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आधारभूत चिंतन : मूल क्या और कहाँ ?

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ज्योतिषाचार्य पवन कुमार

तस्य क्व मूलं स्यादन्यत्राद्भ्योsद्भि: सोम्य शुङ्गेन तेजो मूलमन्विच्छ तेजसा सोम्य शुङ्गेन सन्मूलमन्विच्छ सनमूला: सोम्येमाः सर्वा:प्रजा सदायतनाः सत्प्रतिष्ठा।
~छन्दोग्य उपनिषद 6/8/6
(मूलरूपमें सबका मूल अन्न और जल है) आरुणि अर्थात उद्दालक अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहते हैं- हे सोम्य अन्न को छोड़कर अन्न के अतिरिक्त इसका (आत्मा का) मूल और कहाँ हो सकता है? इस लिए हे सोम्य तू अन्नरूप शुंग के (शुंग अर्थात शिरा,अग्रभाग) द्वारा जलरूप मूल को खोज। उस शुंग रूप उस सत् के उद्गमरूप मूल को खोज।
जलरूप शुङ्ग के द्वारा तेज को खोज। तेजरूप शुङ्ग के द्वारा “सद् रूप मूल का अनुसन्धान कर।
इस प्रकार हे सोम्य यह सारी प्र+जा (विशेषाविशेष उत्पन्नता) सद्रूप,सत् रूप में सन्मूलक है,सत् मूलक है। सत् ही इसका आश्रय है और सत् ही इसकी प्रतिष्ठा है।

*अब शांकर भाष्य देखें :*

तस्य क्व मूलम्, स्यादन्यत्रान्नादन्नं मूलमित्यभिप्रायः,कथम्?
अन्न को छोड़कर इसका मूल और कहाँ हो सकता है,मतलब अन्न ही इसका मूल है, किन्तु कैसे?

अशितं ह्यन्नमद्भिर्द्रवीकृतं जाठरेणाग्निना पच्यमानं रसभावेन परिणमते।
खाया हुआ अन्न ही जल में घुल कर द्रवरूप में हो जाता है।जठराग्नि द्वारा अन्न को पचा कर अन्न और जल के मूलरूप रस में यह अन्न जल परिणित हो जाता है।

रसाच्छोणितं शोणितान्मांसं मांसान्मेदो मेदसोsस्थीन्यस्थिभ्यो मज़्ज़ा मज्जयाः शुक्रम्।
वह अन्नजल से हुआ रस से रक्त रक्त से मांस मांस से मेद मेद से अस्थि अस्थि से मज़्ज़ा से यही रस पुरुष में वीर्य जिसे शुक्र कहा जाता है।

इसी क्रिया से स्त्री में लोहित(अण्डाणु या डिम्ब) की रचना अन्न और जल के पाचन से बने रस होती है।

जिस प्रकार मिटटी से बने घर को मिटटी से ही लीप पोत कर पुष्ट किया जाता है वैसे ही जब शुक्राणु और अण्डाणु एकीकृत होते हैं तो इसी अन्नजल से पुष्ट होते हुए वृद्धि करते हैं।यह देह अन्न और जल मूलक है।इसी अन्न और जल से देहरूपअंकुर निष्पन्न हुआ।
देह रूप अंकुर में जो चेतनता होती है वह आत्ममूलक है। आत्मा से अन्न और जल,के इस देह में चेतनरूप में आत्मा स्वयं विराजमान होकर इस देह को चैतन्य करता है। आत्मा अपनी ही माया विक्षेप और आवरण शक्ति से समस्त तत्त्व उत्पन्न कर उसी से देह रच कर स्वयं ही उसमे चेतनरूप से विराजमान हो कर जग का सञ्चालन करता है।
इस लिए आत्मा ही सभी का मूल है। उससे भिन्न और कोई मूल नही है।
(चेतना विकास मिशन)

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