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*आँखों से अंधे नाम नयनसुख?*

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शशिकांत गुप्ते

बिल्ली जब दूध पीती है तो आँखे बंद कर लेती है, उसे लगता है कि,उसे कोई देख नहीं रहा जब की हक़ीक़त में वह सबकी नजर में होती है।
उक्त कथन,चोरी करने की प्रवृत्ति पर शाब्दिक व्यंग्य है।
चोरी के समानार्थक शब्द जैसे सेंध लगाना, सेंधमारी, अपराध, गबन, जबरन वसूली और धोखाधड़ी।
फिल्मी दुनिया में तो चोरी शब्द पर बहुत सी फिल्म निर्मित हुई है।
फिल्मी अभिनेता,निर्माता से चोर का रोल अदा करने का भी मानधन लेते हैं। तमाम अभिनेता,और अभिनेत्रियां चोर का अभिनय भी बखूबी करती हैं।
किसी फिल्म में सिपाही का रोल जो अभिनेता करता है,वही अभिनेता दूसरी फिल्म में अनेक प्रकार के अवैध धंधो का सरगना बनाता है।
फिल्मी अदालत का दृश्य सिर्फ और सिर्फ दर्शकों के मनोरंजन के लिए फिल्माया जाता है।
इतना लिख कर मैने सीतारामजी से सलाह ली की इस लेख को पूर्ण कैसे करूं?
सीतारामजी ने कहा इतना ही लिख दो, इनदिनों मानव रूपी बिल्लियां भी वास्तविक बिल्लियों जैसा ही आचरण कर रही हैं।
मानव और बिल्ली में इतना ही फर्क है कि,बिल्ली तो सिर्फ दूध पीते हुए अपनी आंखे बन्द कर लेती है।
मानव कानून व्यवस्था को धता बता कर चोरी करता है।
बहुत सी बार मानव ……. मौसेरे भाई वाली कहावत को चरितार्थ करने में भी शर्म महसूस नहीं करता है।
इनदिनों मानव को जघन्य अपराध करने,भ्रष्ट आचरण करने,अमानवीय कृत्य करने के लिए बिल्ली जैसी आंखे बंद नहीं करना पड़ती है।अब सैयां के कोतवाल बनने वाली कहावत तो बहुत छोटी हो गई है।अब कानून व्यवस्था स्वयं ही आंखे बन्द कर लेती है? कारण कोतवाल से बड़ी शक्ति अब अपराधियों को अपने पास आमंत्रित कर गलबहियां करने में ही परहेज नहीं करतीं है।
रसूखदार गुनहगार के लिए तो कानून सिर्फ अंधा ही नहीं,कानून के हाथ भी बहुत छोटे हो जातें हैं।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है।
गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं
उक्त शेर में तेरे का मतलब होता है,ऊपरवाला और लेख में तेरे से तात्पर्य है,उपरवालों से।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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