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महिला केंद्रित फिल्मों में बेहतर को-स्टार्स के लिए जूझना पड़ा रहा है हीरोइनों को

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अब हीरोइनों को महिला केंद्रित फिल्मों में बेहतर को-स्टार्स के लिए जूझना पड़ा रहा है​। कोई भी बड़ा स्टार वो फिल्में नहीं करना चाहता, जिनमें हीरोइनें दमदार लीड रोल में हैं​। तापसी ने कहा कि एक्टर्स या तो असुरक्षित हैं या लगता है कि स्टार पावर कम हो जाएगा। एक रिपोर्ट:

सशक्त महिला किरदारों के लिए मशहूर एक्ट्रेस तापसी पन्नू के अनुसार, नायिका प्रधान होने के कारण नामी हीरो उनकी फिल्में करने से कतराते हैं। देखा जाए तो तापसी बिल्कुल सही हैं। बॉलीवुड के ज्यादातर हीरो महिला केंद्रित फिल्मों से दूर ही दिखते हैं। हालांकि, हाल ही में आई जाह्नवी कपूर की फिल्म ‘उलझ’ में गुलशन देवैया और रोशन मैथ्यू साथ खड़े नजर आए तो शरवरी वाघ स्टारर ‘वेदा’ में जॉन अब्राहम खुद को उनका सारथी कहते दिखे। ऐसे में, क्या मेल एक्टर्स की सोच इस मामले में बदल रही है? एक रिपोर्ट:मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान की ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ में चार सीन और दो गाने करतीं कटरीना कैफ हों या फिर सलमान खान की ‘बजरंगी भाईजान’ में चंद सीन में दिखतीं करीना कपूर खान, बॉलीवुड की हीरो सेंट्रिक फिल्मों में एक्ट्रेसेस अकसर साथी या सहयोगी की भूमिका में नजर आती रही हैं। मगर अब जरा ये रोल रिवर्स यानी हीरो ही जगह हीरोइन सेंट्रिक फिल्म करके देखिए, क्या दीपिका पादुकोण, करीना कपूर, आलिया भट्ट या तापसी पन्नू की मुख्य भूमिकाओं वाली फिल्मों में आप शाहरुख, आमिर, सलमान छोड़िए, रणबीर कपूर, रणवीर सिंह, ऋतिक रोशन या वरुण धवन जैसे सितारों की कल्पना भी कर सकते हैं? नहीं ना, क्योंकि नायक प्रधान बॉलीवुड के ज्यादातर हीरो नायिका का साथी या सारथी बनने में अपनी तौहीन समझते हैं। इसीलिए, फीमेल सेंट्रिक फिल्मों में A लिस्टर हीरो ना के बराबर दिखते हैं।

बॉलीवुड में एक अरसे से एक्ट्रेसेस पुरुष प्रधान फिल्मों का हिस्सा बनती रही हैं, फिर उनमें उनका रोल हीरो की गर्लफ्रेंड या सिर्फ ग्लैमर जोड़ने भर का क्यों ना रहा है। खास बात यह है कि ज्यादातर एक्ट्रेसेस उसमें भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही हैं। जबकि, वक्त बदलने के साथ अब जब नायिका प्रधान फिल्में भी काफी संख्या में बन रही हैं, हीरोज उनका हिस्सा बनने का साहस नहीं दिखा पाते। मसलन, रणवीर सिंह की ‘गली बॉय’ में गर्लफ्रेंड सकीना के रोल में आलिया भट्ट दिख जाएंगी, लेकिन आलिया की ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ या ‘जिगरा’ में शांतनु माहेश्वरी या वेदांग रैना जैसे नए चेहरे ही नजर आते हैं। अक्षय कुमार की ‘बेल बॉटम’ या ‘जॉली एलएलबी 2’ में हुमा कुरैशी आपको दिखेंगी, पर जब वह ‘तरला’ बनती हैं, तो उनके पार्टनर के तौर पर शारिब हाशमी साथ खड़े दिखते हैं। ‘मुल्क’ से लेकर ‘थप्पड़’, ‘रश्मि रॉकेट’, ‘शाबाश मिथु’, ‘हसीन दिलरुबा’ तक अपनी हर फिल्म में दमदार भूमिकाएं निभाने वाली तापसी पन्नू ने कई मौकों पर यह खुलासा किया है कि उन्हें हर फिल्म में अच्छे मेल को-स्टार के लिए संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि उनकी फिल्मों में महिला किरदार ज्यादा सशक्त होता है। बकौल तापसी, ‘हर बार जब मैं प्रोड्यूसर्स के साथ अपनी फिल्मों के लिए चुने गए टॉप पांच मेल एक्टर्स के नामों पर चर्चा करती हूं तो वो एक्टर्स वो होते हैं जिन्होंने सिर्फ एक या दो फिल्में की हैं और वो भी भूमिका नहीं चाहते हैं। कई मेल एक्टर्स ने ये बात खुद मुझसे कही है कि हम वो फिल्में नहीं कर सकते, जिनमें महिला किरदार बहुत स्ट्रॉन्ग हो।’

कई मेल एक्टर्स ने ये बात खुद मुझसे कही है कि हम वो फिल्में नहीं कर सकते, जिनमें महिला किरदार बहुत स्ट्रॉन्ग हो।’

तापसी पन्नू

मेल एक्टर्स में होती है असुरक्षा

तापसी के मुताबिक, ‘ये स्टार अपने अभिनय को लेकर असुरक्षित हैं या उन्हें लगता है कि महिला प्रधान फिल्मों का छोटा हिस्सा बनने से उनका स्टार पावर कम हो जाएगा।’ तापसी के होम प्रॉडक्शन की पहली फिल्म ‘ब्लर’ और हाल ही जाह्नवी कपूर की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘उलझ’ में नजर आए एक्टर गुलशन देवैया भी एक हद तक ऐसी असुरक्षा पर सहमति जताते हैं। इस बारे में गुलशन कहते हैं, ‘ऐसी इनसिक्योरिटीज होती हैं। पहले मेरे अंदर भी इस चीज को लेकर असुरक्षा की भावना थी। एक वक्त पर मुझे भी इन चीजों से फर्क पड़ता था कि पता नहीं करना चाहिए या नहीं, लेकिन मैंने तय किया कि मुझे इन इनसिक्योरिटीज से बाहर निकलना है। अब मैं वही काम करता हूं जो मुझे इंट्रेस्टिंग लगता है। अब मैं ये सब नहीं सोचता कि मेरे साथ कौन सीन में है, मुझे सीन में चमकने का मौका मिलेगा या नहीं। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हीरो कौन है? मुझे फिल्म पसंद आ रही है तो मैं वो करूंगा।’

सोच में आ रहा बदलाव!

शरवरी वाघ की अपकमिंग फिल्म ‘वेदा’ में वह टाइटल रोल में हैं, जबकि उनके मेंटॉर बने जॉन अब्राहम एक सीन में कहते हैं- मैं सिर्फ सारथी हूं! हालांकि, फिल्म में जॉन की भूमिका भी काफी अहम और दमदार लग रही है। लेकिन अगर आने वाले दिनों में हमारे हीरो भी हीरोइनों को बराबर मानकर उनके साथी या सारथी बनने लगें तो यह बदलाव वाकई सुखद होगा। ‘डार्लिंग्स’ और ‘उलझ’ जैसी हिंदी फिल्मों में नजर आए साउथ फिल्मों के चर्चित एक्टर रोशन मैथ्यू कहते हैं, ‘मैं हिंदी में तीन फिल्में ‘चोक्ड’, ‘डार्लिंग्स’ और ‘उलझ’ की हैं और ये तीनों ही फीमेल सेंट्रिक है। ये फिल्में साइन करते वक्त मैंने इस बात पर गौर तक नहीं किया। शायद मैं थिएटर के बैकग्राउंड से हूं, इसलिए ये चीजें मेरे दिमाग में नहीं आतीं।’

वहीं, अपनी फिल्म ‘हसीन दिलरुबा’ का सीक्वल ‘फिर आई हसीन दिलरुबा’ लेकर आ रहीं राइटर-को प्रोड्यूसर कनिका ढिल्लन कहती हैं, ‘मेरा मानना है कि आप जिस एक्टर्स के पास कहानी लेकर जाएंगे, उसे जस्टिफाई करना पड़ेगा कि वह रोल उसके लायक है। जैसे, ‘मनमर्जियां’ में तापसी के साथ अभिषेक बच्चन और विक्की कौशल दोनों हैं और उसमें तीनों की कहानी अहम है, लेकिन ‘रश्मि रॉकेट’ में मेन किरदार लड़की का ही है। ऐसे में, अगर मेल एक्टर को लगे कि उसके लिए कुछ करने को ही नहीं है तो वह जायज है। कोई फीमेल आर्टिस्ट भी यही सोचेगी कि मेरे लिए कुछ है या नहीं, जो वाजिब बात है।’

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