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आधारभूत चिंतन : प्रेम या वासना

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 पुष्पा गुप्ता

     पहले आकर्षित होइए किसी औरत की खूबसूरती से फिर दबे जज़्बातों तले अपने उस प्रेम का इजहार करिए  

औरत अगर किसी कारणवश आपसे रिश्ता न चाहे तो करिए उसे बदनाम,बनाइए उपहास का पात्र।

       नोचिए अपनी बेशर्म आंखों से उसका शरीर या फिर उसे पकड़ कर बंद कर दीजिए किसी काल कोठरी में जहां उत्पीड़न में शोर करती उसकी चीख पुकार दबी की दबी रह जाए या फाड़ ले वो अपना रूंधा गला और फोड़ ले उन चीख पुकारों से अपने कानों की झिल्लियां।

       फिर ज़मीन पर जूता पहने पैर को पीट बढ़ो उसकी ओर फाड़ दो उसके कपड़े और नंगा कर दो उसका बदन फिर एक हाथ उसकी छाती पर उभरे स्तनों पर रख दो और हाथ एक उसकी जांघों के बीच उस विषेश स्थान पर जहां से जन्मता है ऐसा कुपूत।

प्रेम होने का जरिया आखिर छाती के उभार या जांघों का वो हिस्सा ही होता है न?

    शायद किसी महिला की खूबसूरती को मापा ही ऐसे जाता है कि उसके स्तनों का आकार कैसा होना चाहिए, किसी पुरुष के हाथ जितना या उससे थोड़ा बड़ा. उसके नितम्बों को कितना उभार चाहिए.

      क्योंकि अगर कम है तो वो किसी पुरुष को कम उत्तेजित करेंगे या ज्यादा है तो जरूर उसने इसके लिए किसी पुरुष से मदद ली होगी. और उसकी जांघों के बीच का वो हिस्सा अरे साफ शब्दों में कहें तो योनि कैसे आकार की होनी चाहिए जिससे पुरुष एक लंबे समय तक वासना में लिप्त हो सके और शांत कर अपने बदन की आग।

औरतों के साथ ऐसा ही होना चाहिए क्योंकि नहीं है उन्हें कोई हक कि कर सके वो मना किसी के प्रेम को और चुन सकें अपनी मर्जी का प्रेमी या पति।

     हालात यही है आज क्योंकि हम औरत अपने घरों की औरतों को ही समझते हैं बाकियों को अपनी जरूरतों का सामान। लानत है ऐसी खूबसूरत औरतों पर जो इतराती है अपनी खूबसूरती पर क्योंकि उसी खूबसूरती को समझा जाता है पैर की जूती,ऐसी जूती जो बढ़ाती है पैर की शोभा मगर लगना होता है उस पर मल और कीचड़।

      फिर ऐसी खूबसूरत औरतों से प्रेम हो या वासना कुछ मायने नहीं रखता। क्योंकि पुरुष इतना जिद्दी हो चुका है कि उसे किसी औरत की न से कुछ फ़र्क नहीं पड़ता बस उसे अपनी बेबुनियादी जज़्बातों के भरोसे एक औरत के प्रति अपने इस जाहिल प्रेम को जिंदा रखना है।

और हां..आकर्षण ही प्रेम और वासना पैदा करता है!

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