सनत जैन
लोकसभा चुनाव के कुछ माह पहले सरकार ने पांच लोगों को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया है। सरकार ने कर्पूरी ठाकुर, लालकृष्ण आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, नरसिंह राव और एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न की उपाधि से विभूषित करने का निर्णय लिया है। सरकार के इस निर्णय का सभी वर्गों ने स्वागत किया है। उसके बाद भी भारत रत्न जैसी उपाधि को विवादित बनाने और चुनाव में लाभ लेने की दृष्टि से सत्तारूड़ पार्टी द्वारा किया जा रहा है। उसके बाद समझा जा सकता है, चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए जो भारत रत्न दिए गए हैं। भारतीय जनता पार्टी को लाभ पहुंचाने वाले होंगे या नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।
कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने सत्ता में आने के बाद भी जिस सादगी के साथ जीवन जिया, कमजोर वर्गों को आरक्षण देने का काम किया। ऐसे सीधे सरल और समाजसेवी कर्पूरी ठाकुर को 23 जनवरी, चुनाव के कुछ माह पहले भारत रत्न की उपाधि देकर बिहार और देश के मतदाताओं को साधने का प्रयास किया गया। पूर्व उपमुख्यमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को 3 फरवरी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में ऊपेक्षित किए जाने से लालकृष्ण आडवाणी नाराज थे।
राम भक्तों के बीच वह एक लोकप्रिय चेहरा थे। लालकृष्ण आडवाणी और उनके समर्थकों की नाराजी को दूर करने के लिए उन्हें भारत रत्न की उपाधि से नवाजा गया। 9 फरवरी को पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह जी को भारत रत्न देकर उनके पोते को एनडीए में लाने और किसानों के गुस्से को कम करने के लिए चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव को भी भारत रत्न की उपाधि देने के पीछे यह माना जा रहा है, कि आंध्र प्रदेश और दक्षिण की राजनीति मैं भाजपा पेठ बढ़ाने के लिए यह सम्मान दिया गया। स्वामीनाथन की लोकप्रियता, किसानों के बीच चरम पर है। किसानों को साधने के लिए उन्हें भी भारत रत्न की उपाधि देकर सम्मानित किया गया है। इन सम्मानों का किसी ने विरोध नहीं किया। इसके बाद भी राजनीतिकरण भी हो गया। भारत रत्न की उपाधि को लोकसभा 2024 के चुनाव के साथ जोड़ा जा रहा है। एमएस स्वामीनाथन को पहले भी तीन सर्वोच्च पुरस्कार मिल चुके हैं।
भारत रत्न के रूप में यह उनका चौथा सम्मान है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी हस्तियों को सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने की फैसले का स्वागत कर, कांग्रेस की स्थिति स्पष्ट कर दी। इस सम्मान को लेकर सरकार द्वारा जिस तरह से लोकसभा और राज्यसभा में विवादित मुद्दा बनाया है। ऊसका एक ही उद्देश्य हो सकता है, 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाया जा सके। भारतीय जनता पार्टी का यह सोचना आग़ में घी डालने के समान है। चौधरी चरण सिंह किसानों के नेता थे।
कृषि के जो तीन कानून बनाए गए थे। उसको लेकर किसानों का एक बड़ा आंदोलन कई महीने तक चला। उसमें सैकड़ो किसानो की मौत हुई। जगह-जगह लाठी चार्ज हुए। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे द्वारा किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी गई थी। जब तीन कानून खत्म किए गए, और किसानों से जो वायदे किए गए थे। उन वायदों को सरकार ने अभी तक पूरा नहीं किया। भारत रत्न की उपाधि से चरण सिंह को सम्मानित किए जाने से, क्या किसानो की नाराजी सरकार से खत्म हो जाएगी। किसानों से किए गए सरकार के वादे पूरे हो जाएंगे? स्वामीनाथन कमेटी की एमएसपी को लेकर जो रिपोर्ट थी। उसमें किसानों को लागत मूल्य के ऊपर 50 फ़ीसदी लाभ दिए जाने की अनुशसा को पूरा करने की मांग किसानों द्वारा की जा रही है। उस संबंध में सरकार द्वारा अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री को मंत्री मंडल से नहीं हटाया गया। आज भी किसान अपनी मांग को लेकर आंदोलनरत है। ऐसी स्थिति में सरकार ने भारत रत्न की उपाधि से चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन को सम्मानित कर एक तरह से किसानों के घाव को कुरेद दिया है।
2024 के लोकसभा चुनाव में यदि भारतीय जनता पार्टी यह सोच रही है, कि भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करने के बाद जनता उनके पक्ष में मतदान करेगी, तो यह दांव उल्टा भी पढ़ सकता है। इसी तरीके से दलित, ओबीसी और पिछड़ी जाति के लोग आरक्षण के प्रतीक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न का सम्मान देने के बाद, सरकार से अपेक्षा रखते हैं, कि जिस तरह से कर्पूरी ठाकुर ने निर्णय लिए थे। उसी तरह के निर्णय इस सरकार को भी लेना चाहिए थे। जो पिछले 10 सालों के कार्यकाल में नहीं लिए गए हैं। दक्षिण के राज्यों में भी पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव को सम्मानित किए जाने के बाद भाजपा की लोकप्रियता बढ़ेगी, इसमें संदेह है। हां भारत रत्न से सम्मानित कर मतदाताओं की आस को, सरकार ने और बढ़ा दिया है। किसानों और कमजोर वर्गों के बीच में एक बार फिर चरण सिंह, एमएस स्वामीनाथन और कर्पूरी ठाकुर की यादों को ताजा कर दिया है।
मतदाता उसी तरह की अपेक्षा सरकार से करता है। चरण सिंह के पोते को एनडीए गठबंधन में कर एक तरह से भारतीय जनता पार्टी ने भारत रत्न की उपाधि का राजनीतिकरण किया है। किसानो को भाजपा के पक्ष में प्रभावित करने की जो कोशिश की गई है। किसान आंदोलन के समय किसानों पर जो उत्पीड़न किया गया है उसको शायद ही भूल पाए इसलिए यह कहा जा रहा है कि भारत रत्न की जो राजनीति केंद्र सरकार ने शुरू की है। उसमें मलहम कम और नमक ज्यादा है। यह मलहम आम मतदाताओं के जख्म को राहत देने की स्थान पर उनके कष्ट को बढ़ाने वाली साबित हो सकती हैं। लोकसभा चुनाव के परिणाम ही बता पाएंगे कि भारत रत्न की उपाधि देकर भाजपा को इसका लाभ हुआ है, या हानि हुई है। सर्वोच्च पुरूष्कार भारत रत्न का जो सम्मान था। राजनीति के कारण वह विवादों में आ जाने से उसका सम्मान कम हुआ है।