राम अयोध्या सिंह
आज की तारीख में जब एक अदना-सा राजनीतिक छोटभैया भी बोलेरो से नीचे की गाड़ी से चलना अपनी तौहीन समझता है, राहुल गांधी का कन्याकुमारी से कश्मीर तक की तीन हजार किलोमीटर से अधिक की पैदल यात्रा करने का संकल्प भारतीय राजनीति में ताजे बयार के झोंके के समान है. उनके इस पैदल यात्रा का परिणाम क्या होगा, इसका आकलन या अटकलबाज़ी करना निहायत ही अप्रासंगिक और बेतुका है. आजादी के बाद से कांग्रेस के किसी भी नेता के लिए ऐसा करने का यह पहला उदाहरण है.
आज जब कांग्रेस अपने अंतर्विरोधों, नेताओं के स्वार्थ और परजीवितावादी प्रवृतियों, आमजन से कांग्रेस कार्यकर्ताओं की दूरी, आपसी तालमेल का अभाव और आरामदेह जिंदगी जीने की चाहत ने उसे भारतीय राजनीति का सबसे अवांछनीय पार्टी बना दिया है. यह बात दीगर है कि संगठन के मामले में कांग्रेस आज भी ऐसी अकेली पार्टी है, जो अखिल भारतीय स्तर पर जानी जाती है और जिसको जानने वाले देश के कोने-कोने में हैं. यह बात दूसरी है कि उनकी संख्या लगातार घटती जा रही है.
गांधी, विनोबा भावे और चन्द्रशेखर के बाद राहुल गांधी ही वैसे व्यक्ति हैं, जो कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पैदल यात्रा पर निकल पड़े हैं. उनका मिशन है – भारत जोड़ो अभियान. इतनी लंबी दूरी में सैकड़ों पड़ावों के बीच उनकी दिनचर्या का सबसे साकारात्मक पहलू यह है कि वे इस क्रम में लाखों लोगों के साथ रुबरु होंगे, उनके साथ बातें करेंगे और अपनी गलतियों और खामियों की पहचान करेंगे. जनता की नब्ज पहचानने का यह सबसे सुगम और सबसे विश्वसनीय तरीका है. आमने-सामने का वार्तालाप झूठ बोलने की गुंजाइश को खत्म कर देता है.
जनसंवाद वह माध्यम है जो लोकतंत्र की प्राणवायु है, जिसके माध्यम से कांग्रेस अपनी खोई ऊर्जा और विश्वास प्राप्त कर सकती है. आज कांग्रेस को इसी ऊर्जा और विश्वास की सबसे ज्यादा जरूरत है. जिस व्यक्ति, संस्था या संगठन की ऊर्जा समाप्त होने को हो और आत्मविश्वास डिगा हो, उसके लिए यह पैदल यात्रा जीवन का संचार करने वाला होगा. इस यात्रा से अपने दल के लोगों की वास्तविक मनोवृत्तियों और मनोभावों तथा उनकी कारगुजारियों से भी अवगत होने का अवसर मिलेगा.
यह पैदल यात्रा कांग्रेस में नवजीवन का संचार करने के साथ ही उसमें नई परिस्थितियों के अनुरूप नई ऊर्जा और नए जज्बे भी पैदा होंगे. जिस संकल्प के साथ राहुल गांधी इस पैदल यात्रा के लिए निकले हैं, उसी संकल्प और तेवर के साथ आगे भी अपनी गतिविधियों को राष्ट्रीय फलक पर विस्तारित करेंगे तो यह संभव है कि कांग्रेस अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनर्प्राप्त कर सके और भारतीय राजनीति को भी एक नई दिशा दे सके.
यह सही है कि जिस दिन कांग्रेस अपना खोया विश्वास प्राप्त कर अपने को आम भारतीय से जोड़ने में सफल हो जाएगी, उसी दिन कांग्रेस के कलेवर भी बदल जाएंगे और भारतीय राजनीति एक नया करवट भी लेगा. पूरे भारतीय राजनीति आज लकवाग्रस्त है, पंगु है और दिग्भ्रमित है. अगर राहुल गांधी भारतीय राजनीति में व्याप्त सारे संशयों, संदेहों, जड़ता और हीनता बोध को दूर करने में सफल हो जाएंगे, उसी दिन से भारतीय राजनीति पर मंडराता फासीवाद का यह खतरा भी ओझल होना शुरू हो जाएगा.