Site icon अग्नि आलोक

सियासत हो या धर्म, लड़ाई का मैदान स्त्री देह ही क्यों ?

Share

डा सलमान अरशद 

स्त्री देह पर मर्दों की लड़ाइयां कब तक ! स्त्री देह को नोचने वाले मर्दों को स्त्री द्वारा ही स्वागत और सम्मान, क्या आपको अश्लील लगता है! 

और स्त्री देह को रौंदने के लिए स्त्रियाँ ही मर्दों को प्रोत्साहित करें, आख़िर इस क़दर किसी को बीमार कैसे बना दिया जाता है ! 

स्त्री देह को रौंदने वालों को राष्ट्रीय हीरो बनाकर उनके सम्मान में तिरंगा लहराना और इस जुलूस में स्त्रियों का भी शामिल होना, क्या सहज ही हो गया है! 

भारतीय समाज के मनोविज्ञान पर बहुत शोध की ज़रूरत है। 

असल मक़सद देश की संम्पदा का दोहन इस तरह करना है कि कुछ अमीरों को और अमीर बनाया जा सके, लेकिन इसे अंजाम देने के लिए ज़रूरी है कि लोगों को इस क़दर विकृत कर दिया जाये कि उन्हें ये लूट दिखाई न दे, क्योंकि कुछ अमीरों को और अमीर बनाने के लिए बहुत से ग़रीबों को और ग़रीब बनाना पड़ता है। 

आप हैरान हैं कि महिलाओं को ……कैसे कर दिया गया, जबकि समस्या इससे भी कहीं ज़्यादा गहरी और विकृत है। 

जो लोग उस इलाके के पहाड़ों पर रह रहे हैं, उन्हें वहाँ से उजाड़ना ज़रूरी है वरना वहां का कीमती खनिज कैसे निकलेगा! 

देश और दुनिया में खनिज वाले इलाकों से आम लोगों को उजाड़ना मुनाफ़ाखोरों के हित में आम प्रैक्टिस है। 

तो मैदान में रहने वाले एक समुदाय को मिलिटेंट बना दिया गया, उन्हें हथियार दे दिए गये, मारकाट की छूट दे दी गई। दो महीने से भी ज़्यादा पहाड़ में रहने वालों को उजाड़ा जाता रहा और अंत में दो औरतों पर जुल्म का वीडियो वायरल करवा दिया गया। 

अब संसद हो या सड़क, बहस इन महिलाओं पर होगी, बाक़ी के मुद्दे शायद चर्चा में लौटे ही न। 

महिलाओं के साथ ऐसी अमानवीयता अलग अलग वजहों से अलग अलग इलाकों में होती रहती हैं, इस तरह इस मुद्दे को आम समस्या बनाकर आपकी नजर में बेहद छोटा कर दिया जायेगा। 

मैं हमेशा ही अपने लेखों में दो बातों पर ज़ोर देता हूँ, एक असल समस्या आर्थिक है, हमें आर्थिक पहलू पर ज़्यादा से ज़्यादा लिखना बोलना चाहिए, दूसरा, सत्ताधारी दल की ताक़त एक धार्मिक समुदाय के विरुद्ध घृणा अभियान में लोगों का शामिल होना है, इसका पर्दाफ़ाश होना चाहिए। 

लेकिन ये अभियान इतना आक्रामक है कि लोग तेज़ी से इसके शिकार होते जा रहे हैं जिसकी वजह से आर्थिक मोर्चे पर अमीरों हक में जारी लूट बहस का मुद्दा नहीं बनता। 

जिस घटना ने सभी को हिलाकर रख दिया है, उसी तक ख़ुद को सीमित न करें, इसे दो धार्मिक समुदायों के बीच का झगड़ा भी न मानें, बल्कि ये देखें कि वो कौन सी लूट है जिसके लिए एक राज्य को दो सैनिक खेमों में बांट दिया गया ! 

सोचिएगा ?

Exit mobile version