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बीबीसी की पड़ताल-चीनी लोन एप्स से लोन लेने वाले डर से कम, शर्म से ज्यादा देते हैं जान

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बसंत कुमार

बेंगलुरू में रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले 22 साल के तेजस ने बीते जुलाई महीने में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. अपने सुसाइट नोट में उसने लिखा, ‘‘मॉम और डैड, मैंने जो कुछ भी किया उसके लिए माफ कर देना. मेरे पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है. मैं अपने नाम पर अन्य ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हूं और यह मेरा अंतिम निर्णय है… अलविदा.’’

तेजस ने यह लोन ‘स्लाइस एंड किस’ नामक एक चीनी एप से लिया था. लोन नहीं चुका पाने के चलते रिकवरी एजेंट उसे लगातार परेशान कर रहे थे. आखिरकार, उसने खुदकुशी कर ली. लेकिन ये कहानी सिर्फ तेजस की नहीं है. 

कई बार तो इनके चंगुल में फंसे लोगों ने अपने परिवार के साथ सामूहिक आत्महत्या तक की. जुलाई महीने में ही भोपाल के रहने वाले पत्नी-पत्नी ने पहले अपने दो बच्चों को जहर देकर मार दिया, उसके बाद खुद भी फांसी लगा ली. इनके सुसाइड नोट में चाइनीज एप के जरिए लोन लेने और उसके बाद वसूली के लिए परेशान किए जाने का जिक्र था.

‘बीबीसी आई’ अपनी पड़ताल ‘द ट्रैप: इंडियाज़ डैडलिएस्ट स्कैम’ में चाइनीज लोन एप की तह तक गया है. 18 महीने की इस लंबी पड़ताल में पत्रकार पूनम अग्रवाल ने चाइनीज लोन एप के जाल में फंसे पीड़ित लोगों से बात की. साथ ही, लोन एप्स के लिए पैसों की उगाही का काम कर रहे कॉल सेंटर और इन एप्स के जरिए कमाया पैसा कैसे भारत से चीन पहुंच रहा है, उस नेटवर्क को भी बखूबी उजागर किया है.

‘डर नहीं शर्म’

बीबीसी ने अपनी इस पड़ताल में चार पीड़ितों और उनके परिजनों से मुलाकात की है. ऐसी ही एक पीड़ित हैं मुंबई की रहने वाली भूमि सिन्हा. उन्होंने एक चाइनीज एप से कुछ पैसे उधार लिए. सात दिन में उन्हें यह चुकाने थे, लेकिन पांचवें दिन ही रिकवरी एजेंट्स ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया गया. गाली और धमकी दी जाने लगी. यह सिलसिला उनकी तस्वीर से छेड़छाड़ तक पहुंच गया. 

छेड़छाड़ कर उनका चेहरा एक महिला की नग्न तस्वीर पर लगा दिया गया. बाद में यह ‘नग्न तस्वीर’ उनके कई जानने वालों को भेजी गई. इसमें परिवार के सदस्यों के अलावा, उनके साथ दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारी भी थे.

भूमि कहती हैं, ‘‘मैं तब दफ्तर में थीं. तभी मेरे एक साथी कमर्चारी को यह ‘नग्न तस्वीर’ मिली. उसे देखने के बाद तो मेरी हालात खराब हो गई. मैंने आत्महत्या करने की सोची लेकिन बेटी का ख्याल आया तो हिम्मत नहीं हुई. वो ‘नग्न तस्वीर’ मेरे फोन की कॉन्टैक्ट लिस्ट में मौजूद कई लोगों को भेजी गई थीं. जो बच्चे कल तक मुझे आंटी कहकर बुलाते थे, वो अब अजीब तरह से देखने लगे थे. मैं पूरी तरह टूट गई थी.’’

कुल मिलाकर बीबीसी की इस पड़ताल में पीड़ितों और उनके परिजनों की बातचीत से पता चलता है कि लोग अपनी ज़िन्दगी डर से कम, शर्म के चलते ज़्यादा खत्म करते हैं.

उगाही करने वाले कॉल सेंटर 

लोन देने वाले एप उगाही के लिए कॉल सेंटर का सहारा लेते हैं. बीबीसी ने अपनी इस पड़ताल में कॉल सेंटर के अंदर की हकीकत को भी बारीकी से दिखाया है. इसके लिए कॉल सेंटर में काम कर चुके एक शख्स को ‘अंडरकवर’ भेजा गया. करीब डेढ़ महीने तक उसने दो कॉल सेंटर्स में काम किया. इस दौरान उनके काम करने के तरीकों को रिकॉर्ड किया. 

पड़ताल में सामने आया कि कॉल सेंटर में काम करने वाले लोग पहले तो प्यार से बात करते हैं. लेकिन ऐसा दो से तीन बार ही होता है. उसके बाद ये लोग गाली-गलौज पर उतर आते हैं. बीबीसी की पड़ताल के मुताबिक, ‘कॉल सेंटर वाले यहां तक कहते हैं कि अगर लोन नहीं चुका सकते तो अपनी बहन को बेच दो. घर बेच दो. जमीन बेच दो.”

बीबीसी का ख़ुफ़िया कैमरा नोएडा के जिस कॉल सेंटर तक पहुंचा था. वहां के मैनेजर विशाल चौरसिया लोन उगाही के लिए किसी भी हद तक जाने का जिक्र करते हैं. 

कॉल सेंटर में काम करने वाली ज़्यादातर महिलाएं हैं. बीबीसी की पत्रकार पूनम भी इस बात पर हैरानी जताती हैं. वे कहती हैं, ‘‘100 में करीब 70 तो महिलाएं हैं. यह मेरे लिए भी हैरानी भरा था.’’

मालूम हो कि चाइनीज लोन एप का कारोबार भारत में कोरोना महामारी के समय बहुत तेजी से बढ़ा. बहुत कम वक्त में ही इनकी पहुंच काफी दूर तक हो गई. इनके शिकार शहरों से लेकर ग्रामीण तबके में रहने वाले बने. 

क्या इन एप्स का कोई लक्षित वर्ग भी है? इस सवाल के जवाब में पूनम कहती हैं, ‘‘लोन तो कोई भी यहां से ले सकता है लेकिन उगाही के तरीके में अंतर है. पहले उगाही के दौरान शहरों में रहने वाले लोगों की तस्वीरों से छेड़छाड़ कर उन पर दवाब बनाया जाता था लेकिन जब आत्महत्या की खबरें आने लगी तो इससे बचने लगे ताकि कार्रवाई के समय कोई सबूत पुलिस को न मिले. अब कॉल भी व्हाट्सएप पर किया जाता है.’’

‘बीबीसी आई’ के लिए यह पड़ताल पत्रकार पूनम अग्रवाल ने अपने सहकर्मियों रॉनी सेन और अंकुर जैन के साथ मिलकर की है. 

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