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कालाधन एक कला है?

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शशिकांत गुप्ते

मैने अपने मित्र सीतारामजी से पूछा,कालाधन कैसे होता होगा?
सीताराम जी मुझे यूँ समझाया कि, कालाधन मतलब जो कर (Tax) की चोरी करके बचाया जाता है। जिसका हिसाब,किसी भी किताब में लिखा नहीं जाता है। सारे अवैध व्यापार शुद्ध कालेधन से ही किए जातें हैं। जो आय गैरकानूनी ढंग की होती है, वह आय कालाधन ही कहलाती है। काल धन बोलता है।
सीतारामजी ने मुझसे कहा कि,
सन 1989 में प्रदर्शित फ़िल्म काला बाजार का यह गीत सुना है। इस गीत को सुनने के बाद कालेधन के बारें में बहुत कुछ जानने के मिलेगा। यह गीत लिखा है,गीतकार पयाम सईदी ने।
ठन ठन की सुनो झंकार
ये दुनिया है काला बाजार
ये पैसा बोलता हैं
मैं गोल हूँ,दुनिया गोल
जो बोलू खोल दूँ, सब की पोल
रंग गोरा हो या काला हो
जग उसका, जो पैसा वाला हो
घपले से मिले या रिश्वत से
बनता हैं,मुकद्दर दौलत से
सच्चा है यहाँ कंगाल
तो बेईमान है मालामाल
ये पैसा बोलता हैं
मैं गंगू तेली को दू न राज
गधे के सर पे रख दूँ ताज
ये पैसा बोलता है।

जिनके पास पैसा बोलता है। उनके यहाँ तो घर की दीवार भी पैसा उगलती है। आश्चर्य होता है इनलोगों के गुसलखाने की छत में भी धनलक्ष्मीजी विराजती है।
सीतारामजी ने कहा जिन लोगों के यहाँ पैसा बोलता है। वे लोग कैसे होतें हैं। यह जानना होतो सन 1972 में प्रदर्शित फ़िल्म बे-ईमान का यह गीत सुनो। यह गीत लिखा है गीतकार वर्मा मलिक ने।
ना इज्जत की चिंता
ना फिकर कोई अपमान की
जय बोलो बेईमान की
बेईमान के बिना मात्रे होते अक्षर चार
बा बदकारी
ई ईष्या
मा से बने मक्कार
ना से नमक हरामी
समझो हो गए पूरे चार
चार गुनाह मिल जाएँ
होता बेईमान तैयार
सेठ भी असली
पेट भी असली
नकली माल बनाएं
अपने देश का कपड़ा
लगी है मोहर जापान की
जय बोलो बेईमान की।
पूरे सीट पे जटा-जुट संग है महाराज पधारे
चिमटा चरस चिलम और चेले साथ साथ हैं सारे
टिकिट लेकर भी गाड़ी में खड़े शरीफ़ बेचारे
बिना टिकट यात्रा करते
देखो तीरथ स्थान की
जय बोलो बेईमान की
ऐसे लोगों के पास ही पैसा बोलता है।

इनलोगों का हाजमा बहुत अच्छा होता है। इनलोगों के लिए यह स्लोगन कोई काम का नहीं है?
ना खाऊंगा,ना खाने दूंगा
इनलोगों का स्वयं का यह स्लोगन होता है। जिधर बम उधर हम
सीतारामजी ने इसतरह विस्तार से कालेधन के बारें में मुझे समझाया।
सीरारामजी को बहुत बहुत धन्यवाद।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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