अवधेश कुमार
राजधानी दिल्ली की नगर इकाई एमसीडी में आप की विजय निस्संदेह कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। जनसंख्या की दृष्टि से दिल्ली विश्व की सबसे बड़ी नगर इकाई मानी जाती है। राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण यहां के परिणामों की प्रतिध्वनि पूरे देश में गुंजित होती है। चूंकि मुकाबले में बीजेपी थी, इसलिए भी इसके राष्ट्रीय राजनीति के निहितार्थ भी निकाले जाएंगे। 2015 और 2020 में दिल्ली विधानसभा पर संपूर्ण प्रभुत्व कायम करने के बाद आप का सपना एमसीडी को अपने हाथों में लेना था। यह सपना पूरा हुआ है तो इसके राजनीतिक मायने निकाले जाने स्वाभाविक हैं।
- यह पहला मौका है जब आप ने बीजेपी को पराजित किया है। अभी तक आप कहीं भी बीजेपी का वोट काटने में सफल नहीं हुई थी। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा जैसे राज्यों के नतीजों से यह धारणा बनी थी कि आप बीजेपी को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकती, लेकिन इस बार यह धारणा टूटी है।
- एमसीडी परिणामों ने इस बात की फिर से पुष्टि कर दी है कि आप राजनीति में धीरे-धीरे कांग्रेस का स्थान ले रही है। पहले दिल्ली विधानसभा, उसके बाद पंजाब और अब एमसीडी। यहां से आप अगले वर्ष कर्नाटक विधानसभा चुनाव की ओर भी बढ़ेगी।
- परिणाम बता रहे हैं कि बीजेपी ने अंतिम समय तक आप को जबरदस्त टक्कर दी। 15 साल सत्ता में रहने के बावजूद मतदाताओं के बड़े वर्ग का समर्थन उसे अभी भी प्राप्त है। जनसंघ से बीजेपी तक का संगठन आधार दिल्ली में है और उसे खत्म करना संभव नहीं है।
MCD चुनावों में मिली आप को जीत
क्या कहते हैं मत प्रतिशत
दरअसल, एग्जिट पोल के बाद यह मान लिया गया था कि आप उसी तरह बीजेपी को साफ कर देगी, जिस तरह उसने विधानसभा चुनाव में किया था। लेकिन परिणाम ऐसा नहीं आया।
- आप और बीजेपी के मतों में केवल 3% के आसपास का अंतर है। बीजेपी को पिछले 2017 चुनाव के समान यानी 39% वोट मिले हैं। उसके मतों में गिरावट नहीं है। आप का 42% वोट पिछली बार के 25% से लगभग 17% ज्यादा है।
- कांग्रेस का वोट 21% से घटकर लगभग 11% रह गया है। जाहिर है, यह वोट आप की ओर स्थानांतरित हुआ है। पहले दिल्ली विधानसभा, फिर पंजाब और अब एमसीडी- जाहिर है, कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात है।
- बीजेपी को इस बात पर विचार करना होगा कि आखिर रणनीति में कहां चूक हो गई जिससे मतों में गिरावट न आने के बावजूद वह बहुमत से पीछे रह गई।
- बीजेपी से कहां हुई गलती
- मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार की अपील को जनता ने स्वीकार किया और उनको बहुमत दिया तो बीजेपी को गहराई से इस पर विचार करना ही होगा। यह तो नहीं कह सकते कि शराब घोटाले से लेकर सत्येंद्र जैन को जेल में मिली सुख-सुविधाओं का मुद्दा उठाना गलत रणनीति थी। इसका असर भी देखा गया है। किंतु किसी चीज को एक सीमा से ज्यादा खींचना उसके प्रभाव को क्षीण कर देता है। बीजेपी को यह स्वीकार करना होगा कि वह दिल्ली की स्थानीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल का जवाब देने में अभी तक सफल नहीं है। बीजेपी के पास कार्यकर्ताओं की बहुत बड़ी संख्या है, जो उसके लिए तन-मन-धन लगाकर काम करते हैं। सारे सर्वेक्षण बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनका आकर्षण पूरी तरह कायम है। केंद्र सरकार के कार्यों से भी असंतोष का कोई लक्षण नहीं। इन सबके बावजूद केजरीवाल ब्रैंड राजनीति अगर एमसीडी में भारी पड़ गई तो कहना होगा कि बीजेपी के लिए गंभीर मंथन की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय राजनीति पर असर नहीं
- हालांकि इसके मायने यह नहीं है कि राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से भी यह बीजेपी के लिए धक्का होगा। इसकी कई वजहें हैं।
- एक, अब अरविंद केजरीवाल दिल्ली की व्यवस्था में अपने बचाव के लिए नहीं कह सकते कि एमसीडी तो बीजेपी के पास है। कूड़े के पहाड़, प्रदूषण और यमुना की गंदगी – जैसी विकराल चुनौतियां उनके सामने हैं।
- दो, बीजेपी 15 सालों में पहली बार दिल्ली राज्य की राजनीति में संपूर्ण विपक्ष बनी है। स्पष्ट है, अब उसके तेवर में पहले से ज्यादा धार होगी।
- तीन, दिल्ली के मतदाता भी आने वाले समय में उनका ठीक प्रकार से मूल्यांकन कर सकेंगे।
- चार, बड़े विज्ञापन, इवेंट और लोगों को मोहित करने वाली शैली की बदौलत आप अब तक जिस तरह से बीजेपी को चुनौती देती रही थी, अब वैसा करने की स्थिति में नहीं होगी।
- पांच, लोकसभा चुनाव में दिल्ली में फिर नरेंद्र मोदी का चेहरा होगा और मोटा-मोटी 3% का मतों का अंतर पाटकर 2019 की पुनरावृत्ति करना खास मुश्किल नहीं होगा।
- ध्यान रखने की बात यह भी है कि मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन आदि के इलाके में आप को गहरा नुकसान हुआ है।
- गैर-मुस्लिम मत
- विचारधारा की दृष्टि से बीजेपी और देश के लिए इसके महत्वपूर्ण संकेत और भी हैं। मसलन, दिल्ली दंगों से प्रभावित कई क्षेत्रों में बीजेपी को अच्छी जीत मिली है। यद्यपि वहां मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है। इसका मतलब यह है कि बीजेपी के पक्ष में गैर मुस्लिम मतों का एकीकरण हुआ। साफ है कि हिंदू मुस्लिम मामलों में 2014 से जो राष्ट्रीय प्रवृत्ति और सोच दिखाई दी, उससे बीजेपी के समर्थन का विस्तार हुआ और यह अभी तक कायम है। अगर पार्टियों ने इसके अनुरूप अपनी नीतियां नहीं बदलीं तो उन्हें आगामी चुनावों में ज्यादा क्षति हो सकती है।