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सरकार द्वारा धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन

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मुनेश त्यागी 

        आजकल अयोध्या में केंद्र और उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के सहयोग से राम मंदिर का निर्माण जोर-जोर से चल रहा है जिसे लेकर देश में हलचल सी मची हुई है। जहां बीजेपी और आरएसएस के समर्थक इस मंदिर निर्माण का खुले दिल से समर्थन कर रहे हैं और इन दोनों ने इस धार्मिक मुद्दे को अपने हित में राज्य प्रायोजित कार्यक्रम में बदल दिया है। वही दूसरे प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और संवैधानिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले लोगों ने और कई दलों ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक मूल्यों को धराशाई करने पर बेचैनी और असंतोष की भावना बढ़ती चली जा रही है।

      भारतीय संविधान के अनुसार, हर एक आदमी को अपने धार्मिक विश्वास एवं मान्यताओं को बनाए रखने और मानने का संवैधानिक अधिकार है। धर्म को मानना या न मानना हर एक आदमी की अपनी इच्छा है। अयोध्या में बनाए जा रहे राम मंदिर को लेकर आरएसएस और भाजपा ने इस धार्मिक मुद्दे को अपने हित में साधने के लिए राज्य प्रायोजित कार्यक्रम में बदल दिया है। इस मामले में यूपी की  सरकार और केंद्र की सरकार के समस्त मंत्री और  अधिकारीगण शामिल हैं।

      यह माना कि धर्म हर एक आदमी का व्यक्तिगत मामला है मगर धर्म और राजनीति को गड़मड्ड नहीं किया जा सकता और किसी दल द्वारा या किसी सरकार द्वारा इस मुद्दे को लेकर धर्म का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। यहां पर समस्या यही है कि भारत की केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश की सरकार, राम मंदिर के धार्मिक मुद्दे को सत्ता हथियाने का हथियार बना रहे हैं और इस मुद्दे का पूरी तरह से राजनीतिकरण कर दिया गया है जो कि धर्म और संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है।

     अगर हम धर्म की बात करें तो धर्म के दस बुनियादी लक्षण है जैसे 1.धैर्य, 2.सहनशीलता, 3.मन पर नियंत्रण, 4. चोरी ना करना, 5. पारदर्शिता, 6.इंद्रिय वशीकरण, 7. सर्व हिताय बुद्धि, 8. सर्व हिताय शिक्षा/ विद्या, 9. सच्चाई एवं 10 क्रोध न करना। इनमें पूजा पद्धति, अंधविश्वास, धर्मांता, पाखंड, भगवान देवी देवता या तथाकथित चमत्कारी शक्तियां शामिल नहीं है।

     यहीं पर यह जानना जरूरी है कि भारत के संविधान के बुनियादी सिद्धांतों में धर्मनिरपेक्षता शामिल है। धर्मनिरपेक्षता क्या है? और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के इस बारे में क्या फैसले रहे हैं? इन्हें जानना भी बहुत जरूरी है। धर्मनिरपेक्षता का सारतत्व है कि राज्य यानी स्टेट, केंद्र या राज्य, द्वारा धार्मिक विभिन्नता के आधार पर जनता से भेदभाव न करना। इस मुख्य विषय पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई फसलों में अनेक व्याख्याएं दी हैं जिनमें उसने कहा है कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और राज्य सभी धर्म और धार्मिक समूहों से बराबरी का बर्ताव करेगा। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सभी धर्मों का बराबर का स्थान होगा, किसी भी धर्म के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। राज्य धर्मों के बीच पुल का काम करेगा। राज्य सभी धर्म को सुरक्षा प्रदान करेगा। वह किसी धर्म विशेष को कोई तरजीह नहीं देगा।

     सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया है कि यदि कोई राज्य सरकार धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर हमला करती है या इसमें बाधा और हानि पहुंचती है तो राज्य की यह गतिविधि धर्मनिरपेक्षता और संविधान की बुनियादी प्रावधानों और सिद्धांतों के खिलाफ होगी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर बता दिया है कि भारत की सरकार और सभी राज्यों की सरकारें, सभी धर्मों से बराबरी का बर्ताव करेंगे और भारतीय राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और हमारा राज्य धर्म विहीन है।

       इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे राष्ट्र, राज्य और सरकार का कोई धर्म नहीं है। उसके लिए सब धर्म बराबर हैं। भारत का कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म में विश्वास रख सकता है, यह उसका निजी मामला है, मगर कोई नेता और राज्य, सरकार की नीतियों और राजकीय कार्यों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। हमारे संविधान में लिखित धर्मनिरपेक्षता के यही मायने हैं। इस प्रकार धर्म और धर्मनिरपेक्षता को गड़मड्ड नहीं किया जा सकता। इन दोनों के विचार, मायने और सिद्धांत ही अलग-अलग हैं। 

   हमें धर्म की व्याख्या और धर्मनिरपेक्षता के मायने, भारतीय संविधान के अनुसार ही लगाने चाहिए। इस बारे में भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विचार बिल्कुल खुलकर और बिना किसी लाग लपेट के व्यक्त कर दिए हैं और पूरे देश को बता दिया है कि धर्मनिरपेक्षता के क्या अर्थ हैं? हमें धर्मनिरपेक्षता को इस रोशनी में और भारत के संविधान की दृष्टि से देखना चाहिए। धर्म, धर्मांता और धर्मनिरपेक्षता को एक साथ गड़मड्ड नहीं किया जाना चाहिए।

     वर्तमान इजारेदार, पूंजीपति, सामंतों और सांप्रदायिक ताकतों का गठजोड़ और उनकी वर्तमान सरकार, हमारे देश की जनता को धर्म और धर्मनिरपेक्षता के असली मायने और सिद्धांत बताने को तैयार नहीं है। वे हमारी सीधी सादी जनता को सही जानकारी देने में आनाकानी कर रहे हैं और वे धर्म का राजनीतिकरण करके जनता को गुमराह कर रहे हैं और इस सबसे केवल राजनीतिक लाभ लेने पर ही आमादा हैं। हमारे देश की मुख्य कम्युनिस्ट पार्टियों, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने फैसला लिया है कि वे सरकार द्वारा धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को ध्वस्त करने वाले अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास समारोह से दूर ही रहेंगी। इन दोनों पार्टियों द्वारा धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों की रक्षा करने की यह अद्भुत मिसाल है।

     इस प्रकार हमारी केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार हमारे देश में धर्मांता और अंधविश्वास के साम्राज्य को कायम ही रखना चाहते हैं। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को पूरी तरह से त्याग दिया है और भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांतों को पूरी तरह से मिट्टी में मिला दिया है। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में अब वे जान पूछकर धर्म का राजनीतिकरण करके वे धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रहे हैं। अब यहां पर इस देश की तमाम प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष तबकों की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वे जनता के बीच जाएं और उन्हें सरकार द्वारा धर्म के राजनीतिकरण की मुहिम से बचाएं और सावधान करें और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों और संवैधानिक मूल्यों की हिफाजत करें।

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