सात लाख रूपये दीजिये तो
“राधे माँ” (जसबिंदर कौर) आपको गोद में बैठाकर आशीर्वाद देंगी और पन्द्रह लाख रूपये दीजिये तो आप राधे माँ को किसी फाइव स्टार होटल में डिनर के साथ “आशीर्वाद” ले सकते हैं।
“निर्मल बाबा” जो लाल चटनी और पानी पूरी में भगवान की कृपा दे रहा है।
“रामपाल” जो कबीर को पूर्ण परब्रह्म परमात्मा मानते हैं, और अपने नहाए हुए पानी को अपने भक्तों को पिला कर कृतार्थ करता है।
“ब्रह्मकुमारी” वाले हैं जो दादा लेखराज के वचनों को सच्ची गीता बताते हैं और परमात्मा को बिन्दुरुप बताते हैं।
“राम-रहीम” वाले घर पर माता-पिता की सेवा करें ना करें, अपनी बहू-बेटी-पत्नी को डेरे में सेवा करने भेज देते है, (जिसका हाल हम सभी देख चुके है) लेकिन वो अब भी अपने भक्तों का “पापा” (पिता) है।
“राधास्वामी” वाले अपने गुरु को ही मालिक, परमेश्वर, भगवान, ईश्वर मानते हैं, वो साक्षात ईश्वर का अवतार है।
“निरंकारी” है जो खुद भक्तों का उद्धार करने वाला ही करोड़ो की गाड़ी में 350 की स्पीड पर भयंकर दुर्घटना में हत हो जाता है औरों का तो पता नही पर अपना मिलन परमात्मा से करवा लेता है।
कोई विदेशी इसका जिम्मेदार नहीं है.
जिसने अपनी दुकान जितनी भव्य सजायी वो ही उतना बड़ा “परमेश्वर” हो गया।
(बाबा जी को किसी भगवान पर विश्वास नहीं होता, बाबा जी Z+ सिक्योरिटी में बैठकर कहते हैं कि “जीवन-मरण पृकति के हाथ में है”. अंधभक्त श्रद्धा से सुनते तो हैं पर सोचते नहीं हैं।
बाबा जी हवाई जह़ाज में उड़ते हैं।
सोने से लदे होते हैं, दौलत के ढेर पर बैठकर बोलते हैं कि “मोह-माया मिथ्या है, ये सब त्याग दो”।
अंधभक्त श्रद्धा से सुनते हैं पर सोचते नहीं हैं।
भक्तों को लगता है कि उनके सारे मसले बाबा जी हल करते हैं।
लेकिन जब बाबा जी मसलों में फंसते हैं, तब बाबा जी बड़े वकीलों की मदद लेते हैं।
अंधभक्त बाबा जी के लिये दुखी होते हैं लेकिन सोचते नहीं हैं।
भक्त बीमार होते हैं तो डॉक्टर से दवा लेते हैं, लेकिन जब ठीक हो जाते हैं तो कहते हैं कि “बाबा जी ने बचा लिया” पर जब बाबा जी बीमार होते हैं, तो बड़े डॉक्टरों से महंगे अस्पतालों में इलाज़ करवाते हैं।
अंधभक्त उनके ठीक होने की दुआ करते हैं लेकिन सोचते नहीं हैं।
अंधभक्त अपने बाबा को भगवान समझते हैं।
उनके चमत्कारों की सौ-सौ कहानियां सुनाते हैं।
(जब बाबा जी किसी अपराध में जेल जाते हैं, तब वे कोई चमत्कार नहीं दिखाते)
तब अंधभक्त बाबा के लिये लड़ते-मरते हैं, लेकिन वे कुछ सोचते नहीं हैं।
इन्सान आंखों से अंधा हो तो उसकी बाकी ज्ञान इन्द्रियाँ ज़्यादा काम करने लगती हैं, लेकिन अक्ल के अंधों की कोई भी ज्ञान इंद्री काम नहीं करती।
अतः जागृत बनें, तार्किक बनें