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किताबें जिन्होंने ज़िन्दगी बदल दी मेरी – 1

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अनुपमा गर्ग

Gone with the wind  एक नाम था, जो अटका था मेरे ज़ेहन में, जब Titanic  बनी तब से।  काफी बात उठी थी तब उन फिल्मों की जिन्हें सबसे ज़्यादा अवार्ड्स या नॉमिनेशंस मिले थे।  मुझे याद है मैंने मेरे English teacher  से पूछा कि इस नावेल के लेखक कौन हैं।  उन्होंने बताया, और मैं भूल गयी।  लेकिन एक अजीब सी कशिश थी इस नाम में।  कभी कभी यूँ ही बिना कुछ जाने समझे, मैं ये चार शब्द अपनी जुबां पे घुमा घुमा के उनका स्वाद चखती रहती।

फिर जब 2006 में मैं दिल्ली आयी, और मैंने एक कॉल सेंटर में नौकरी की, तो मैंने फिर से पढ़ना शुरू किया।  पढाई की किताबों के अलावा पिछले 6 साल में ज़्यादा कुछ नहीं पढ़ा था मैंने। इंग्लिश लिटरेचर बिलकुल भी नहीं पढ़ा था।  इसलिए सहकर्मियों से पूछा क्या पढ़ा जाये।  मुझे एक सहकर्मी ने ये किताब recommend की, और कई किताबों के साथ।

मेरी ज़िन्दगी की धार बदल दी, project gutenberg की वेबसाइट, और इस महा लम्बे, शुरू के 100 पन्ने झेल, अमरीकी उपन्यास ने।  मैंने शुरू के 100 पन्ने सिर्फ ईगो और हेकड़ी के कारण झेले।

इस किताब ने मुझे पॉलिटिक्स, युद्ध, हिस्ट्री, अमरीका, सब चीज़ों के बारे में बहुत सिखाया, लेकिन मुझे याद सिर्फ एक बात रही, Scarlet और Rhett का प्रेम और उनका विछोह।  आज इस किताब को मैं दूसरी नज़र से देखती हूँ, लेकिन ये किताब उस वक़्त मेरे लिए वरदान साबित हुई।  उसके बाद जो पढ़ना शुरू हुआ फिर से, तो  चालू आहे 

इसके बाद मेरे जीवन में आयी Johnathan  Livingston Seagull. किसी शार्ट टर्म ex ने मुझे गिफ्ट की थी।  लेकिन मुझे तब बिलकुल समझ नहीं आयी थी।  दस साल लगे मुझे वो किताब समझ आने से पहले।  लेकिन जब समझ आ गयी तब तक मैं जॉनाथन बन चुकी थी।

अगर आँखों में कोई सपना हो, तो भीड़ से अलग, भेड़ बने बिना, ज़िन्दगी बदलने के इस पुस्तक को पढ़ना कई लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है।  इस किताब के बाद मैंने Richard  Bach  की सभी किताबें पढ़ीं, मुझे उनकी One भी अच्छी लगी, लेकिन, इस किताब के लिए जो शुक्राना रहेगा, वो तो अलग है।

The Witch of Portobello के बारे में तफसील से लिख चुकी हूँ पहले भी एक आध बार।  मुझसे 4 साल छोटी एक स्टूडेंट ने मुझे Paulo Coelho की एक किताब पढ़ने को दी, मैंने अगले ही दिन लौटा दी।  मैं 21 साल की थी।  मुझे, The Alchemist बिलकुल अच्छी नहीं लगी।  फिर जब मैं CAT की कोचिंग देने  लगी तो  इंस्टिट्यूट की लाइब्रेरी में मुझे Brida मिली।  और फिर मैं जा कर Paulo Coelho की जो भी किताबें उपलब्ध थीं, सब खरीद लायी।

25 साल की उम्र में, इस किताब ने मुझे पहली बार NORMAL महसूस करवाया।  इस किताब ने मुझे सिखाया कि भीड़ से अलग होने के लिए, भीड़ से दूर जा कर खड़े होना भी ज़रूरी नहीं है। कि कभी कभी आपको कोई नहीं समझता, परिवार, दोस्त, माँ बाप, डॉक्टर, colleagues कोई नहीं।  लेकिन इस बात से कोई विशेष फ़र्क नहीं पड़ता।

लोग नहीं समझते इसलिए डरते हैं।  अगर उनके भीतर का डर निकाल दो, तो भीड़ में रह कर भीड़ से अलग होना साध सकते हो।  न भी साधना चाहो, और अंत में अगर अकेले होना चुनो, तो भी कोई बात नहीं।   Johnathan  Livingston Seagull का उस समय लॉजिकल सीक्वेंस निकली ये किताब मेरे लिए।

किताबें बहुत पढ़ीं मैंने।  हिंदी में, अंग्रेजी में, अनूदित साहित्य भी। हर पुस्तक ने कुछ सिखाया।  हर किताब की एक कहानी है।  हर किताब का एक हक़ है मेरी ज़िन्दगी के शुक्राने पर। सभी कहानियाँ एक साथ नहीं कह पाती, आँखें और गला दोनों ही भर-भर आते हैं।

लेकिन, ये कहानियाँ भस्म न हो जाएं एक दिन देह के साथ, इसलिए इन्हें कह देना ज़रूरी है।  अगर किसी दिन मुझे Alzheimer’s हो जाये, तो ये मेरी याददाश्त फिर ज़िंदा करने की कोशिश में काम आ जाएं।  अगर कहीं कोई हो, इस देस में, इस दुनिया में, जिसे इन कहानियों की ज़रा भी ज़रूरत हो, तो ये उस तक पहुँच जाएँ।  इन कहानियों ने मेरा जीने में, ज़िंदा रहने में, ज़िंदादिल रहने में बहुत साथ दिया है।  इन किताबों ने मुझे बहुत संभाला है।  इन के लिए शुक्राना 

अनुपमा गर्ग

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