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इंडिया और भारत का विचार दोनों ही उपमहाद्वीप में अंग्रेजों के आगमन से पहले के हैं

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नाम में क्या रखा है? लेकिन अगर सोशल मीडिया के रुझानों और प्रबल राजनीतिक बयानों को देखा जाए तो जाहिर तौर पर बहुत कुछ रखा है. इंडिया बनाम भारत की बहस ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है और कई प्रमुख सोशल मीडिया यूज़र्स (जैसे भाजपा नेता, राईट विंग अकाउंट, और मशहूर हस्तियों) ने दावा किया है कि ‘इंडिया’ नाम औपनिवेशिक निशानी, या अंग्रेजों द्वारा दिया गया है.

विपक्षी गठबंधन द्वारा खुद को I.N.D.I.A नाम दिए जाने के बाद इस बहस ने जोर पकड़ लिया है. 18 जुलाई, 2023 को बेंगलुरु में 26 दलों की बैठक के बाद इस नाम की घोषणा की गई थी. उसी दिन, भाजपा नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने एक ट्वीट में कहा, “अंग्रेजों ने हमारे देश का नाम इंडिया रखा. हमें खुद को औपनिवेशिक विरासतों से मुक्त करने की कोशिश करनी चाहिए. हमारे पूर्वजों ने भारत के लिए लड़ाई लड़ी और हम भारत के लिए काम करना जारी रखेंगे.”

बाद में उन्होंने X (ट्विटर) पर अपने बायो को ‘चीफ़ मिनिस्टर ऑफ़ आसाम, इंडिया’ से बदलकर चीफ़ मिनिस्टर ऑफ़ आसाम, भारत’ कर लिया.

हालांकि, शुरुआत में सरकार ने अपने इस एजेंडे का खुलासा किए बिना 18 सितंबर से संसद का एक विशेष सत्र बुलाया था. और हर कोई कुछ वक्त के लिए ये अनुमान लगाता रहा कि G20 के निमंत्रण में भी ‘प्रेसिडेंट ऑफ़ भारत‘ का ज़िक्र किया जाएगा और पीएम मोदी की इंडोनेशिया यात्रा से संबंधित एक डॉक्यूमेंट में भी ‘प्राइम मिनीस्टर ऑफ़ भारत’ लिखा गया हो, ये सब इन अटकलों को और हवा दे दी गई. 10 सितंबर को पीएम मोदी ने राजघाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की, उस पर ‘द रिपब्लिक ऑफ़ भारत’ लिखा हुआ था. जी20 सम्मेलन की मेज पर पीएम मोदी के सामने नेमप्लेट पर ‘भारत’ लिखा था.

‘भारत’ पर बीजेपी का यू-टर्न

प्रधानमंत्री के रूप में अपने दो कार्यकालों के नौ सालों में नरेंद्र मोदी ‘भारत के प्रधानमंत्री‘ रहे हैं. उनकी सरकार द्वारा लाई गई कई योजनाओं और अभियानों के नाम में ‘इंडिया’ नाम मौजूद है – डिजिटल इंडियामेक इन इंडियाखेलो इंडियास्टार्टअप इंडिया, आदि.

ये भी ध्यान देने वाली बात है कि 2004 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन कर ‘भारत, दैट इज इंडिया’ कहने का प्रस्ताव पारित किया था, न कि ‘इंडिया, दैट इज भारत.’ रिपोर्ट्स के मुताबिक, (लिंक 1लिंक 2लिंक 3) प्रस्ताव को राज्य विधान सभा में सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया, सिवाय भाजपा विधायकों के, क्यूंकि BJP विधायकों ने उस वक्त वाक आउट किया था.

इसके अलावा, नवंबर 2015 में मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देश को ‘इंडिया’ के बजाय ‘भारत’ नहीं कहा जाना चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा ऑफ़िशियल और अनौपचारिक उद्देश्यों के लिए गणतंत्र को ‘भारत’ कहे जाने की घोषणा की मांग करने वाली एक जनहित याचिका का जवाब देते हुए, केंद्र ने दावा किया कि “भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 में किसी भी बदलाव पर विचार करने के लिए परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है.”

अचानक हुए इस बदलाव और ‘भारत’ नाम के प्रति नए-प्रेम को देखते हुए ये समझ पाना मुश्किल नहीं है कि विपक्षी गठबंधन द्वारा खुद को I.N.D.I.A. नाम दिए जाने के बाद की ये प्रतिक्रिया है.

इंडिया या भारत? 1949 से चली आ रही एक बहस

स्वतंत्रता के बाद, संविधान सभा को भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने के ऐतिहासिक कार्य को पूरा करने में लगभग तीन साल लग गए. इस समय के दौरान, इसमें कुल 165 दिनों के ग्यारह सत्र आयोजित हुए. इनमें से 114 दिन संविधान के मसौदे पर विचार करने में लग गए.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 के मसौदे पर, जो वाक्य “India, that is Bharat, shall be a Union of States“ (इंडिया, यानी भारत, राज्यों का एक संघ होगा) से शुरू होता है, इस बारे में संविधान सभा में 15 और 17 नवंबर, 1948 को और बाद में 17 और 18 सितंबर, 1949 को फिर से बहस हुई थी.

15 नवंबर, 1948 को कॉन्स्टिट्यूशन हॉल (जिसे बाद में संसद के सेंट्रल हॉल के रूप में जाना जाने लगा) में एक बहस के दौरान, लोकसभा के पहले उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत अनंतशयनम अयंगर, ‘इंडिया’ का नाम बदलकर ‘भारत’ करना चाहते थे. 18 सितंबर, 1949 को सदस्य H V कामथ ने ‘इंडिया’ और ‘भारत’ दोनों का इस्तेमाल करने के लिए एक संशोधन पेश किया. मसौदा समिति के अध्यक्ष, B R अम्बेडकर ने एक संशोधन के माध्यम से पहले ही सुझाव दिया था कि मसौदा अनुच्छेद में कहा गया है कि ‘इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा.’

कामथ इस पदावली से ज़्यादा खुश नहीं थे. उन्हें ये ‘इंडिया, दैट इज़ भारत’, ‘कुछ हद तक अटपटा‘ लगा. और ऐसा सोचने वाले वो अकेले नहीं थे. “इंडिया, दैट इज भारत’ किसी देश के नाम के लिए सुंदर शब्द नहीं हैं. सेठ गोविंद दास ने कहा, हमें “भारत को विदेशों में इंडिया के नाम से भी जाना जाता है” वाक्य डालना चाहिए था.

प्रस्तावित संशोधनों को मतदान के लिए रखा गया और आख़िरकार अम्बेडकर का सुझाव, “इंडिया, दैट इज भारत, शैल बी यूनियन ऑफ़ स्टेट (इंडिया जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा) स्वीकार कर लिया गया था.

फ़ैक्ट-चेक: क्या ‘इंडिया’ एक ब्रिटिश कॉइनिज है?

इस संदर्भ में सबसे वायरल ट्वीट में से एक पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग का था जिन्होंने दावा किया था, “हम भारतीय हैं, इंडिया अंग्रेजों का दिया हुआ नाम है…” वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला ने खुद के एक आर्टिकल का हवाला देते हुए X (ट्विटर) पर लिखा था, “इंडिया, जो एक ब्रिटिश संज्ञा है, को दफना देना चाहिए और एक नए भारत का उदय हो…” उत्तर प्रदेश से भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने एक कदम आगे बढ़कर ANI को बताया कि ‘इंडिया’ शब्द हमें दिया गया एक दुर्व्यवहार है. ब्रिटिश… सुप्रीम कोर्ट बार एसोशिएशन के अध्यक्ष आदिश C अग्रवाल ने PTI को बताया कि इंडिया नाम अंग्रेजों ने दिया था. इस लेख के लिखे जाने तक ऐसा दावा करने वालों की सूची बढ़ती जा रही है.

वर्ल्ड हिस्ट्री इनसाइक्लोपीडिया में ‘भारत नाम की उत्पति‘ पर एक एंट्री है. इसमें हमें शॉर्ट में ये बताया गया है कि ‘इंडिया’ शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में आम सहमति क्या है:

भारत के प्राचीन इतिहास पर एक व्यापक नज़र डालने से ये साबित होता है कि ये कहना सच्चाई का मजाक उड़ाना होगा कि ‘इंडिया’ नाम का इस्तेमाल पहली बार ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा हिमालय के दक्षिण में मौजूद इस सरज़मीं के लिए किया गया था. इतिहासकार ये स्वीकार करने में लगभग एकमत हैं कि ‘इंडिया’ शब्द कई मध्यवर्ती संस्करणों के माध्यम से संस्कृत शब्द ‘सिंधु’ से लिया गया था. और सबसे पहले यूनानी ने इसका इस्तेमाल किया था. उनमें से ज़्यादातर इस बात पर भी सहमत हैं कि हमारी धरती पर पहले ब्रिटिश के कदम रखने से 1000 साल से भी पहले ‘इंडिया’ नाम का इस्तेमाल किया जाता था. कई प्राथमिक और द्वितीयक ऐतिहासिक संदर्भों का हवाला दिया जा सकता है जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि ‘इंडिया’ नाम उपमहाद्वीप में ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कई शताब्दियों पहले का है. उनमें से कुछ यहां देखे जा सकते हैं:

भारत का विचार: यहां तक ​​कि ये ब्रिटिश से भी पहले का है

ये मानने के पर्याप्त कारण हैं कि न सिर्फ ये शब्द, बल्कि एक राजनीतिक इकाई के रूप में भारत का विचार भी उपमहाद्वीप के ब्रिटिश उपनिवेशवाद से पहले का है.

इतिहासकारों का एक वर्ग ऐसा है जो मानता है कि एक राजनीतिक स्थान के रूप में इंडिया का विचार उपनिवेशीकरण के साथ ही अस्तित्व में आता है. उनकी राय है कि “…ब्रिटिश दक्षिणी प्रायद्वीप के पूरे क्षेत्र पर नियंत्रण या दावा करने वाले पहले व्यक्ति थे…ब्रिटिश उपनिवेशीकरण से पहले उपमहाद्वीप “क्षेत्रीय राज्यों” का युग था, जिसमें क्षेत्रीयता की कोई सुसंगत धारणा नहीं थी और न ही राजनीतिक नियंत्रण था. संपूर्ण प्रायद्वीप. एकमात्र विख्यात अपवाद अशोक… या मुगल राजा औरंगजेब के हैं.” (आसिफ़, 3)

इरफ़ान हबीब ने इस विचार का कड़ा विरोध किया है. अपने निबंध, द फॉर्मेशन ऑफ़ इंडिया: नोट्स ऑन द हिस्ट्री ऑफ़ एन आइडिया में हबीब ने भारत की अवधारणा के इतिहास पर चर्चा की है. हबीब का सुझाव है कि छठी शताब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत में 16 ‘महाजनपदों’ के शुरूआती पाली ग्रंथों में उल्लेख इस बात का पहला संकेत है कि इन सभी क्षेत्रीय पहचानों को एक साथ रखने वाले देश की धारणा उभरने लगी थी. अशोक के शिलालेखों और ब्राह्मणवादी कानूनी पाठ मनुस्मृति (दोनों संभवतः ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में रचित) का हवाला देते हुए हबीब का तर्क है कि “… कुछ सामाजिक और धार्मिक संस्थानों द्वारा चिह्नित देश के रूप में भारत की धारणा केवल उस समय से मौजूद होनी शुरू होती है जब मौर्य साम्राज्य (लगभग 320-185 ईसा पूर्व) की स्थापना हुई थी.” (पेज 5)

हबीब इसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि कहते हैं क्योंकि “… भारत “अनादि काल” से स्वाभाविक रूप से एक देश नहीं था; ये सांस्कृतिक और सामाजिक विकास द्वारा विकसित हुआ…” (पेज 6) अगले 1000 सालों में एक अच्छी तरह से सीमांकित भौगोलिक स्थान के रूप में भारत का संदर्भ, नियमित आधार पर संस्कृत ग्रंथों में दिखाई दिया. ये 14वीं शताब्दी के सूफ़ी कवि अमीर खुसरो के लेखन में है और इसे हबीब ने “भारत की विशिष्ट विशेषता होने वाली मिश्रित संस्कृति” की पहली “स्पष्ट रूप से प्रतिपादित” अवधारणा का पता लगाया है. धार्मिक मतभेद मौजूद थे, लेकिन खुसरो द्वारा खुद को “हिंदुस्तानी तुर्क” बताने और हिंद को उनका “घर और असली ज़मीन” बताने का आग्रह, या दुनिया और इसकी बहुसंस्कृतिवाद में भारत के योगदान के नूंह सिपिहर चर्चा में, हबीब ये साफ़ देखते हैं कि “इंडिया की धारणा अलग-अलग परंपराओं के एक-दूसरे के साथ बातचीत और समायोजन के घर के रूप में है”, एक ऐसी धारणा जिसे मुगल सम्राट अकबर द्वारा प्रबलित किया गया था. इस प्रकार एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में पहचाने जाने की एक महत्वपूर्ण शर्त हासिल की गई.

दूसरी महत्वपूर्ण शर्त थी राजनीतिक एकता की भावना. हबीब के अनुसार, ये उस वक्त एक वास्तविकता बन गई जब “दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य की केंद्रीकरण प्रवृत्तियों ने बार-बार राजनीतिक रूप से एकीकृत भारत की दृष्टि पेश की.” वो लिखते हैं ये हमारे वर्तमान उद्देश्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, “इस प्रकार ब्रिटिश विजय शुरू होने के समय तक राष्ट्रीयता की कुछ पूर्वापेक्षाएँ हासिल हो चुकी थीं: 1757 में, प्लासी का वर्ष, भारत केवल एक भौगोलिक अभिव्यक्ति नहीं था, इसे एक सांस्कृतिक इकाई और एक राजनीतिक इकाई के रूप में भी देखा जाता है.” (पेज 8)

कुल मिलाकर, इंडिया और भारत का विचार दोनों ही उपमहाद्वीप में अंग्रेजों के आगमन से पहले के हैं. उनमें से किसी को भी ब्रिटिश औपनिवेशिक अवशेष कहना इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करना है, जो या तो जानबूझकर या अज्ञानतावश किया जा रहा है.

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