखने के लिए यह आज की सबसे बड़ी जरूरत है।