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फिर से राम का नाम भुनाने की भाजपा की तैयारी

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 एचएल दुसाध

23 सितम्बर की सुबह भाजपा मुखपत्र के रूप में जाने वाले देश के सबसे बड़े अख़बार के लखनऊ संस्करण में ‘देश का माहौल राममय बनाएगा आरएसएस’ शीर्षक से छपी एक खबर पढ़ा, जिसे पढ़कर शायद ढेरों लोग विस्मृत हुए होंगे, पर मैं नहीं हुआ। इस खबर का आधार था, अवध प्रान्त के चार दिवसीय प्रवास के सिलसिले में डॉ. मोहन भागवत का लखनऊ आगमन, तीन कॉलम की खबर के पहले पैरे में लिखा गया था, अगले वर्ष जनवरी में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बन रहे मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को दृष्टिगत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पूरे देश को राममय बनाने की योजना है. संघ की मंशा है कि राम मंदिर का स्वप्न साकार होने से उमड़ने वाला भावनाओं का ज्वार पूरे देश में फैले। इसके जरिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की धार को पैना करके अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के पक्ष में अनुकूल वातावरण सृजित करने का इरादा है। अवध प्रान्त के चार दिवसीय प्रवास पर शुक्रवार को लखनऊ आए संघ के सर संघचालक मोहन भागवत का आगमन संघ के इस अभियान को और गति देगा।

बहरहाल, जैसा कि शुरू की पंक्तियों में लिखा था कि इस खबर से ढेरों लोग विस्मृत होंगे, पर मैं नहीं। क्योंकि पिछले कई महीनों से इस स्थिति का अनुमान लगाकर मैंने ढेरों लेख लिखे थे और मेरे पिछले दो लेख तो इसी पर केन्द्रित रहे, खास तौर से उद्धव ठाकरे के इस बयान पर –  ‘राम मंदिर के उद्घाटन के बाद गोधरा काण्ड सामने आ सकता है’- 15 सितम्बर के अख़बारों में ‘उद्धव ठाकरे की चेतावनी’ शीर्षक से जो लेख इस अख़बार सहित कई पोर्टलों पर प्रकाशित हुआ, उसमें मैंने कहा था कि भाजपा ने जो अभूतपूर्व राजनीतिक सफलता अर्जित कर खुद को अप्रतिरोध्य बनाया है, उसके पृष्ठ में आम लोगों की धारणा है कि धर्मोन्माद के जरिये ही उसने सफलता का इतिहास रचा है, जो खूब गलत भी नहीं है। पर, यदि और गहराई  में जाया जाय तो यह साफ़ नजर आएगा कि उसके पितृ संगठन संघ ने ‘हेट पॉलिटिक्स’ की सारी पटकथा गुलामी के प्रतीकों के मुक्ति के नाम पर रचा है। वैसे तो भारत के चप्पे-चप्पे पर विदेशियों ने गुलामी के प्रतीक खड़े किये हैं, पर संघ के लिए सबसे बड़ा प्रतीक बाबरी मस्जिद रही, जिसकी मुक्ति के लिए उसने भाजपा को सामने रखकर राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन छेड़ा। इस मुक्ति अभियान के लिए उसने साधु-संतो के नेतृत्व में ‘राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति’ और मुक्ति यज्ञ समिति’ जैसी कई समितियां खड़ी की। इनके प्रयास से बड़े आन्दोलनों के बाद राम जन्मभूमि मुक्ति अभियान सफल हुआ और 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘राम मंदिर निर्माण का भूमिपूजन’ किया। अब सामाजिक न्याय की कब्र पर तैयार हो रहे उसी राम मंदिर का लोकसभा चुनाव के कुछ महीने पहले 24 जनवरी को उद्घाटन होना है। यदि गौर से देखा जाय तो राम मंदिर के भूमि पूजन से लेकर इसके उद्घाटन तक की परिकल्पना लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रखकर की गयी है, ताकि ‘गुलामी के सबसे बड़े प्रतीक’ के मुक्ति का लोकसभा चुनाव में उपयोग किया जा सके। इस अवसर पर लाखों साधु-संत और राम- भक्त जुटेंगे। इनके विजयोल्लास से न सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए बेहतर माहौल बनेगा, बल्कि इस माहौल में साधु-संतों को बाकी बचे गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति के लिए प्रेरित किया जा सके।  ताकि गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति का संघर्ष भविष्य में भी भाजपा के सत्ता का मार्ग प्रशस्त करता रहे। इस क्रम में साधु-संत राम जन्मभूमि मुक्ति की सफलता से उत्साहित होकर लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रखते हुए, वाराणसी के ज्ञानवापी और मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन को नई उंचाई देकर माहौल को बनाने में पीछे न रहें। इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। इससे लोकसभा चुनाव के पूर्व देश का सांप्रदायिक माहौल बुरी तरह बिगड़ सकता है और ऐसे माहौल में कुछ अप्रिय घटनायें सामने आ सकती हैं। शायद इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर उद्धव ठाकरे ने राष्ट्र को चेताने का काम किया है। इस बात को ध्यान में रखते हुए अमन-चैन प्रिय भारतीय अवाम को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना होगा।

भारतीय जनता संघ द्वारा तैयार किये जाने वाले राममय माहौल को लेकर कितने जागरूक हैं, मैंने इस खबर की पेपर कटिंग अपने फेसबुक वाल पर चस्पा करते हुए यह कैप्शन डाला, ‘देश का माहौल संघ जरूर राममय बनाएगा। राममय बनते माहौल का क्या हो जवाब,प्लीज आप बताएं?’ वैसे संघ/भाजपा को लेकर जब भी कोई पोस्ट डालता हूँ, उसकी पहुंच कम कर दी जाती है। इस पोस्ट के साथ भी ऐसा ही हुआ। लेकिन उसके पहले छः लोगों के कमेंट आ गए, जिन्हें देखकर ऐसा लगा भविष्य में बनने वाले राममय माहौल को लेकर बहुजन उतने चिंतित नहीं हैं, इसलिए इसका ठीक-ठाक जवाब सुझाने में वे असमर्थ हैं।

बहरहाल जिन छह लोगों के कमेंट आए, उनमें एक का कहना था, ’शम्बूक बध और सीता की अग्नि परीक्षा, ’दूसरे का कमेंट रहा, ‘चिराग पासवान सनातन बचा रहे हैं, उन्हें संभालो’। तीसरे ने लिखा, ‘किसी के कहने से कुछ नहीं होने वाला है, बुद्धमय था, है और रहेगा।’ चौथे की राय में, ‘अच्छा है राममय बनेगा, अगर भीममय बनाने का एलान होता तो जातिवाद बढ़ जाता।‘ छः में से दो व्यक्तियों की राय देख लगा कि वे राममय माहौल से होने वाले दुष्परिणाम को लेकर चिंतित हैं और इससे पार पाने का उनके पास रास्ता है।  इन दो में एक का कमेंट रहा, ‘मतलब कल रमेश विधूड़ी ने बता दिया है।’ छठे और आखरी व्यक्ति की राय रही, ‘सोशल जस्टिस, डाइवर्सिटी, संविधान और निजी क्षेत्र में आरक्षण के जोर से ही इस माहौल से पार पाया जा सकता है।’

‘देश का माहौल राममय बनाएगा आरएसएस’ शीर्षक से छपी खबर पर फेसबुक पर सक्रिय बहुजन विद्वानों की शोचनीय राय के साथ विपक्षी नेताओं में गजब की चुप्पी दिखी। इस खबर को लेकर लखनऊ में बैठे सामाजिक न्यायवादी नेताओं की ओर से इन पक्तियों के लिखे जाने के दौरान कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। जबकि सामान्य परिस्थिति में इसे लेकर भाजपा-विरोधी नेताओं की ओर से बयानों का सैलाब आ जाना चाहिए था, पर नहीं आया। इसका कारण शायद यही है कि उन्हें इस बात कि जानकारी ही नहीं है कि देश में राममय माहौल बनाने की घोषणा का अर्थ देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाना है। इतिहास साक्षी है कि 7 अगस्त , 1990 को मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद भाजपा/ संघ के हर धार्मिक आयोजनों का लक्ष्य मुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाना रहा। इसी मकसद से मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के डेढ़ महीने बाद 25 सितम्बर, 1990 से राम मंदिर निर्माण के लिए भाजपा के लालकृष्ण अडवाणी ने ‘रथ यात्रा’ शुरू किया और इसके जरिये उन्होंने नफरत का माहौल बनाने का जो अनवरत अभियान छेड़ा, उसके फलस्वरूप वंचित बहुजन समाज नफरत के नशे का मतवाला हो गया और भाजपा को चुनाव दर चुनाव अपने वोटों से लादता गया। भाजपा के शासन में अपने तमाम अधिकार खोकर गुलामों की स्थिति में पहुचने के बावजूद उसका नशा नहीं उतरा है।  भाजपा नेतृत्व नफरत के नशे के असर को ठीक से जानता है, इसीलिए 2024 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए वह बहुत योजनाबद्ध तरीके से देश का माहौल अभूतपूर्व रूप से राममय बनाने में जुट गया है।  22 सितम्बर को डॉ. मोहन भागवत के लखनऊ आगमन पर भाजपा के मुखपत्र के रूप में चर्चित अख़बार ने ‘देश का माहौल राममय बनाएगा आरएसएस’ शीर्षक से न्यूज प्रकाशित कर भाजपा विरोधियों को एक तरह से चुनौती दे दिया है, जिसे विपक्ष समझ ही नहीं प रहा है।

भाजपा 2024 में देश का माहौल राममय बनाने की जो परिकल्पना कर रही है, उसे देखते हुए बीते  27 अगस्त को ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन और संविधान बचाओं संगर्ष समिति’ ने दिल्ली में आयोजित एक बड़े समारोह के जरिये ‘इंडिया’ गठबंधन के समक्ष जारी एक अपील में कहा है– ‘हम मानते हैं कि भाजपा दलित, आदिवासी, पिछड़ों को अपने नफरती राजनीति के नशे में इस कदर मतवाला बना दी है कि वे आरक्षण सहित अपने- अपने ढेरों अधिकार खोने तथा गुलामों की स्थिति में पहुचने के बावजूद भी चेत नहीं रहे हैं। कश्मीर फाइल्स, द केरला स्टोरी तथा ग़दर 2 जैसी साधारण प्रोपेगंडा फिल्मों की असाधारण सफलता मोदी राज में विकसित हुई नफरती मानसिकता का ही परिणाम है, जिसे बहुत ही सुनियोजित तरीके से विकसित किया गया है।  बहुजन इसलिए नफरती राजनीति के नशे में मतवाला हो गया है क्योंकि जिस सामाजिक न्याय की राजनीति के जरिये अप्रतिरोध्य भाजपा को लाचार और कमजोर किया जा सकता है, उसे हवा देने का काम पिछले एक दशक से नहीं के बराबर हुआ। ऐसे में बहुजनों का यह घातक नशा सिर्फ उग्र सामाजिक न्याय की राजनीति के जोर से ही उतारा जा सकता है, ऐसा हमारा मानना है। ऐसे में अगर इंडिया((इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस) नफरत की राजनीति पर निर्भर भाजपा से पार पाना चाहती है तो उसे अपने प्रचार को मुख्यतः भाजपा के आरक्षण विरोधी इतिहास से आरक्षित वर्गों को अवगत कराने पर केन्द्रित करने के साथ अपने चुनावी एजेंडे को नौकरियों में आरक्षण से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति, आउट सोर्सिंग जॉब इत्यादि में संख्यानुपात में आरक्षण को जगह देनी होगी। कारण, एकमात्र सर्वव्यापी आरक्षण का एजेंडा ही वंचित बहुजनों को नफरत की राजनीति के घातक नशे से निजात दिला सकता है।

बहरहाल आज जबकि देश का माहौल राममय बनाने की घोषणा सामने आ चुकी है, विपक्ष के सामने एक ही रास्ता है कि वह राममय के समानांतर देश का माहौल सामाजिक न्यायमय बनाने का अभियान छेड़े। किन्तु भारी अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि सामाजिक न्यायमय माहौल बनाने में एमके स्टालिन और राहुल गाँधी को छोड़कर इंडिया गठबंधन से जुड़े अन्य दलों और नेताओं में खास आन्तरिकता नहीं दिख रही है। ऐसे में ले दे कर निगाहें राहुल गाँधी पर टिक जाती हैं, जिन्होंने 22 सितम्बर को महिला आरक्षण पर अपनी राय देने के क्रम में कहा कि प्रधानमंत्री ओबीसी के लिए बहुत काम करने की बात कहते हैं तो फिर केंद्र सरकार के 90 सचिवों में केवल तीन ही ओबीसी क्यों हैं?ओबीसी, एससी/एसटी वर्ग के सचिव देश के सिर्फ छह प्रतिशत बजट को संचालित करते हैं तो ऐसे में हर दिन पिछड़ों की बात करने वाले पीएम मोदी ने ओबीसी के लिए क्या किया? राहुल गाँधी के इन सवालों में  देश का माहौल सामाजिक न्यायमय बनाने के भरपूर तत्व है। यदि इंडिया गठबंधन भाजपा के राममय माहौल बनाने से चिंतित है तो उसे चाहिए कि वह राहुल गाँधी के नेतृत्व में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की भांति भारतमय ‘सामाजिक न्याय की यात्रा’ निकाले और जिस तरह भारत जोड़ो यात्रा समापन इस वर्ष 29  जनवरी को हुआ था, उसी तरह सामाजिक न्याय का समापन: 24 जनवरी को होने वाले राम मंदिर उद्घाटन के पांच  दिन बाद 29  जनवरी, 2024 को करे। सामाजिक न्याय यात्रा से उमड़ने वाला भावनाओं का ज्वार पूरे देश में ऐसा स्पंदन पैदा करेगा कि 2024 का चुनाव जीतने के भाजपा के मंसूबे धरे के धरे रह जायेंगे!

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