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विधानसभा चुनाव:सियासी घमासान में बड़े मुद्दे, वादे गायब, छोटों की भरमार

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यूपी में जन समर्थन जुटाने सिलेंडर, पेट्रोल और सीएनजी का दांव खेल रहीं राजनीतिक पार्टियां

विजया पाठक,

एडिटर, जगत विजन*
उत्तरप्रदेश सहित अन्य चार राज्यों पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनावों को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। लेकिन पूरे देश की निगाहें उत्तरप्रदेश और पंजाब के चुनावों पर टिकी हुई हैं। आलम यह है कि टेलीविजन से लेकर सोशल मीडिया सहित अखबारों तक में इन्हीं दोनों राज्यों के चुनावों की चर्चाएं हो रही हैं। उत्तरप्रदेश में मुख्य प्रतिद्धंदी पार्टी भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा पार्टियों के बीच आपसी घमासान का दौर जारी है। कोई भी पार्टी को खुदकर कमतर नहीं आंक रही हैं। कुल मिलाकर राजनीतिक पार्टियों का पूरा ध्यान खुद के कार्य करने के जूझारूपन पर नहीं बल्कि लोक लुभावने वादों पर दिखाई दे रहा है। उत्तकरप्रदेश सहित चार राज्यों। में राजनैतिक पार्टियों ने अपना-अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है। इन घोषणा पत्रों में कई बातें हैं जो गौर करने लायक हैं। जैसे- घोषणा पत्रों में इस बार बडे मुददे और वादें गायब हैं जबकि छोटों की भरमार है। मंहगाई, बेरोजगारी जैसे गंभीर बातों पर तो किसी भी पार्टी का फोकस नहीं है। जबकि सब जानते हैं कि इन दोनों मुददों से ही जनता परेशान है।
किसी भी राज्य में विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टी वहां की जनता के हित और राज्य के विकास से जुड़े कार्यों को पूरा करने के वायदों के साथ मैदान में उतरती हैं। लेकिन उत्तरप्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टियों के बीच ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। किसी भी राजनीतिक पार्टी ने अब तक राज्य के विकास, सुरक्षा, शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, व्यापार, मंहगाई, स्व-रोजगार जैसे मुख्य विषयों पर बात करना तक उचित नहीं समझा है। आलम यह है कि राजनीतिक पार्टियों और नेताओँ के बीच इस तरह के शब्द पूरी तरह से गायब हैं। उसके बाद भी यह नेता जनता से अपेक्षा कर बैठे हैं कि वो इन्हें वोट देकर सत्ता पर काबिज होने में अहम भूमिका निभाऐंगे।
यूं तो पार्टियां चुनाव में लंबे-चौड़े वादे करती ही हैं। कोई बिजली का वादा करता है तो कोई नौकरियों का, कोई सड़कें बनवाने का तो कोई महिलाओं के लिए योजना लाने का। वादे पूरे हो न हो लेकिन घोषणाएं तो होती हैं। उत्तरप्रदेश के चुनाव प्रचार-प्रसार में राजनीतिक पार्टी की तरफ से जनता के पक्ष में कई तरह के लोक लुभावने वायदे किये जा रहे हैं। भाजपा ने तो यहां तक कह दिया है कि यदि उत्तरप्रदेश में उसकी सरकार बनती है तो पूरे राज्य के लोगों को वर्ष में दो सिलेंडर मुफ्त दिये जाएंगे। बीजेपी के मेनिफेस्टो के मुताबिक पार्टी ने पीएम उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को होली और दिवाली के मौके पर दो मुफ्त सिलेंडर देने का ऐलान किया है। इसके उलट समाजवादी पार्टी ने ऐलान किया है कि टू-व्हीलर वालों को एक लीटर और ऑटो रिक्शा चालकों को 03 लीटर पेट्रोल और 06 किलो सीएनजी फ्री में दी जाएगी। राजनीतिक पार्टियों के लोक लुभावने वायदे को देखकर यह साफ कहा जा सकता है कि राजनेता उत्तरप्रदेश की गद्दी पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। उन्हें जनता और राज्य की चिंता नहीं सिर्फ चिंता है तो अपनी गद्दी बचाने और गद्दी हथियाने की।
राज्य और जनता के बारे में भी सोचें पार्टियां
देखा जाए तो किसी भी राज्य के चुनावों में सबसे अहम किरदार उस राज्य की जनता का होता है। राज्य की जनता ही अपने राजनेता को वोट के माध्यम से चुनकर सत्ता पर काबिज करती है। लेकिन राजनीतिक पार्टियों का यह प्राथमिक कर्तव्य होता है कि वो जनता के हितों को ध्यान में रखकर कार्य करें, योजनाएं बनाएं और उन पर क्रियान्वयन करें। इससे न सिर्फ राज्य का बल्कि वहां रहने वाली जनता का भला तो होगा ही, साथ ही राजनेताओं के प्रति जनता का विश्वास और मजबूत होगा। क्योंकि अभी तक पूरे राज्य में आलम यह है कि राजनेता वोट तो मांग रहे हैं लेकिन उनकी इस मांग के पीछे जनता से जुड़े लाभ और उनके हित तो दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे हैं। इसलिए बेहतर है राजनेता राज्य और राज्य की जनता के बारे में जरूर सोचें।

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