,मुनेश त्यागी
वैसे तो हम बहुत पहले से ही देखते और सुनते चले आ रहे थे कि हिंदुत्वादी और मनुवादी भारत के संविधान बनने और लागू किये जाने से खुश नहीं थे। आजादी के आंदोलन में भी इन लोगों ने भाग नहीं लिया था और ये लोग अंग्रेजों के साथ मिलकर जनता की एकता तोड़ रहे थे और आजादी के आंदोलन को कमजोर कर रहे थे।
उस समय तो ये अपनी इस साजिश में कामयाब नहीं हो पाए और भारत की आजादी के बाद स्वतंत्रता संग्राम की विरासत से जो भारतीय संविधान बनाया गया और लागू किया गया था उसे भी इन तमाम अन्यायी और शोषक ताकतों ने पसंद नहीं किया था और संविधान का विरोध किया था। इन तमाम जनविरोधी ताकतों का तब भी यह कहना था कि हमारे देश में तो पहले से ही मनुस्मृति है, इसलिए यहां किसी संविधान की जरूरत नहीं है, मगर स्वतंत्रता आंदोलन के स्वतंत्रता सेनानियों ने इनकी बात नहीं मानी और भारत में एक बढ़िया संविधान लागू किया।
उसके बाद इस देश के अधिकांश गरीबों, एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को संविधान द्वारा उपलब्ध कराए गए अधिकारों को दिया गया, मोहिया कराया गया और इसी संविधान की बदौलत हमारे देश के एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को पढ़ने लिखने का अधिकार मिला, उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई और एससी, एसटी ओबीसी के लोगों को रोजगार दिए गए, सरकारी नौकरियां दी गईं। इसके बाद यह संविधान लागू रहा, मगर इन सांप्रदायिक, हिंदुत्ववादी और मनुवादी ताकतों ने सबको शिक्षा, सबको काम और आरक्षण के प्रावधानों को कभी भी पसंद नहीं किया।
आज हम देखते हैं कि अगर संविधान द्वारा मुफ्त शिक्षा और आरक्षण का प्रावधान लागू नहीं किया जाता तो इन एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को कभी ना तो कोई शिक्षा मिलती और ना रोजगार मिलता। अगर आरक्षण का प्रावधान लागू न होता तो इनमें से कोई आदमी चपरासी भी नहीं बन सकता था, वकील जज सांसद विधायक मंत्री मुख्यमंत्री राष्ट्रपति बनने की तो बात ही छोड़ दीजिए।
अपने जीवन में हम देखते रहे कि ये जनविरोधी ताकतें एससी, एसटी और ओबीसी को शिक्षा और रोजगार देने के प्रावधानों से कभी भी खुश नहीं रही।इन्होंने आरक्षण विरोधी अपनी मुहिम हमेशा ही जारी रखी। अभी पिछले दिनों 15 अगस्त और 26 जनवरी के मौके पर, इन सांप्रदायिक, हिंदुत्ववादी और मनुवादी ताकतों के लोगों के मुख से फिर से सुनने को मिला कि भारत में इस संविधान को खत्म करके मनुस्मृति लागू की जाएगी।
तब हमारे देश की गरीब जनता और एससी, एसटी और ओबीसी के नेताओं ने इस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया। अब एक बार फिर से यह बात पूरे देश में जग जाहिर हो गई है कि इनके लोग कह रहे हैं कि 2024 के चुनाव में “400 के पार” का नारा इसलिए लगाया जा रहा है कि 400 सांसद आने के बाद भारत के संविधान का खात्मा कर दिया जाएगा। यहीं पर हमने देखा कि इस घोषणा के बावजूद भी एससी, एसटी और ओबीसी के बड़े नेताओं द्वारा इस संविधान विरोधी आह्वान का कोई विरोध नहीं किया गया, इसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई गई और अब तो ये सांप्रदायिक, ब्राह्मणवादी और मनुवादी लोग कह रहे हैं कि “इस संविधान को खत्म करने में इन एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों का बहुत बड़ा हाथ होगा, योगदान होगा क्योंकि ये लोग ही हमें वोट दे रहे हैं, हमें सत्ता में ला रहे हैं, हमें एमएलए एमपी और मंत्री बना रहे हैं और हमारी सरकार बनाने में पूरी मदद कर रहे हैं।”
यहीं पर सवाल उठता है कि आखिर हमारे एससी, एसटी और ओबीसी के ये तथाकथित बड़े नेता चुप क्यों हैं? वे इस संविधान विरोधी और एससी, एसटी और ओबीसी विरोधी मुहिम का विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं? वे लगातार चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? आखिर क्या कारण है कि वे इस संविधान को खत्म करने की मुहिम के चलते, अपनी जुबान क्यों नहीं खोल रहे हैं? या लड़ाई के मैदान में क्यों नहीं आ रहे हैं? और अपनी जनता को क्यों जागृत नहीं कर रहे हैं? अब तो भी लगता है कि ये एसी st obc के बड़े नेता, इन मनुवादी, हिंदुत्ववादी और सांप्रदायिकता ताकतों के साथ खड़े हैं, उनकी हां में हां मिला रहे हैं और क्योंकि उनका घर भरा हुआ है, वे सांसद विधायक और मंत्री बने हुए हैं, उन्हें किसी तरह की समस्या नहीं है, इसलिए वे इस जन विरोधी और संविधान विरोधी मुहिम का विरोध नहीं कर रहे हैं।
यहीं पर हम देख रहे हैं कि इस संविधान विरोधी अभियान का सबसे ज्यादा विरोध समाजवादी, जनवादी और वामपंथी ताकतें ही कर रही हैं और संविधान को लागू करने में इन्हीं संविधानरक्षक ताकतों का बिहार, बंगाल, त्रिपुरा, केरल आदि राज्यों में विशेष स्थान रहा है, प्रमुख स्थान रहा है। यही ताकतें आज भी इन हिंदुत्ववादी, सांप्रदायिक और मनुवादी ताकतों का विरोध कर रही हैं। वे ही इस संविधान विरोधी आह्वान का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं।
यहीं पर मुख्य बात यह है कि अगर भविष्य में ये हिंदुत्ववादी, सांप्रदायिक और मनुवादी ताकतें फिर सत्ता में आती हैं तो यह निश्चित रूप से कहा जाएगा की 400 पार का नारा देकर ये लोग सत्ता में आएंगे, ये गरीबों, एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को धन बल और छल कपट के द्वारा तोडेंगे, उनका वोट लेंगे और फिर सत्ता में आकर भारतीय संविधान का विध्वंश कर देंगी।
इस स्थिति के लिए अगर कोई सबसे ज्यादा जिम्मेदार होगा तो उनमें इस देश की यह गरीब एससी, एसटी और ओबीसी की जनता नहीं, बल्कि उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार एससी, एसटी और ओबीसी के वे बड़े नेता होंगे, जो नेता बने हुए हैं, सांसद, विधायक और मंत्री बने हुए हैं और अब उन्होंने एससी, एसटी और ओबीसी की बुनियादी मांगों को भुला दिया है। और वे अब केवल अपना घर भरने में लगे हुए हैं, अपने पद बचाने में लगे हुए हैं और अपनी विधायकी ओर सांसदी में फिर से आने की जुगाड़ कर रहे हैं।
उनका इस संविधान विरोधी, इस संविधान को तोड़ने और संविधान का विनाश करने की मुहिम को उजागर करने में, इसका भंडाफोड़ करने में, इसका विरोध करने में, उनका कोई हाथ नहीं है, कोई योगदान नहीं है। अगर भविष्य में ये मनुवादी, सांप्रदायिक और हिंदुत्ववादी ताकतें सरकार में आकर भारतीय संविधान पर हमला करती हैं, उसके बुनियादी उसूलों को तोड़ती हैं, तो इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी, कुछ गिने-चुने एससी, एसटी और ओबीसी नेताओं को छोड़कर, केवल और केवल एससी, एसटी और ओबीसी के बड़े नेताओं की होगी और किसी की नहीं।