बूढ़ा हरसिंगार
एक बूढ़ा हरसिंगार जो मेरा दोस्त है
जिसकी महक से आज भी फिज़ा मुश्कबार होती है
लेकिन मेरे आंगन में खड़ा यह बूढ़ा अब सिसक रहा है
वजह इससे कभी किसी ने पूछी नहीं
या यूं कहें किसी को फुर्सत नही मिली
परेशान तो सभी हैं लेकिन कोई अब किसी से कुछ नहीं कहता
शायद दिलासे की भी गुंजाइश नहीं बची हमारे दरम्यान
या फिर कुछ और ही है
खैर हरसिंगार के पास आज सुबह कुछ पल बैठ गया
सच यह है यहां भी गरज़ ही लाई कुछ फूल दरकार थे
लेकिन बैठा तो पुरानी यादें ताज़ा हो गई
और फिर शुरू हुआ बातों का सिलसिला
हरसिंगार का दर्द इतना है कि अब कस्बा बदल गया है
सिर्फ कस्बा नहीं लोग भी बदले हैं
अब उन्हें बोतल में बंद कतरों में खुश्बू पसंद है
हमारी कद्र भी घर के उस पलंग पर लेटे कमज़ोर बुजुर्ग जैसी है
जिसकी खांसी से लोगों को तकलीफ है
लेकिन दिखावा इतना जैसे सबको उसकी फिक्र हो
कौन बैठना चाहता है सुकून से दो घड़ी के लिए
खुशबू की कद्र ही किसे है भला यहां
अब ज़हरआलूद फिज़ा इनकी तरक्की है और
लाशों की सड़ांध इनका मुकद्दर
मेरा दर्द मेरी तन्हाई नही
बल्कि इनकी बेहिसी है
यह सुनकर मैं भी रो पड़ा
क्योंकि मैं भी तो ऐसा ही हो गया हूं
और बाकी सब भी अब भला
किसे खुशबुओं की समझ किसे गुलों से मुहब्बत
नकली फूलों ने हमारे कमरे सजा रखें हैं
वैसे ही जैसे झूठी मुस्कान हमारे होंठों पर
अब झूठ के साथ जीना हम तो सीख गए
भला हरसिंगार कैसे सीखे इसे समझाया कैसे जाए
लेकिन बात बात में यह बात निकली
तरक्की क्या खुश्बू की दुश्मन है ?
इस सवाल पर मैं चौक गया लेकिन
जवाब भी न दे सका आप के पास जवाब है
तो दो पल बूढ़े हरसिंगार के पास बैठिए
उसे समझा दीजिए तरक्की के मायने क्या हैं?
यूनुस मोहानी , सुप्रसिद्ध शायर, जनवादी कवि संपर्क – 93058 29207
संकलन और संपादन -निर्मल कुमार शर्मा गाजियाबाद उप्र संपर्क -9910629632