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भोपाल में 30 जून से 2 जुलाई तक समान नागरिक संहिता पर मंथन

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लोककसभा चुनाव के पहले केन्द्र की मोदी सरकार देश में समान नागरिक संहिता को लागू करना चाहती है। इसके लिए तेजी से कवायद शुरु कर दी गई है। इसी क्रम में अब भोपाल में इस माह के अंत में एक बड़ी बैठक बुलाई गई है। यह बैठक भोपाल में 30 जून से लेकर 2 जुलाई तक चलेगी, जिसमें देश भर के करीब तीन सैकड़ा विषय विशेषज्ञों को बुलाया गया है। खास बात यह है कि बैठक में संघ के शीर्ष पदाधिकारी भी शामिल होंगे। गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता के लिए 22 वें विधि आयोग ने आम लोगों, संस्थाओं और धार्मिक संगठनों से 14 जुलाई तक सुझाव मांगे हैं। इस वजह से यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस बैठक में संघ के जो शीर्ष पदाधिकारी आने वाले हैं, उनमें सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, सह कार्यवाह अरूण कुमार और सुरेश सोनी जैसे नाम शामिल हैं। दरअसल इस मामले में संघ कई दशकों से मुखर रहा है। बाद में इस मामले को भाजपा ने अपना राजनैतिक मुद्दा बना लिया और उसके प्रमुख मुद्दों में शुरू से ही शामिल रहा है। माना जा रहा है कि यहां पर होने वाले मंथन से निकलने वाले अमृत को विधि आयोग के सामने रखा जाएगा।
केन्द्र में मोदी सरकार बनने के बाद इस पर काम जारी है। इसके लिए हाल ही में 14 जून को, भारत के 22वें विधि आयोग ने एक सार्वजनिक नोटिस जारी कर आम जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से विचार मांगे हैं। भारत का विधि आयोग, कानून और न्याय मंत्रालय के 17 जून, 2016 के संदर्भ के संदर्भ में विषय वस्तु की जांच कर रहा है। इससे पहले, भारत के 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के विषय की जांच की थी और 7 अक्टूबर, 2016 को एक अपील और एक प्रश्नावली और मार्च और अप्रैल 2018 में सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से हितधारकों से विचार मांगे थे। इसके बाद, 21वें विधि आयोग द्वारा 31 अगस्त, 2018 को पारिवारिक कानून में सुधार पर एक परामर्श पत्र भी जारी किया जा  चुका है। चूंकि परामर्श पत्र जारी होने के तीन साल से अधिक समय बीत चुका है, इसलिए भारत के विधि आयोग ने विषय की प्रासंगिकता और महत्व और विषय पर विभिन्न न्यायिक आदेशों के कारण इस विषय पर नए सिरे से विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया है। इसी कड़ी में भोपाल में यह बैठक बुलाई गई है। समान नागरिक संहिता एक देश, एक नियम के विचार से मेल खाती है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में इसका स्थान है। इसमें कहा गया है, राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
शाह बानो केस (1985)शाह बानो नाम की एक 73 वर्षीय महिला को उसके पति ने अब गैरकानूनी तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत का उपयोग करके तलाक दे दिया था, जहां उसे इसके तहत उचित गुजारा भत्ता नहीं दिया गया था। परिणामस्वरूप, उसने अखिल भारतीय आपराधिक संहिता की धारा 125 के आधार पर मामला दायर किया, जो पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण से संबंधित है।
न्यायापालिका पर कम होगा बोझ
यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भले ही पर्सनल लॉ कुछ धर्मों का अपना निजी कानून नजर आता हो, लेकिन यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे। सभी के लिए कानून में एक समानता से देश में एकता बढ़ेगी। जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी प्रकार का वैमनस्य नहीं होता है, वह देश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ता है। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा।
विहिप कर चुकी है स्वागत
हाल ही में रायपुर में विश्व हिंदू परिषद की केंद्रीय प्रबंध समिति की बैठक में, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर संदर्भ लेने का स्वागत किया है। विहिप के केंद्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि यह संतोष की बात है कि आयोग ने इस विषय पर सभी हितधारकों से विचार आमंत्रित किए हैं। भारतीय समाज के सभी वर्गों के सुझाव प्राप्त कर एवं उन पर विचार कर शीघ्र ही यूसीसी को अधिनियमित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 सभी सरकारों को पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का निर्देश देता है। आलोक कुमार ने कहा कि यह अफसोस की बात है कि जो सांसद और विधायक भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखने की शपथ लेते हैं, वे संविधान के इन 73 वर्षों में भारत के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लाने में विफल रहे हैं।
संसदीय समिति भी कर रही समीक्षा
गौरतलब है कि पर्सनल लॉ की समीक्षा का काम कार्मिक, लोक शिकायत, विधि व न्याय विभाग की संसदीय समिति कर रही है। इस बारे में अभी तक तीन बैठकें हो चुकी हैं। समिति ने लोगों से सुझाव और राय भी मांगी थी। अभी तक समिति को इस पर 50 से ज्यादा सुझाव प्राप्त हो चुके हैं। पर्सनल लॉ की समीक्षा और उस पर आने वाली रिपोर्ट कई पहलुओं से महत्वपूर्ण होगी। ऐसे में देखा जाए तो पर्सनल लॉ का संहिताबद्ध होना भी एक तरह से समान नागरिक संहिता का रास्ता बनाता दिखता है। सूत्र बताते हैं कि कमेटी आने वाले दिनों में तमाम संविधान विशेषज्ञों तथा अधिवक्ताओं को बुलाने वाली है जिनसे जाना समझा जाएगा कि अलग-अलग पर्सनल लॉ क्या हैं और उनमें क्या खामियां या खूबियां हैं।

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