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*बीएचयू रेप-कांड : बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ किसके लिए?*

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      प्रस्तुति : आरती शर्मा

     दो माह पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बन्दूक की नोक पर एक छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला सामने आया था। आरोपियों द्वारा पीड़िता की वीडियो भी बनायी गयी थी और इसके दोस्त को पीटा गया था।

घटना के एक सप्ताह बाद ही इनकी पहचान होने पर भी इस मामले में किसी को “पकड़ा” नहीं जा सका और तीन आरोपियों को फ़रार बताया जा रहा था। अब घटना के दो महीने बाद उत्तरप्रदेश की “क़ाबिल” पुलिस ने तीनों को “गिरफ़्त” में ले लिया है। पहले दिन से ही अन्देशा जताया जा रहा था कि हो न हो गुनहगार “विशेष संस्कारी पार्टी” से सम्बन्धित होंगे! जैसे ही पटाक्षेप हुआ तो तीनों ही भाजपा के “सुसंस्कृत, संस्कारी और चरित्रवान” कार्यकर्ता निकले! कुणाल पाण्डेय, सक्षम पटेल व अभिषेक चौहान नामक ये जीव भाजपा के पदाधिकारी हैं और साम्प्रदायिक नफ़रत व ज़हर फैलाने की बीजेपी आईटी सेल नामक इनकी गोयबल्सीय मशीनरी की वाराणसी इकाई को संचालित करते थे।

     अब स्मृति ईरानी का नाक फड़क गुस्सा भी शान्त है, “बेटी बचाओ” का जुमला उछालने वाले मोदी जी भी सुन्न हैं और भाजपाई आईटी सेल में भी मरघटी सन्नाटा पसरा हुआ है।

       इस मामले में संलिप्त तीनों आरोपियों पर भाजपा के बड़े नेताओं का हाथ था। जेपी नड्डा, स्मृति ईरानी, योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी तक के साथ बत्तीसी दिखाते हुए इनके फ़ोटो मौजूद हैं। शायद यही कारण हो कि पुलिस को इन्हें “काबू” करने में दो महीने लग गये!

     उल्टा इस मामले में न्याय की माँग कर रहे बीएचयू के छात्रों के साथ पुलिस की शह पर संघी लम्पटों द्वारा मारपीट की गयी थी। यही नहीं प्रदर्शनकारी छात्रों पर ही मुक़दमें दर्ज कर लिये गये थे जबकि अपराधी दो महीने जुगाड़ लगाते फिरते रहे। इस बीच ‘ऑन द स्पॉट’ “इन्साफ़” करने में कुख्यात यूपी पुलिस की बन्दूकें ठण्डी पड़ी रही और योगी जी का न्याय देवता बुलडोज़र भी जंग खाये खड़ा रहा! ज़ाहिर तौर पर हम “न्याय” के इस तालिबानी संस्करण के कत्तई हिमायती नहीं हैं।

      ऐसी घटनाएँ यही साफ़ करती हैं कि आमतौर पर इस “न्याय प्रणाली” का शिकार ग़रीब, दलित और मुस्लिम ही बनते हैं। इस घटना में भी यही दिखता है।

    इस मामले में जल्द से जल्द कार्रवाई करते हुए अपराधियों को सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाये। इस मसले को लेके आन्दोलन करने वाले छात्रों के ऊपर से सभी मामले हटाये जायें। इसके साथ ही हम पीड़िता और उसके साथी युवक की सुरक्षा की भी माँग करते हैं।

    आसाराम, चिन्मयानन्द, कुलदीप सेंगर और बृजभूषण के ये चेले और इनके आक़ा पीड़िता को नुकसान पहुँचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। 

   चरित्र और संस्कार का चौबीसों घण्टे जाप करने वाले संघी-भाजपाई ही चारित्रिक पतनशीलता में इस कदर गिरे हुए क्यों पाये जाते हैं ?!

    इनके चरित्र में उतनी ही सच्चाई होती जितनी सावरकर के चरित्र में वीरता थी। इनके संस्कारों और शुचिता का भरोसा कोई मूर्ख ही कर सकता है। असल में इनके द्वारा संस्कारों का ढोल चरित्र और आत्मा पर पड़े बदनुमा दागों को छिपाने के लिए ही बजाया जाता है।

     हर प्रकार के फ़ासीवादियों का बस एक ही काम होता है और वह होता है जनता को शुचिता और संस्कार का पाठ पढ़ाते हुए उसे फ़र्ज़ी मुद्दों के आधार पर बाँट का आपस में लड़ाना और अपने पूँजीपति आकाओं की तहे दिल से सेवा करना। फ़ासीवादियों के नारों-जुमलों और असल हकीक़त में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ होता है।

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